पट्टीदार
24 साल पहले की बात है.
मैं बना था बड़ा भाई
घर में कई दिनों तक सोहर
गूंजता रहा.
सब खुस थे, मैं भी था बेहद
खुस
ढाई साल बाद सबसे छोटा भाई
भी आ गया.
और उसके बाद सबसे छोटी
दुलारी भी आ गई.
अब हम 8 भाई – बहन थे. और
मैं 10 साल का
भाई जब तक गोंद में खिलाने
लायक थे.
उन्हें गोंद में खिलाया,
जब कंधे पर बिठा कर घुमाने
लायक थे
उन्हें कंधे पर बिठाकर सारा
गाँव,
बाग, खेत-खलिहान और मेला भी
घुमाया
खुसी और गर्व से, बड़ा भाई
जो था.
फिर थोड़े और बड़े हुए
...चलने लगे उँगलियाँ पकड़ कर
फिर खर्चे भी बढ़ गए
भरण-पोषण के
बड़ा होने के फर्ज निभाने का
समय आ गया था
बीमार माँ, बड़ी बहनों का
विवाह,
छोटे भाई – बहनों की शिक्षा
और रेहन पर रखा खेत .
सब मेरी तरफ उम्मीद भरी
निगाहों से देख रहे थे
मैंने उनकी उम्मीदों की बलि
खुद को चढ़ा दी.
उम्र के 15वें साल में आ
गया शहर
की हाड़ तोड़ मेहनत, साफ़ किये
लोगों के जूठन
बदले में भर सका थोड़ा-थोड़ा
8 लोगों जीवन में रंग.
पहली बार पहुँचा शहर से
गाँव
सारा परिवार उत्सव में डूब
गया.
सिर्फ छोटी के सिवा ... 3
साल बाद जो गया था.
उसे याद भी नहीं रहा अपने
भईया का चेहरा
अब वो 6 साल की थी,
पर फ्राक,गुडिया और मिठाई
पा जाने के बाद वह पहचान
गयी.
सबके लिए कुछ न कुछ लाया था.
अम्मा के लिए खटाऊ की साड़ी,
बाबू जी के लिए धोती -
कुर्ता,
भाइयों के लिए पैंट-शर्ट और
जूते
बहनों के लिए शूट,और भी
बहुत कुछ
साथ में 5 हजार रूपये
जो रेहन छुड़ाने के लिए था.
जो आते ही बाबू जी के हाथों
में रख दिया था.
नहीं ले सका तो अपने एक नया
चप्पल,
मैंने अपने पुराने चप्पल को
दो बार सिला चुका था.
परिवार की इज्जत और रेहन के
खेत के जोड़ -घटाव के बीच.
समय तेजी दे दौड़ रहा था. जब
भी गाँव जाता
अम्मा कहती- बस कुछ दिनों
की बात है.
तुम्हारे दोनों भाई भी कुछ
ही सालों में
तुम्हारे दोनों बाजू बन जायेंगे.
भाइयों के बढ़ते बदन को
देखकर खुसी होती
जैसे किसान को अपनी लहलहाती
फसल देखकर होती
कभी कन्धों पर बैठकर घूमने
वाले भाई
अब कन्धों के बराबर हो गये
थे.
इस बीच हुआ मेरा विवाह,
आई जीवन में नई सहयोगी.
सहयोग से हुए दो ख़ूबसूरत
बच्चे.
और अचानक बढ़ गये कई खूबसूरत
खर्चे
गाँव वाले, रिश्तेदार कभी – कभी अम्मा से कहते
आप को अब किस बात की चिंता,
बहू आ गई
अब तो आप के तीनों बेटे
जवान हो गये.
मैं भी बेहद था खुस. भाई भी
आ गये शहर कमाने
साथ थे पत्नी और बच्चे भी.
पिता जी की बीमारी के बाद
छुटकी भी हो गई बीमार, लाया
शहर कराया दवा
हो गया कर्ज, खेती के लिए
बाबू जी ने मांगे भाइयों से पैसे
भाइयों ने कहा- भईया से
क्यों नहीं मांगते
बाबू जी ने समझाने की कोशिश
मेरी और छुटकी की दवा के
बाद उनका भी अब है परिवार
भाइयों ने बाबू जी से कहा -
उनका परिवार वो देंखें
बाबू जी का गला भर आया –
बोले अब तुम भाई नहीं रहे
पट्टीदार हो गये हो... और
फोन रख दिया
बहुत मार्मिक जीवन यात्रा,घर के बड़े बेटे की।एक पीढी ने इस तरह के कर्तव्यों के लिए खुद को बहुत मिटाया है पर बदले में तिरस्कार के अलावा कुछ और नहीं मिला।
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