आज मैं आप को ‘गरीबी वाली जवानी’ का असली किस्सा सुनाना चाहता हूँ. आप में से अधिक लोग उसे एक चर्चित आत्मकथा के रूप में जानते हैं.पर मैं उस आत्मकथा के साथ कुछ दिनों तक साक्षात् यात्रा किया हूँ. इससे पहले कि आप को किस्सा सुनाऊं, मैं पहले आप को उस समारोह में ले चलता हूँ. जहाँ ‘गरीबी वाली जवानी’ का विमोचन हुआ था. उस अद्भुत समारोह का एक गवाह मैं भी था. क्योंकि मुझे जोशी जी ने विशेष रूप से आमंत्रित किया था. तो सुनिए –
आज रानी जोशी जी के सेवा काल का आख़िरी दिन ख़त्म
हो गया. रात चढ़ आयी थी और मुंबई पुलिस जिम खाना उनके सम्मान में रंगीन हो चला था.उनके लिए आज दोहरी खुशी का दिन था.सेवा सम्पूर्ति सम्मान के साथ उनकी आत्मकथा
‘गरीबी वाली जवानी’ के विमोचन का भी अवसर था.मीडिया में आत्मकथा से अधिक उसके
शीर्षक की चर्चा थी.पूरे देश में इसकी चर्चा थी.लोगों में उत्सुकता थी.प्रथम
संस्करण अग्रिम बुकिंग में ही ख़त्म हो गया था.यहाँ विमोचन के समय कुछ सीमित
किताबें थी.उनके लिए कुछ सांसदों और मंत्रियों तक में पुस्तक प्राप्त करने की
जद्दोजहद देखी गयी.बहुत से लोग किताब न पाने के कारण निराश थे.मंच पर पुलिस
अधिकारी,मुख्यमंत्री सहित अनेक हस्तियाँ थी.अतिथियों के वक्तव्य चल रहे थे.पर कई
लोग एक अदद किताब मिल जाए.इस जुगाड़ में इधर से उधर हो रहे थे.कुछ लोगों ने
सर्वोच्च प्राथमिकता में हर बार की तरह भोजन को ही दिया था. भोजन शुरू हो गया था.जुगाड़
से आये लोग भोजन में व्यस्त हो गये और बड़े लोग,बड़े नेता,अधिकारी,न्यायाधीश,खिलाड़ी और कुछ
अभिनेता भी सब अपनी-अपनी कुर्सी पर जमें रहे.सबको रानी जोशी के वक्तव्य का बेसब्री से इंतज़ार था.आज शाम को ही 6 बजे
से पहले वर्तमान मुंबई पुलिस आयुक्त थी. किन्तु आज इस समय वो पूर्व मुंबई पुलिस
आयुक्त थी. मंच संचालक ने जैसे ही कहा-आज के दिन की हमारी सम्माननीय आयुक्त और अब
रात में पूर्व आयुक्त हो चुकी किन्तु उतनी ही सम्मानित या उससे ज्यादा जिनका जीवन
हर महिला और हर व्यक्ति के लिए प्रेरणाश्रोत है. आज की उत्सव मूर्ति माननीय श्रीमती
रानी जोशी जी को बड़े ही सम्मान के साथ आमंत्रित करता हूँ कि वो आयें और अपनी
आत्मकथा और अपनी लम्बी पुलिस सेवा से जुड़े अपने विचार साझा करें.जोरदार तालियों से
सम्मान करें, श्रीमती रानी जोशी जी का. दूधिया रोशनी से सराबोर जिमखाना मैदान
अनवरत करतल ध्वनि से गूंज रहा था.भोजन कर रहे लोगों का भी ध्यान भंग हो गया.वे भी मंच की तरफ घूम गये.कईयों के हाथ में निवाले मुंह में जाने से पहले ठहर गये.लोग
जड़वत हो गये.लोग श्रीमती जोशी को सुनने के लिए बेसब्र हुए जा रहे थे.मीडिया के
कैमरे उनके संवाद को कैद करने के लिए उतावले हो रहे थे. सबकी नज़र मंच पर लगे माइक
पर गड़ी हुई थी.केसरिया रंग की बनारसी साड़ी पहने एक हाथ से पल्लू पकड़े
आहिस्ता-आहिस्ता माइक के सामने जोशी जी आई.तब तक लोगों की हथेलियाँ गडगडा रही
थी.उनका पहला शब्द माइक पर गूंजा- धन्यवाद.आप लोगों के इस स्नेह के लिए.आप मेरे
लिए अपना कीमती समय निकाल कर आये.मैं इस अपार स्नेह को पाकर देखकर बेहद भावुक हूँ.मेरे पुलिस के अनुभव और मेरा पूरा जीवन इस पुस्तक में सिमटा हुआ है.इसमें आप की
उत्सुकता और प्रश्नों के उत्तर हैं. मुझसे बेहतर जवाब,मेरी ये आत्मकथा देगी.एक
बात मैं जरूर कहना चाहूंगी.जिसको सब सुनना भी चाहते हैं. जिसकी मीडिया और खुद मेरे
पुलिस महकमें में भी काफी चर्चा है.मेरे एकाध दुस्साहसी [हँसते हुए] सहकर्मियों ने
पूछा भी- कि आखिर मैंने अपनी आत्मकथा का नाम ‘गरीबी वाली जवानी’ क्यों रखा? ये किसी सी ग्रेड फिल्म के
नाम जैसा या यात्रा के दौरान समय काटने के लिए,एक दिनी सेक्सी उपन्यास जैसा है,आदि –आदि. आत्मकथा आप बीती होती
है.जिन लोगों ने इस तरह के विचार व्यक्त किये वो,सब खानदानी लोग थे.आईपीएस का
बेटा आईपीएस,आईएएस का बेटा आइएएस,जज का बेटा जज.उनके परिवार में कई पीढ़ियों को पता ही नहीं रहा होगा कि गरीबी क्या चीज है? उन्होंने गरीबी शब्द पढ़ा है भोगा नहीं है.पढ़े और भोगे में धरती और आसमान जितना अंतर होता है.आज मैं इस तरह आप से इसलिए बात कर पा रही हूँ क्योंकि मैं पढ़ी और कढी दोनों ही हूँ आर्थिक तंगी में अर्थात गरीबी में जवानी गुजारना कितना दर्द भरा होता है.खासकर उस
