यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 25 सितंबर 2016

नेता तो अब देश में नीलकंठ पक्षी हो गये हैं ....


आज – कल एक शब्द जो सबसे ज्यादा चर्चा और प्रयोग में रहता है वो नेता है. वो भी गलत कारणों से. समाचार पत्रों,व्यंग चित्रों,मंचीय कवियों की कविताओं में और आम जनता की जुबान पर गाली की तरह अक्सर प्रयोग होते रहता है.नेता शब्द अब आम जन जीवन में नकारात्मकता के परिपेक्ष्य में मुहावरे का काम करता है जैसे – सुना है आज-कल नेता बन रहे हो. तुम तो नेता लग रहे हो , मुझसे नेता गिरी मत दिखाना,तो अब तुम भी नेता बनने चले हो, तो आखिर तुम भी नेता ही निकले, बस अब नेता बनना ही बाकी रह गया था, मेरे ही साथ नेतागिरी, ये नेतागिरी कहीं और दिखाना, ऐसे वाक्य अक्सर सामान्य लोगों के बीच सुनने को मिल जाता है. एक वाक्य और नेता से सम्बंधित  जो मैंने अपने सामने एकव्यक्ति द्वारा अपने  परिचित व्यक्ति को कहते सुना और फिर उसकी प्रतिक्रिया भी सुना वो आप के समक्ष रखना चाहता हूँ. एक व्यक्ति ने दूसरे को सामने देखते ही कहा -और नेता जी, इतना सुनना था कि सामने वाले ने लरजती भाषा में कहा- इस तरह क्यों गली दे रहे हो भाई .इससे अच्छा दो जूते मार देते. मैंने ऐसा क्या गुनाह कर दिया जो आप मुझे इस तरह की गाली दे रहे हो , कुछ और कह लेते. खैर मैंने ये बात ‘’नेता’’ शब्द के प्रति वर्तमान धारणा के परिपेक्ष्य में कही है. जबकि नेता का वास्तविक अर्थ बहुत ही पवित्र और गर्व से भर देने वाला है. किन्तु यदि आज नेता धब्द के प्रति ऐसी धारणा बनी है तो अवश्य इसका कोई ठोस और बड़ा कारण होगा.
  पिछले ५ दशकों से निरंतर नेताओं के चरित्र और जीवन शैली में अप्रत्याशित गिरावट जारी है.लोगो में इस बीच ये धारणा कब स्थापित हो गयी कि नेता का अर्थ,भ्रष्टाचारी,धोखेबाज,गुण्डा,चरित्रहीन,लुटेरा होता है. ठीक – ठीक कोई तारीख नहीं बता सकते. पर पिछले 2 दशकों में ही ये धारणा पूरी तरह स्थापित हुई है. ऐसा मेरा व्यक्तिगत मानना है. और फिर नेताओं पर इस तरह के मुहावरे चलन में आये, अन्यथा नेताओं के दिए नारे चलन में थे जैसे - तुम मुझे खून दो ,मैं तुम्हे आजादी दूंगा, इन्कलाब ज़िंदा बाद,  जय जवान – जय किसान आदि.
नेता अपने आप में हिन्दी का अद्भुत और पराक्रमी शब्द है.मुझे तो इस शब्द पर गर्व है. क्योंकि इसकी व्याख्या के लिए एक ग्रन्थ की रचना भी कम पड़ जायेगी. यह बहुउपयोगी शब्द है और अलग-अलग काल एवं परिस्थिति में अलग –अलग अर्थ सहजता से धारण कर लेता है. नेता का सहज और सही अर्थ होता है ‘अगुआ’. उत्तरप्रदेश में विवाह के सन्दर्भ में अगुआ का शब्द का सर्वाधिक प्रयोग होता था, अब भी होता है पर अब कम हो गया है. अगुआ जो बिना स्वार्थ आगे बढ़कर दो अपरिचित परिवारों में परिचय कराये. जिस पर दोनों पक्षों का विश्वास हो और दोनों परिवारों में रिश्तेदारी कायम करवाए, इस बीच कुछ उलझे तो सुलझाये, बिना किसी स्वार्थ के. अच्छा रिश्ता चल पड़ा तो अगुआ कौन किसी को याद नहीं ? सारा श्रेय खुद को अर्पित और यदि कुछ ठीक नहीं हुआ तो सारा दोष अगुआ का.दोनों पक्षों के तिरस्कार और ह्रदयवेधी बाण अगुआ को सहना पड़ता है. शिव की तरह मलाई दूसरों ने  खाई और विष शिव के हिस्से में आया. बिना किसी गुनाह के.तो ऐसा व्यक्ति अगुआ या नेता होता है.दूसरे शब्दों में अगुआ अर्थात नेतृत्व करने वाला, सबसे आगे चलने वाला सेनापति.नेतृत्व का गुण होना या नेतृत्व करना कोई साधारण कार्य नहीं है. बेहद दुरूह है.
