यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 31 अगस्त 2016

महादानी ऋषि दधीचि से जब भगवान् विष्णु भी हार गये और चक्र निष्क्रिय हो गया

  दधीचि से जब भगवान् विष्णु भी हार गये और चक्र निष्क्रिय हो गया
 मित्रों,पाठकों आज हम महादानी के रूप में विख्यात ऋषि दधीचि की कुछ अनकही कहानियाँ आप को बताऊंगा.  आइये उन अनसुनी कहानियों को मेरे साथ मेरे शब्दों में आत्मसात करें ...


# दधीचि जी का एक बार इंद्र ने सिर काट कर वध कर दिया था. किन्तु अश्विनीकुमारों ने पुनः दधीचि ऋषि का सिर जोड़ दिया.

# दक्ष के यज्ञ में शिव जी को नहीं बुलाने पर सबसे पहले दधीचि ने ही प्रजापति दक्ष की आलोचना की थी और यज्ञ का त्याग कर अपने आश्रम लौट आये थे.

# ऋषि दधीचि के समय समस्त विश्व में सिर्फ दधीचि को ही ब्रम्ह विद्या का ज्ञान था. जिसे इंद्र सीखना चाहते थे,किन्तु दधीचि ने इंद्र को ब्रम्ह विद्या सिखाने से मना कर दिया.क्योंकि उनकी दृष्टि में इंद्र उस विद्या को सीखने योग्य नहीं थे. तभी इंद्र ने प्रण किया कि अगर आप ने किसी को ब्रम्ह विद्या सिखाई तो मै आप का वध कर दूँगा. बाद में अश्विनीकुमार को ब्रम्ह विद्या का ज्ञान दधीचि ने दिया और प्रतिशोध स्वरूप इंद्र ने दधीचि का सर काट लिया.
राजा क्षुप से अपमानित होने पर शुक्राचार्य ने दधीचि को भगवान् शंकर की आराधना करने को कहा. जिसके फलस्वरूप भगवान् शंकर ने दधीचि की तपस्या से प्रसन्न होकर तीन वरदान दिए. जिनमें एक वरदान उनका किसी के भी द्वारा अवध्य होना भी था.

# दधीच ऋषि भगवान् शिव के परमभक्त थे. उनके आशीर्वाद के कारन उनका शरीर वज्र था .

# वज्र और ब्रम्हशिर नामक बाण दधीचि की रीढ़ हड्डियों से बना था.

# राजा क्षुप ने भारी तप करके भगवान् विष्णु को प्रसन्न कर दधीचि को नीचा दिखने के लिए भगवान् विष्णु से कहा- किन्तु विष्णु जी ऐसा कर न सके. युद्ध करके थक गये. दधीचि पर सुदर्शन चक्र से प्रहार किये किन्तु चक्र दधीचि को लगने से पहले ही कुण्ठित हो गया और विष्णु जी को हारकर वापस जाना पड़ा.

दधीचि के पिता का नाम अथर्वा और माता का नाम चित्ति था.

# दधीचि ने उस व्यक्ति [इंद्र] को अपना शरीर दान कर दिया. जिसने कभी उनका सर काट लिया था. क्या कोई ऐसा दानी कभी हुआ है.

# दधीचि ने जब अपना शरीर दान किया, उस समय उनकी पत्नी सुवर्चा गर्भवती थी. उन्होंने अपना पेट फाड़कर अपने बेटे को निकाल पीपल के पेड़ को सौंप सती हो गयी.

# दधीचि के पुत्र को पीपल ने पाला और पीपल के पत्ते खाकर बड़े हुए.  इसलिए उनका नाम पिप्लादि पड़ा.

# पिप्लादि भगवान् शंकर के अवतार माने जाते थे.जो उनके नाम का स्मरण करता है शनि उसे परेशान नहीं करता. पिप्लादि ने एकबार आकाश में शनि को घूर कर देख लिया था जिसके तेजोमय प्रभाव से शनि आकाश से सीधे पृथ्वी पर आकर गिर पड़े और उनका पैर टूट गया था .

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