घर के मुखिया के लिए, जिसके घर में जवान बेटी हो. उसके घर में दो जून के खाने का ठिकाना भी न हो.ऐसे बाप की बेटियों को हर कोई ललचाई नजरों से देखता है.जवान तो जवान,बूढ़े भी,सपनों
में ही नहीं, खुली आँखों से भी, उसे अपनी प्रेमिका की नज़र से देखते हैं.आज नहीं तो
कल मिल ही जायेगी.भाग के जायेगी कहाँ?जिस लड़की बाप बेवड़ा,भाई मवाली और माँ दूसरों के
घरों में बर्तन मांजनेवाली बाई हो,उसकी जवानी किसी जानलेवा चीज से कम नहीं होती. वैसे भी
लडकी की जवानी खुद लडकी के लिए २४ घंटे एक अनजानी आफत होती है.उसमें भी किसी
झोपड़पट्टी में रहने वाले शराबी बाप की बेटी होना और जवान होना कितना खतरनाक है?ये
तो भोगने वाला ही जान सकता है.मैं किसी अमीर खानदान की बेटी नहीं हूँ.जिन्हें मेरे
बारे में पता है वे जानते हैं.तिवारी जी यहाँ बैठे हैं!उन्होंने ने मेरा वो दौर
देखा है और मदत भी की,धन्यवाद तिवारी जी, [मैंने सिर झुका लिया.अच्छा हुआ कि
उन्होंने मेरा पूरा नाम नहीं लिया.वरना मेरे बिरादरी वाले मेरा जीना हराम कर देते.फिर भी कईयों को पता चल गया था.] मैं इसी मुंबई के मझगाँव की झोपडपट्टी की लड़की
हूँ. मेरे पिता मिल मजदूर थे.सेवा निवृत्ति से पहले ही मिल बंद हो गयी.मैं
सातवीं में थी. मेरे दसवीं तक आते-आते उनकी शराब की आदत ने माँ को पैसे–पैसे के
लिए मोहताज़ कर दिया.माँ को दूसरों के घरों में बर्तन माजने के लिए मजबूर होना पड़ा.मुझे पढाई छोडनी पड़ी.[कहते- कहते आखें भर आई]फिर इस बीच मैं जवान होने लगी और मुझे
देखने का लोगों का नजरिया बदल गया.हर कोई मुझे ललचाई नजरों से छूता था.हाथ से भी
छूने की कोशिश करता.तभी एक बवंडर आया,लगा कि मैं इसी बवंडर की भेंट चढ़ जाऊँगी कि
तभी मेरे जीवन में जोशी जी आये और उन्होंने अपने जीवन की खुसी का एक बड़ा हिस्सा मुझ पर
न्योछावर कर दिया.तब जाकर मैं आज आप के सामने खड़ी होने लायक बनी हूँ.अब आप बताइये मेरी
सबसे पीड़ा को यदि मैंने शीर्षक रखा तो क्या गलत किया?[जोशी जी की आखें झरनें लगी,वे
पल्लू से आंसू पोंछती हैं] बस ! इतना ही कहना था.अब आप फैसला करें, धन्यवाद. कुछ क्षण सन्नाटे के
बाद तालियाँ बजनी शुरू हुई और देर तक बजती रहीं. लगभग वहाँ उपस्थित सबकी आखें नम हो गई थीं.रानी जोशी जी अपने स्थान पर आकर
बैठ चुकी थीं,पर तालियां अभी भी नहीं रुकी थीं.रानी जी की आखें भी बरस रही
थी.उन्होंने आखों पर रंगीन चश्मा चढ़ा लिया था.उसके बावजूद गालों से नीचे की तरफ
बहती जल की गर्म धारा उनके दर्द की कहानी बयां कर रही थी. वे अपने स्थान पर खड़ी हो गई. हाथ जोड़कर,जोरदार अभिवादन के लिए धन्यवाद देने हेतु,तो सामने बैठे,आम और ख़ास,मंत्री,सांसद, विधायक,अभिनेता,खिलाड़ी यहाँ तक कि उनके पति तरुण जोशीजी सब खड़े
होकर,उनके सम्मान में हाथ उठाकर तालियां बजाने लगे.अद्भुत दृश्य!लोग भोजन करना
छोड़कर इस अद्भुत दृश्य के साक्षी बन रहे थे.रानी जोशी जी ने निवेदन की मुद्रा में
सबसे बैठने का आग्रह किया.तब जाकर लोग बैठे.कार्यक्रम संचालक भी ऐसा दृश्य देखकर
आश्चर्य चकित थे.वे इस उत्साह और करुणा के वेग के शांत होने की प्रतीक्षा में मंच संचालक मंच के कोने में खड़े थे. लोगों द्वारा स्थान ग्रहण करने के बाद,मंच
संचालक ने पुनः माइक सम्भाला.आदरणीय श्रीमती जोशी जी एवं आप सभी प्रबुद्ध जनों का
आभार.समय काफी हो चुका है.मुझे पता है कि आप के पेट में चूहे कूदने शुरू हो गये
होंगे.तो कृपया भोजन की व्यवस्था है और बिना भोजन किये न जायें.बहुत–बहुत
धन्यवाद.सब लोग अर्थात मीडिया वाले अपना तम्बू–बम्बू डिब्बा लेकर रानी जोशी जी की
तरफ टूट पड़े.किन्तु मैं धीरे से लोगों की नज़रों से बचते हुए खासतौर पर खतरनाक
बिरादरी वालों की निगाहों से बचते-बचाते भोजनालय की तरफ बढ़ा.भोजनालय में भी लम्बी
कतार लग गई थी.कुछ देर बाद मेरे पकड में भी प्लेट आया. खाने से अधिक मेरा ध्यान मेरे
बिरादरी के लोगों और मेरे सफ़ेद कुर्ते पर रहता.कहीं कोई साहब खाने की धुन में
मेरा कुर्ता दाल से पीला या सब्जी से गेरुआ न कर दें.कुल मिलाकर खाना अच्छा था.व्यंजन
तो अनेक थे.जिनमें से मुझे कईयों का नाम भी नहीं पता था.जानकार करता भी क्या ?
