यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी
शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017
पवन तिवारी को साहित्य अकादमी का जैनेन्द्र पुरस्कार
मुंबई,युवा
साहित्यकार पवन तिवारी को उनके चर्चित उपन्यास "अठन्नी वाले बाबूजी" के
लिए महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी का वर्ष2016-1017का जैनेन्द्र पुरस्कार दिया गया है। पवन तिवारी ने साहित्य की तमाम विधाओं
में काम किया। उनकी पहली पुस्तक ''चवन्नी का मेला'' भी काफी चर्चित रही जो कि एक कहानी संग्रह थी।12वर्ष
की उम्र से कविता , कहानी आदि का लेखन, विद्यालयीन प्रतियोगिताओं में भाषण, गायन, अन्ताक्षरी, एकांकी आदि में प्रथम आने वाले पवन
तिवारी की पहली पुस्तक मात्र २३ वर्ष की आयु में प्रकाशित हुई थी. पवन तिवारी न
सिर्फ एक संवेदनशील लेखक हैं वरन एक प्रखर पत्रकार, वक्ता, शोध कर्ता, कई पत्र ,पत्रिकाओं का सम्पादन करता होने के साथ-साथ , फिल्म लेखन, कई पुस्तकों के सम्पादन सहित
आकाशवाणी पर महापंडित राहुल सांकृत्यायन पर विशेष वक्तव्य विशेष चर्चित रहा , देश के सबसे बड़े भजन संकलन भजन गंगा का अतिथि सम्पादन एवं इंडियन प्रेस
कौन्सिल की पहली स्मारिका का सम्पादनभीकिया।12वर्ष की उम्र में लेखन की शुरुआत करने
वाले पवन तिवारी का जन्म उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर जिले के जहँगीरगंज ब्लॉक के
अलाउद्दीन पुर गांव में एक किसान परिवार में हुआ। पिता चिंतामणि तिवारी एवं माता
श्रीपत्तीतिवारी की7संतानों में3रे नम्बर की संतान पवन तिवारी
बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। बचपन में ही रामचरित मानस का पाठ करने दूर- दूर
बुलाये जाते थे। गरीबीतथा माता की असाध्य बीमारी के
कारण1998में16वर्ष की आयु में पढ़ाई त्याग कर मुम्बई आना
पड़ा। तमाम संघर्षों से गुजरते हुए सफलता की अनेक इबारत लिखी। पवन तिवारी बेहद कम
आयु में ही सनातन चैनल में शोधकर्ता और रचनात्मक निर्देशक भी रहे। जहां उन्होंने
अपनी प्रतिभा की छाप छोड़ी. मुम्बई आकाशवाणी परअनेक
विषयों पर उनके व्याख्यान प्रसारित हुए। जिनमें इनके स्व रचित अवधी लोकगीत काफी
प्रसंशित हुए। चर्चित कहानी तेरे को मेरे को पर हिंदी फिल्म बन रही है। हिंदी भाषा
के उत्थान के लिए किए गए उनके प्रयास सराहनीय हैं।
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