मेरे प्रिय पाठक मित्रों ये गीत मैंने १५ वर्ष पहले मुंबई के ह्रदय नरीमन प्वाइंट के बस स्थानक पर बैठकर आधा लिखा था और आधा चौपाटी पर बैठ कर लिखा था और १२ वर्ष पहले फिल्म राइटर्स एसोशिएशन में पंजीकृत कराया था आज अचानक पुराने दस्तावेजों को उलटते -पुलटते मिल गया . पढ़िए और अपनी टिपण्णी से अवगत कराएं .......
रात भर - रात भर तूँ जगाती रही, रात भर -रात भर मैं सोता रहा .
रात भर - रात भर तूँ जगा ना सकी,रात भर - रात भर मैं सो ना सका
तूने भी जीतने की थी कोशिश बहुत ,मैंने भी जीतने की थी कोशिश बहुत
जीतते - जीतने हार तूँ भी गई, जीतते - जीतते हार मैं भी गया
तूँ मेरे दिल के पास आती रही, मैं तेरी धडकनों से दूर जाता रहा
दिल के दरवाजे में तूँ भी घुस ना सकी,धडकनें तेरी मुझको समझ ना सकी
उलझने आपा-धापी लगी यूँ रही, सुबह आती रही, दिन भी जाता रहा
शाम से रात और रात से फिर सुबह,फिर महीनें से सालों गुजरते गए
पास आकर भी हम दूर होते गए, फिर महीने से सालों गुजरते गए
पास आकर भी हम दूर होते गये,फिर बड़ी कश्मकश से जो दिल भी मिले
दिन गुज़र था चुका शाम होने को थी,हम गले ज्यों मिले शाम रोने लगी
हमारी नादानियों पे रात हँसने लगी,मैं भी रोने लगा, वो भी रोने लगी
प्यार से प्यार को प्यार था बुला रहा,हम ही दुश्मन समझ के अकड़ते रहे
जो हुआ सो हुआ,शुक्र इतना रहा,इस जनम में ही जीते जी हम मिल गये
poetpawan50@gmail.com
सम्पर्क -7718080978
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