सारे व्यंजन लेने के लिए कम से कम पांच प्लेट लेनी पड़ती. मुझे कई बार भोजन से अधिक
भारी प्लेट लगती है.आज भी लगी. इसलिए मैंने एक कोने में रखी मेज चुनी और उस पर
अपनी प्लेट को बिठा मैं भी कुर्सी पर विराजित हो गया.मैं ठहरा शाकाहारी, मेरे लिए
तो जीरा राईस,दालफ्राई और आलूमटर ही सबसे बेहतरीन था.कुल मिलाकर समारोह अद्भुत था.ऐसी विदाई
और ऐसा विमोचन समारोह मैंने अपने पत्रकारीय जीवन काल में कम ही देखे.आखिरकार उन लोगों की नजरों से बचने में
कामयाब रहा.जिनकी नज़रों से बचना चाह रहा था.सकुशल घर भी पहुँच ही गया.घर आकर कपड़े
खूंटी पर टांगे.नल से पानी ले हाथ-पैर-मुँह धोकर कुर्सी पर बैठा तो पत्नी ने पूछा
- रानी के कार्यक्रम में गये थे.कैसा रहा ? मैंने कहा-बहुत बढ़िया.शालू जी ने कहा
[शालू मेरी श्रीमती] टीवी में आ रहा था.वो बहुत गरीब थी.उनका बचपन झोपड़पट्टी में
बीता.आप तो उन्हें बचपन से जानते हैं.उन्होंने मंच से आप का नाम भी लिया.मैंने
टीवी पर उनका भाषण देखा.मैंने कहा- बचपन से नहीं जानता. हाँ यही कोई 18-19 साल की
रही होंगी.तब पहली बार उन्हें देखा था.पत्नी तपाक से बोलीं- जवानी में तो बड़ी
खूबसूरत रही होंगी.जब इस उम्र में इतनी सुन्दर दिखती हैं. [पत्नी ने हंसते हुए
कहा] आप की भी लार टपकी होगी.मुझे शालू जी का मजाक अच्छा नहीं लगा,क्योंकि जिन
परिस्थितियों में हमारी मुलाक़ात हुई थी.वे बेहद संगीन थीं.ईश्वर किसी बहन या बेटी
के साथ ऐसी स्थिति पैदा न करें. वे मेरा चेहरा देखकर समझ गयी. बोली- मैं तो मज़ाक
कर रही थी.मैंने उनका भाषण सुना-मेरी खुद आँख भर आयी.पर वास्तव में हुआ क्या था?बहुत बुरा हुआ था. सुनना चाहती हो तो सुनो,पर बीच में मसखरी नहीं. उन्होंने सहमति
में सिर हिलाया.