  नेतृत्व करना सबसे जोखिम का काम है.अगुआ समूह में सबसे आगे चलता है.इसलिए हानि का पहला अवसर उसे ही मिलता है या पहला हमला उसी पर होगा.उसमें अपने समूह या सेना या कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने की जिम्मेदारी प्रतिपल होती है. उसे स्वयं में ये विश्वास बनाये रखना होता है कि मेरे लोगो को मुझमें विश्वास है. उसके साथ ही लोगो को ये विश्वास दिलाने की क्षमता बार –बार दिखनी होती है कि वह उनकी, उनके हितों व उनके अधिकारों की रक्षा करने में समर्थ है. संकट काल में उनके लिए अपना सर्वस्व और सर्व प्रथम बलिदान उनका अगुआ या सेनापति देगा. नेता समाज का भी हो सकता है .नेता किसी आन्दोलन का भी हो सकता है और नेता या सेनापति किसी फ़ौज का भी हो सकता है, किन्तु नेता की जिम्मेदारी वही होती है नेतृत्व करना. जिसमें उसे स्व का सब कुछ स्वाहा करने के लिए प्रतिपल तैयार रहना पड़ता है. ऐसा व्यक्ति ही नेता हो सकता है. अन्यथा वह कुछ भी हो सकता है किन्तु नेता नहीं हो सकता.
 ऐसे में आम जनता को नेता जैसे पवित्र शब्द का प्रयोग राजनीति में रहने वाले लोगों के लिए प्रयोग करना बंद कर देना चाहिए. इससे नेता शब्द का उसके सच्चे अर्थ का अपमान होता हैं. हमारे देश में नेता शब्द का प्रयोग आज तक सिर्फ एक ही व्यक्ति के लिए प्रयोग हुआ और वो थे पुण्यात्मा, भारत माता के तेजस्वी पुत्र सुभाषचंद्र बोस जी. उनके नाम के आगे नेता शब्द इस प्रकार जुडा कि दोनों एक दूसरे के पर्याय हो गये. आज की तारीख में उन्हें उनके वास्तविक नाम के बजाय नेता जी के आम से अधिक संबोधित किया जाता है. उनके नेतृत्व के गुणों को देखकर ही सिंगापूर में रासबिहारी बोस ने ४ जुलाई १९४३ को सुभाषचन्द्र को आज़ाद हिन्द फौज़ का सेनापति नियुक्त किया. उन्हें सबसे पहले एडोल्फ हिटलर ने नेता जी कहकर संबोधित किया था. उन्होंने ही दुनिया भर में बिखरे भारतीयों को एकजुट किया. उनमें अंग्रेजों से लड़ने और उन्हें हराने का जज्बा पैदा किया. फलस्वरूप आज़ाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों से न सिर्फ लड़ाई की बल्की अंग्रेजों को पूर्वोत्तर भारत में हराया भी. उन्होंने अपने लोगों के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया. तो ऐसा होता है नेता. आज नेता नीलकंठ पक्षी हो गया है.
 आज राजनीति एक शासन एवं व्यवसाय करने का सफल माध्यम है. राजनीति है क्या ? इसकी परिभाषा क्या है ? आइये जानते हैं ... किसी देश या राज्य पर शासन करने की विद्या का ज्ञान ही राजनीति कहलाता है. ऐसे में इस ज्ञान या विद्या के द्वारा जनता पर शासन करने वाले राजनीतिज्ञ कहलाते हैं. ये शासक हैं. सेवक नहीं. ये वो लोग है जो हमारे हिस्से के संसाधनों पर पर मौज़ करते हैं और हमारा ही खून चूसते हैं.और हमीं से अपनी सुरक्षा और जय भी करवाते हैं. राजनीतिज्ञ आज राजनीतिज्ञता का का पेशेवर व्यवसाय कर रहे हैं. इससे अच्छा और मुनाफे का व्यवसाय विश्व में दूसरा नहीं है. इसमें शिक्षा की भी कोई बाध्यता नहीं है. जिन्होंने अपना बचपन और जवानी पढाई को समर्पित कर दिया. आईयेएस,आईपीएस,आईआरएस,आईएफएस बनने के बाद वे इन्हीं राजनीतिज्ञों की हाँ हुजूरी करते हैं.५ वर्षों में ही सत्ता में आने के बाद राजनीतिज्ञ का आर्थिक सूचकांक कई सौ गुना बढ़ जाता है. तमाम सरकारी सहायता, छूट, सुविधाएँ, अधिकार पैरों तले घिसटने लगती हैं. सलामी भी बेवजह मिलती है और अनैतिकता की नेपथ्य से स्वीकृति [लाइसेंस] भी मिल जाती है. किस पेशे में इतना फायदा और सुविधा है ? राजनीतिज्ञ तो आज हर कोई बनाने को बेताब है, पर कोई नेता नहीं बनना चाहता. काश कोई नेता बने या ईश्वर अथवा भारत माता कोई चमत्कार करें. भारत में कोई नेता [जी]  पैदा हो. जो इण्डिया को फिर से भारत बना सके. इस देश के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने का मन लेकर आये. जयहिंद ,अस्तु      


                                

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