उन दिनों की बात है.जब मैं नया–नया
जवान हुआ था.पत्रकारिता के क्षेत्र में आये महज दो साल हुए थे.मेरे साथ मेरी
पत्रकारिता भी जवान हो रही थी.दोनों जोश से भरे थे.उन दिनों मैं रे रोड में रहता
था. वहां बंगलादेशियों की तादात धीरे-धीरे बढ़ रही थी.साथ ही नशे का कारोबार भी
तेजी से बढ़ने लगा था.गर्दुल्लों की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही थी.ब्रिटानिया
कम्पनी के पिछले हिस्से में पूरा लोहा बाज़ार था.दरगाह से दो गली पहले,एक गाले में
मेरा ठिकाना था.संघर्ष के दिन थे.फिर भी मजे के दिन थे. क्योंकि देश के लिए, समाज
के लिए कुछ करने का जज्बा था.कलम साथ में थी.मैंने कई खबरें नशा के खिलाफ़,रे रोड पुल पर हो रहे अवैध निर्माण अवैध खड़ी हो रही झोपड़ियों के खिलाफ लिखी थी.पास में गोदी थी.वहां पर अस्थायी
मजदूरों की आवाज उठाई थी.अपने परिचय से कई स्वास्थ्य शिविर लगवाये थे.इसलिए रे
रोड,मझगाँव,डाकयार्ड और शिवड़ी इलाके में कुछ लोग जानने लगे थे.ये पूरा क्षेत्र
अवैध कारोबार से भरा था.गुंडों की भी खूब चलती थी, नेताओं की भी यहाँ चल निकली थी.इस क्षेत्र में दो नेताओं की चलती थी.दोनों ही एक पार्टी के थे.दोनों में स्पर्धा भी थी,पर
सामने मिलते तो गले लगते.उन्हीं दिनों एक रात करीब ग्यारह बज रहे होंगे.किसी ने
मेरे गाले का शटर पीटा.मैं अपने स्टोव के पास बैठा था.स्टोव पर रखा चावल खदबदाना
शुरू कर रहा था.मैं उठकर शटर की तरफ बढ़ा ही था कि पुनः शटर पर जोर से हाथ मारते
हुए आवाज़ आयी.‘मैं हूँ महराज पप्पू’ मैंने जाकर शटर उठाया तो देखा छतरी लिए पप्पू सामने और उनके साथ १ नौजवान और एक अधेड़ उम्र की महिला खडी थी.सबसे पहले
मैंने सबको अन्दर आने को कहा. मैंने सबको अपनी पट्टेवाली खाट पर बिठाया.उसके बाद
चावल को एक बार करछुल से चलाकर पप्पू से मुखातिब होते हुए बोला- अब बताइए क्या
बात है?इतनी देर रात,वो भी इस बारिश में,पप्पू बोले- क्या बताऊँ महराज? माफ़ करो.पन
कामइच अइसा आन पड़ा.ये माउसी है न, इसके बेटे को पुलिस उठा के ले गयी. 2 दिन बादइच
उसका शादी मनाना है. मैंने पूछा-क्या किया था उसने? कुछ नहीं,कुछ भी नहीं उसके साथ
आये युवक ने कहा. मैंने कहा बिना कुछ किये या गलती के पुलिस क्यों ले जायेगी. अब
पप्पू बोला- माउसी तूं बोल ना. देख बेटा अभी तो... तभी पप्पू बात काटते हुए बोला.
माउसी ठीक से बात कर. बेटा नहीं ये साहब हैं,पत्रकार ...बोले तो पत्रकार... इनका बदन
पर मत जा.बोत पहुँच है इनकी. मैंने इशारे से पप्पू को शांत किया.मैंने कहा- कहिये
मौसी. मौसी ने कहना शुरू किया. साहब मेरे बेटे का परसों लगन होने को है.आज साढ़े दस बजे अचानक पुलिस आई और
उठाकर ले गई.उस समय चंदू खाना खा रहा था.खाना भी नहीं खाने दिया,जबरदस्ती ले
गई.मैं बोत हात जोड़ी,ये भी बोली परसों उसका लगन है.पर मेरा एक न सुनी,जबरदस्ती
जीप में बिठा कर ले गई.मैंने पूछा- इससे पहले कभी पुलिस आप के बेटे को पुलिस
स्टेशन ले गयी है.तभी मौसी के साथ आया लडका बोला- कई बार ले गई है.पर २-४ घंटे में
छोड़ भी देती.पर तब पुलिस बता कर आती और इज्जत से ले जाती. अबकी बार तो खींचकर ले
गयी कालर पकड़कर और खाना भी खाने नहीं दिया.फिर पहले क्यों ले जाती थी? मैंने कहा – आप लोग सही–सही बताइए.तभी मैं कुछ
मदत कर पाऊंगा.लडका बोला –उसको छुड़वा दो साब बस! शादी तक. उसके बाद अपुन पुलिस से
खुद ही निपट लेगा. मैंने कहा फिर अभी क्यों नहीं निपट लेते? अपुन लोग शादी के वजह
से पंगा नहीं चाहता और फिर कोई नया आड़ी खोपड़ी का नया इस्पेक्टर आयेला है. त्याचा
आड़ नाव जोशी तरी काय आहे.इस बीच मेरे चावल से जलने की गंध आने लगी.मैं झट से उठा
और स्टोव की कुंजी ढीली कर बुझाया. मेरे यूँ उठने से वे एक पल के लिए चौंक गये
थे.पप्पू बोला अपुन की वजह से महराज आप का चावल जल गया.मैंने कहा कोई बात नहीं.पप्पू बोला- होटल में खा लेना.मेरे को मालुम हैं.उधर शिवड़ी नाके पर साढ़े १२ तक होटल खुला रहता
है. मैंने पूछा- पुलिस स्टेशन का नम्बर है.सबने ना में सिर हिलाया.आखिरकार मौसी का
उदास चेहरा देखकर मैंने पुलिस स्टेशन जाने का निर्णय लिया. रिमझिम–रिमझिम बारिश हो
रही थे.हम १२ बजे रात के करीब टैक्सी से शिवड़ी पुलिस स्टेशन पहुँचे.प्रवेश द्वार
पर हवलदार महोदय तैनात थे. हमें देखते ही बोल फूट पड़े- काय झाला. मैंने कहा जोशी
साहेब आहेत का. हवलदार ने तुरंत प्रतिप्रश्न किया ? तुमी कोण.मैंने कहा- मी
वार्ताहर पवन तिवारी. साहेबाला भेटैच. तुम्हाला माइते चंदू शिर्के. हवलदार ने
बनावटी अनभिज्ञता जताते हुए बोला- कोण चन्दू शिर्के? फिर मैंने कहा ठीक है.आप को नहीं
पता,कोई बात नहीं.मैं जोशी जी से बात कर लूंगा.जोशी जी घरी गेले.सकाली दहा वाजता
भेंटूया.तर या वेळी कोण आहे. हवलदार- वाघमारे साहेब.मैंने कहा ठीक है. उन्ही से
मिल लेता हूँ. हवलदार ने कहा रुको जरा. हमें रोककर हवलदार पहले स्वंय मेरी मुलाक़ात
के बारे में वाघमारे के बात करने गया और झटपट लौट भी आया.आते ही उसने बाएं हाथ की
तरफ इशारा किया.मेरे साथ सब आगे बढे ही थे कि, हवलदार ने रोक दिया. सब नहीं जा
सकते. सिर्फ आप, मैंने सबको बाहर रुकने का इशारा किया और मैं अकेले गया.सामने
कुर्सी पर अच्छे कद के, सिर में आगे के बाल के बिना भी प्रभावशाली लग रहे वाघमारे
जी बैठे थे. मैंने गर्मजोशी से अभिवादन किया.नमस्कार! वाघमारे जी, कैसे हैं? साथ
ही अपना भेंट पत्र भी दिया.उन्होंने एक हल्की नजर से भेंट पत्र देख कर जेब में रखते हुए
तत्क्षण जवाब दिया- बढ़िया,ड्यूटी निभा रहे हैं आप बताएं . मैंने कहा- मैं भी
कर्तव्य निभाने ही आया हूँ. उन्होंने कहा बताइए इतनी रात को कैसे आना हुआ? इससे
पहले आप को देखा नहीं.बाकी पत्रकार तो मिलते रहते है.आप इस एरिये में नये आये हैं
क्या ? मैंने कहा – २ वर्ष हो गये. वैसे कभी काम पड़ा नहीं और आज पड़ा तो आप के
द्वार आ गया. वैसे आप की पुलिस ने रे रोड से एक चंदू नाम के युवक को रात साढ़े दस
बजे उसके घर से उठाया है.उसी की जानकारी चाहिए. वाघमारे ने पुलिसिया तेवर में कहा
सिर्फ जानकारी ही चाहिए या कुछ और भी! मैंने कहा-बस
अभी तो जानकारी ही चाहिए. उसके केस की एक छाया प्रति चाहिए,पर काफी रात हो गई
है तो,सिर्फ दिखा देंगे तो भी चल जाएगा.अभी तो हम नहीं दिखा सकते.जोशी सर कल
सुबह आयेंगे,वही दे सकेंगे. अच्छा क्या ये बतायेंगे कि उस पर क्या आरोप हैं? या किन
आरोपों के तहत गिरफ्तार किया गया है. तिवारी जी,उस पर आधा दर्जन से अधिक केस दर्ज हैं.मारपीट, धमकाने, ह्प्ता-वसूली
जैसे और वो नेता जी का ख़ास पंटर है.उसे बिना किसी बड़े कारण के रात में क्यों
गिरफ्तार करेंगे? जो भी उस पर केस हैं वो नेता जी के लिए वफादारी और शाबासी पाने
के चक्कर में हुए.वो पहले भी कई बार पुलिस स्टेशन का दरबार कर चुका है और हर बार नेता जी ने ही छुड़ाया भी. पर्र्र्रर... कहते-कहते वाघमारे की जुबान बंद
हो गई.एक क्षण रुककर बोले- बड़े साब को ऊपर से स्पेशल आर्डर आया था कि चंदू को अभी
उठाना है सो उठाना पड़ा.अब असली मामला क्या है?बड़े साहब जाने. मैं ही तो कालर पकड़
घर से बाहर लाया.उसकी माँ गिडगिडा रही थी. मेरे को भी अच्छा नहीं लग रहा था.उसकी
माँ बोली परसों उसका लगन है. मैं साहब को बोला भी, पर वे बोले नहीं ले चलो.वो घर पर है.ये जानकारी भी उसके ख़ास दोस्त ढोलकिया
ने ही दी. इसलिए तिवारी जी उसका छूटना मुश्किल है. मेरे हाथ में कुछ नहीं है.अब आप
को जो करना है करो. मैंने कहा उसकी माँ भी साथ आयी है.बड़ी उम्मीद से मेरे पास आयी
है.उसकी शादी तक के लिए छोड़ नहीं सकते.शादी बाद गिरफ्तार कर लीजिये.एक पत्रकार
नहीं, एक सहज मनुष्य होने के नाते मानवतावश ये मेरा निवेदन है. उप निरीक्षक वाघमारे
ने सहजता से कहा- देखो तिवारी आप युवा हो.आप की बोलचाल से सही पत्रकार लगे. इसलिए
मैंने सारी परिस्थिति बता दी.मेरे बस में कुछ नहीं है.अगर कुछ कर सकते हैं,तो बड़े
साब ही कर सकते हैं पर मुझे तो मुश्किल ही लगता है.मैंने कहा-सुबह तक तो देर हो जायेगी
वाघमारे साहब.अभी उनसे नहीं मिल सकते या बात हो सकती.बाघमारे बोले – पता नहीं
जाग रहे होंगे या सो गये होंगे.फिर उनको इतनी रात डिस्टर्ब करना..... इतना कहना था
कि मेज पर पड़ा फ़ोन बज उठा.वाघमारे ने तत्परता से फोन उठाया. हैलो शिवड़ी पुलिस
स्टेशन .. उधर से आवाज़ आयी.वाघमारे मी तरुण जोशी.वाघमारे चौकन्ना होते
हुए बोले यस सर... चंदू के घर से कोई आया. सर उसकी माँ आयी है.बाहर बैठी है.एक
पवन तिवारी बोल के पत्रकार भी आये हैं. सारी सर, आप आ जाते तो .....दूसरी तरफ से आवाज़ आयी - ठीक है,मैं आता
हूँ.फोन कट गया.वाघमारे ने फोन का चोंगा रखते हुए एक लम्बी साँस ली और बोले- तिवारी जी लगता है आप का भाग्य ठीक है.सामने से साहब का फोन आ गया.वे आ रहे हैं.इतनी रात मतलब कुछ तो बड़ा मामला है.दिन होता तो आप को चाय भी पिलाता. १५ मिनट में आ
जायेंगे. मैंने कहा ठीक है. मैं बाहर हूँ. मैं जैसे ही बाहर आया.मौसी तुरंत खड़ी हो
गई.उनकी आँखों में एक उम्मीद और साथ में आशंका भी थी.उन्होंने पूछा क्या हुआ?साब ने क्या कहा- मैंने कहा- मेरी बात वाघमारे जी से हुई है.पर मामला
बड़े साहब के हाथ में है.उनसे भी बात हुई है.अभी बड़े साहब आ रहे है.तभी कुछ
होगा.तुम चिंता मत करो मौसी,सब ठीक होगा. मौसी की आखें भर आई.मैं भी
किंकर्तव्यविमूढ़ था,पर उम्मीद अभी बाकी थी.भूख भी कचोट रही थी.पर ऐसी स्थिति में
खाने के लिए कैसे कहूँ ?. पप्पू की ओर मुखातिब होते हुए मैंने किसी तरह सूखते गले
से हिम्मत जुटाकर कहा- पप्पू भाई जब तक
बड़े साहब आते हैं, तब तक चलते देख आते. कुछ खाने को मिल जाय तो.पप्पू तुरंत सहमति
में सर हिलाते हुए खड़े हो गये.अरे महराज गलती हो गई. आप के खाने की याद ही नहीं
रही.पता नहीं मैं आज ही क्यों भूल रहा हूँ.पप्पू ने छतरी उठाई और चल दिए.चारो तरफ
सन्नाटा था. हाँ मुख्य सड़क पर टैंकरों और ट्रकों की आवाजा ही नीरवता को ध्वंस कर
रही थी.जिस होटल के बारे में पप्पू ने जिक्र किया था.वहाँ पहुँचे तो पता चला सब
ख़त्म हो गया है.वेटर सफाई में लगे थे. पप्पू ने फिर से तसल्ली के लिए पूछा- कुछ भी नहीं है.गल्ले पर बैठे
आदमी ने रसोई की तरफ देखते हुए बोला – कुछ है शेट्टी. उधर से उत्तर आया. हाफ प्लेट
दाल राईस होगा. गल्ले पर बैठे आदमी ने पप्पू की तरफ देखा.पप्पू ने मेरी तरफ नज़र घुमाई.मैंने हाँ में सर हिला दिया.
मरता क्या न करता.
जब हम वापस पुलिस स्टेशन पहुँचे तो, बारिश बंद हो चुकी थी.पुलिस स्टेशन में
घुसते ही हमने देखा कि मौसी रोते हुए अन्दर से बाहर आ रही थी.हमें एक अनहोनी का
अनुभव हुआ.मौसी मुझे पाकर लिपट गयी और रोने लगी.रोने की आवाज़ आधी रात में एक अवसाद पैदा करने लगी. मैंने पूछा क्या हुआ? तो वह और जोर रोने लगी. मैंने उन्हें बेंच पर बिठाने की
कोशिश करते हुए कहा. आप बैठिये मैं बात करता हूँ.तो उन्होंने मुझे और जोर से जकड़
लिया.वे रोते हुए बोली उनको चंदू के बदले पगली चाहिए. मैंने पप्पू की तरफ देखा.
पप्पू बोला चंदू की बहन रानी.मौसी उसे पगली कहती है.सुनकर तो मेरा मन भन्ना गया. मुझे
उस जोशी पर इतना गुस्सा आया कि तभी वाघमारे गलियारे में आते दिखे, उन्होंने मुझे
इशारे से बुलाया. मैं उनकी तरफ तेज कदमों से बढ़ते हुए बोला- ऐसी बात करते हुए शर्म नहीं आई
आप के साहब को. वाघमारे ने मुझे शांत होने का
संकेत दिया. फिर बोले- पहले धैर्य से सर की बात सुन लीजियेगा. फिर आप को जो करना
होगा करियेगा.वाघमारे मुझे वरिष्ठ पोलीस निरीक्षक तरुण जोशी के कक्ष की ओर लेकर
चल पड़े. मैं अन्दर ही अन्दर खदबदा रहा था.जोशी जी ने देखते ही गर्मजोशी से हाथ
बढ़ाया तो मैंने हाथ जोड़ लिए तो उन्होंने
तुरंत हाथ पीछे किये और हाथ जोड़ लिए.आप तो काफी यंग हैं तिवारी जी. मैंने भी
तत्क्षण जवाब दिया. आप भी काफी युवा हैं.वे हंस दिए पर मैं बदले में मुस्करा भी न सका.६ फुट के हट्टे-कट्टे खूबसूरत नौजवान थे जोशी जी.उनके व्यक्तित्व में एक आकर्षण भी था,पर उस समय एक माँ का रुदन मेरे कानों में दर्द बनकर रिस रहा था.तभी जोशी जी की आवाज़ मेरे कानों में गूंजी. प्लीज़ तिवारी जी,आप पहले पूरी
बात सुन लीजिये.फिर आप अपनी बात कहिये. देखिये चंदू का मामला बेहद शर्मनाक है.उसे
उसके अपराधों की वजह से नहीं, उसकी खूबसूरत बहन के कारण गिरफ्तार किया गया है. उसे उठाने का
गृह मंत्रालय से फोन आया था और बाकायदा ताकीद की गयी थी कि जब तक स्थानीय आमदार [विधायक
] जलगाँवकर जी न कहें किसी और के कहने से न छोड़ा जाय.वह जिस नेता का पंटर है.उस
नेता ने ही उसे उठवाया है.जलगाँवकर का आदमी गिरफ्तारी के समय ठाने आकर गया था.उनका
दिल उसकी बहन पर आ गया है.उन्हें हर हाल में एक रात के लिए उसकी बहन चाहिए.उसकी बहन जैसे ही
उनके पास पहुँच जायेगी.उनका फोन उसे छोड़ने के लिए आ जायेगा.उन्होंने जानबूझकर इस
समय उसे पकड़वाया है.उन्हें पता है कि परसों उसकी शादी है.अब परसों क्या? कल ही समझो.आज की रात तो गई. उस पर ७ केस पहले से चल रहे हैं.देखिये हम नहीं उठाते,तो क्राइम
ब्रांच से उठवा देते.हमारा ट्रांसफर करवा देते. समझिये आज शनिवार हो गया.रविवार
शादी है.कल दो दिन न्यायालय भी बंद है.सत्ता उनकी है.मैंने कहा- तो आप अपने
ट्रांसफर के डर से किसी गरीब की बेटी की इज्जत लुटवा देंगे.चंदू को मालूम है.वाघमारे ने कहा-हाँ पहले तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ.फिर जब उसने कई बार फोन करवाया.उन्होंने फोन ही नहीं उठाया.अपने दो बन्दों को भेजा था.वे गये पर वापस आये ही नहीं.हम छोड़ भी
दें, तो एनकाउंटर करवा देंगे.हमें जो सजा मिलेगी सो अलग.हमारी बात चल ही रही थी
कि अचानक धड़ से दरवाज़ा खुला एक लड़की रणचंडी की तरह दाखिल हुई.इसमें जोशी साब कोण आहे.जोशी
जी ने कहा मैं हूँ.तुमारा कोई भेन-बाई नई है.तुम भी तो जवान है.तुम भी तो मरद हो.उस भड़वे के पास मैं नहीं जाती तो नहीं जाती.वो ऐसाइच प्यासा मरेंगा साला.तुम बोलो
मेरे भाई को छोड़ने का तुमको क्या मांगता? मेरे को मांगता... चलो मैं दी.... पर उस भड़वे के
हाथ तो मैं आने से रही. मेरे भाई का अक्खा लाइफ उस भड़वे जलगाँवकर ने खराब किया.वह जैसे एक ही सांस में बोले जा रही थी.बोलती ही जा रही थी.उसको मवाली किसने बनाया, उसी ने,शराबी किसने बनाया,उसी ने,चुनाव में मारपीट किसके
लिए,उसी के लिए. उसी हरामी ने हमारा घर
बर्बाद किया.वो मेरे को बहुत फुसलाना चाहा,पर मैं उसके हाथ नई आयी. अब वो
कुत्र्या मेरे भाई को मोहरा बनाया.पर वो मेरे को पायेगा नहीं. बोलो साब, मैं बी
जवान, तुम बी जवान.तुम बी खुपसुरत मैं भी.मैं खुपसुरत नई तो हरामी मेरे पिच्छू हाथ-पेर धो के
काईको पड़ता. कुछ तो अपुन में है.मेरे को भी पता है.वरना साला सबकी आँख में मेरे को
ही देख के अंगार क्यूँ लगता? नई तो मैं इसी पोलिस स्टेशन के सामने खुद को आग लगाएगी.अब
बोलो- पर सबकी बोलती बंद. सबसे अधिक हैरान तो मैं था. पहली बार इस अंदाज़ में किसी
लडकी को साक्षात् बोलते देखा. साक्षात् रणचंडी थी.पूरे कक्ष में सन्नाटा छा गया.बोलो दम नहीं है क्या ? मैंने हिम्मत करके कहा- शांत हो जाइए.बैठिये,कुछ रास्ता
निकालेंगे. तुम कोन? नेता है/? मैंने कहा नहीं पत्रकार हूँ.फिर ठीक है तुमने सब सुन
लिया न, इमानदारी से सब छापना. वो भडवे मंत्री के बारे में भी लिखना.आप बैठिये तो –
फिर वह बैठी. मैंने कहा आप मेरी बहन जैसी हो. इतना कहना था कि, उसके मुंह से गोली चली.वो भडवा
भी मुझे बेटी कहता था और अब मेरे साथ अपना मुंह काला करना चाहता है. मुझे लगा कि जैसे
किसी ने मुझे तमाचा जड़ दिया है. मैं सह न सका.मैं तुरंत उठकर बाहर कक्ष से बाहर आ गया. कुछ समय पहले
जिसका दर्द मेरा दर्द था. जिसके लिए एक बजे रात को मैं पुलिस स्टेशन में बैठा था.उसी
ने मुझे इस तरह गाली दी. बाहर आया तो सब खड़े हो गये.पप्पू बोला क्या हुआ महराज? मैंने कहा- आप की बहन सब संभाल लेगी.बात हो गई है.अब मैं जा रहा हूँ.पप्पू बोला
साथ चलते हैं. महराज पगली अन्दर ही है.मैंने हाँ में सर हिलाया. मेरे इस तरह सिर
हिलाने से पप्पू को कुछ गलत होने का अंदेशा हुआ.वो तुरंत जोशी के कक्ष की ओर मौसी
और लड़के के साथ बढ़ चला. साथ ही आवाज़ दिया आप जाना मत महराज.बूंदा-बांदी फिर शुरू
हो गयी थी.मैं बाहर ही बेंच पर बैठ गया. थोड़ी देर बाद सब बाहर आये.चेहरे पर अभी
भी असहजता के भाव थे.लडकी ने बाहर आकर मांफी मांगी. मेरे को माफी करो. मेरे को आप
के बारे में पता नहीं था.आई ने,पप्पू भाई ने मेरे को बताया.माफ़ करो भाई. जब उसने
ऐसा कहा तो,मेरा मन भी हल्का हो गया.मैंने कहा कोई बात नहीं.फिर सब चन्दू से
मिलने गये.वह एक १०*१२ की कोठारी थी जिसमें चंदू बंद था.जब हम चलने लगे तो तो चंदू
ने भरी आखों से कहा- रानी मैं उसे ज़िंदा नहीं छोडूंगा. जलगाँवकर मेरे सीने में
खंजर घोंपा और वह फफक पड़ा.मौसी भी रोने लगी.रानी की आखें भी बह रही थी.आखिर तय हुआ,कल चंदू जेल से भाग जाएगा.चूंकी उसकी गिरफ्तारी कागज में दिखाई नही गई है. सो
कानूनन कुछ नहीं होगा.बाकी जो होगा देखा जाएगा.उसके बाद हम वापस घर आ गये.बाद
में पप्पू से पता चला कि अगले दिन चंदू को जोशी ने छोड़ दिया और चंदू का परिवार रातों-रात
मुंबई से गायब हो गया. बदले में तरुण जोशी का स्थांतरण नक्सल क्षेत्र गडचिरोली में
कर दिया गया. फिर अचानक 18 साल बाद बतौर दक्षिण मुंबई में आईपीयस रानी जोशी पुलिस
आयुक्त बन कर आयी.तो कुछ महीनों बाद जब वे रे रोड की उस चाल में आयी.जहाँ वे पली-बढ़ी थीं.तो लोगों को मालुम हुआ कि ये चंदू शिर्के की बहन की रानी शिर्के है.फिर एक दिन
मैं और पप्पू उनके बंगले पर मिलने गये तो,पूरी कहानी पता चली कि तरुण जोशी जी ने
रानी के पूरे परिवार को यवतमाल अपनी मौसी के यहाँ भेज दिया.वहीं से रानी ने फिर से आगे
की पढाई शुरू की . उसके बादतरुण जोशी ने ही रानी को आईपीएस की तैयारी के लिए दिल्ली भेजा.तीन साल
दिल्ली में तैयारी के बाद पहले ही प्रयास मेंआईपीएस परीक्षा में सफल रही.इस बीच एक सादे समारोह में परिजनों
की मौजूदगी में रानी और तरुण ने विवाह किया.विवाह के बाद रानी शिर्के रानी जोशी हो गई. चंदू ने भी
शादी के बाद सराफत की जिन्दगी बिताने का निर्णय लिया. चंदू आज भी वहीं यवतमाल में
खेती करते हैं.सुखी हैं अपने बाल बच्चों में.वैसे जलगांवकर ने चंदू को खोजने की बहुत कोशिश
की पर सफल नहीं हुआ.एक बार नाशिक में सामना हुआ था. पर जलगांवकर कुछ कर नहीं पाया.
उस समय वो सेक्स स्कैंडल में फंसा था.विपक्ष और अखबार वालों ने उसका जीना हराम कर
दिया था.रानी ने महाराष्ट्र कैडर चुना और
पहली पोस्टिंग नाशिक और 11 महीने बाद ही दूसरी पोस्टिंग मुंबई. जलगांवकर ने जोशी
जी को इस बीच बहुत परेशान किया. ड्यूटी में लापरवाही के नाम सस्पेंड करा दिया. 2
साल तक सस्पेंड रहने के बाद न्यायालय से बहाल होकर आये.बाद में सहायक पुलिस आयुक्त
के पद से सेवा निवृत्त हुए.इस बीच जलगाँवकर सेक्स स्कैंडल में फंस गया.पार्टी ने
बाहर का रास्ता दिखा दिया.उसके बाद जमीन घोटालें फंसा और फिर तीन साल पहले एक कार
दुर्घटना में उसकी मौत हो गयी.
रानी के बारे में कहना ही क्या ? जो
लड़की ठीक से हिन्दी नहीं बोल पाती थी.वही आज लोगों के लिए अनुकरणीय है.मिशाल है. वास्तव
में इस कहानी के नेपथ्य के हीरो जोशी जी थे.जिन्होंने एक अनगढ़ पत्थर को परखा. उसे
तराश कर न सिर्फ मूर्ति बनाई बल्कि उसे मंदिर में स्थापित करवाकर देवी बना दिया.शेष तो सबको पता है.तो ये थी रानी की पूरी कहानी. जो मुझे पता थी और आज वे अपनी
आत्मकथा को ‘गरीबी वाली जवानी’ के नाम से लोगों के सामने ले आईं. मैंने घड़ी पर नज़र
डाली तो रात के तीन बज चुके थे.मैंने कहा सो जाइए. बातों-बातों में समय का पता ही
नहीं चला.मेरे इतने बोलने के बाद भी जब शालू जी ने कुछ नहीं कहा तो मैंने उन्हें छूकर
देखा,हिलाया,तो पता चला शालू जी सो चुकी थी.शुभ रात्रि
पवन तिवारी
poetpawan50@ gmail.com