यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 26 जून 2025

गौण सा पात्र हूँ मैं



गौण सा पात्र  हूँ  मैं,  उपन्यास है

एक  रेखा हूँ लक्षण हूँ बस,व्यास है

किंतु व्यक्तित्त्व इनसे भी मिलकर बने

डूबते को तो  तिनकों से भी आस है

 

सारे  संबंध  का  मूल  विश्वास  है

टूट जाता तो  बस त्रास  ही त्रास है

जो निभे   निभाये  नहीं जा सके

उनके जीवन में पछतावा बस काश है

 

जिनमें आशा है उनका तो आकाश है

उनके साहस के आगे  समय दास है

कोई  सामान्य, मामूली कैसा भी हो

जिसको छू देंगे ये बस  वही ख़ास है

 

है न ज़िन्दादिली  ज़िन्दगी लाश है

जैसे  पैरों  के  नीचे  दबी घास है

किंतु जिनमें  भरा प्रेम जीवन से है

उनके जीवन में बस हर्ष का राज है

 

पवन तिवारी

२६/०६/२०२५  


बाबू बाबू कहने वाले



बाबू बाबू कहने वाले

वक़्त पे गायब रहते हैं

गैरों को समझाने वाले

खुद ही आपा खोते हैं

 

जिन्हें मंच पे गाते देखा

वे जीवन में रोते हैं

कांटे का स्वभाव सब जाने

फिर क्यों काँटा बोते हैं

 

अपने घर का काम न करते

ग़ैर का बोझा ढोते हैं

मैल जमी है अंदर में पर

चेहरा मम मल धोते हैं

 

कुछ बिन समझे बोलते रहते

जैसे रट्टू तोते हैं

रात बनी है सोने को पर

कुछ जो दिन भर सोते हैं

 

पवन तिवारी

१५/०६/२०२५


जिन दिनों



जिन दिनों,

ज़िन्दगी जी रहा! था

सब कुछ

अच्छा लग रहा था!

जब से ज़िन्दगी

कटने लगी है,

ज़िन्दगी से

ऊब हो गयी है!

यह ऊब तो

बिलकुल कटती नहीं है!

इसे काटने के लिए

अक्सर सो जाता हूँ, और

शाम को उठाता हूँ! और

फिर शाम नहीं कटती!

और तो और

रात तो एकदम

हरजाई जैसी है!

कटने को कौन कहे

ये काटती है!

जब रात ही काटने लगे,

फिर ज़िन्दगी कैसे कटे ?

ज़िन्दगी को जीने से

जितना सुख है,

उसको काटना

उतना ही बड़ा दुःख!

 

पवन तिवारी

 ११/०६/२०२५


रविवार, 8 जून 2025

सबसे मीठा रस बातों का



सबसे   मीठा  रस  बातों का

सबसे पावन जल आखों का

चंदा  दिख  जाता दिन में भी

पर  मन  को  भाता रातों का

 

हिय  ही  काया का केंद्र बिंदु

इसमें  ही  बसता  प्रेम सिन्धु

इन सबको जो पूरित करता

औषधि अधिपति वह मात्र इंदु

 

हैं सबसे  बड़े जनक अचरज

सबसे  पावन है प्रभु की रज

पर   पीड़ा  ही  है  पाप  बड़ा

पावन है  सबसे मस्तक गज

 

जग में जो  भी  हैं  सब विशेष

वह भी  विशेष  जो दिखे शेष

है शेष   ने   ही   धरती   धारी

जय जय रमेश जय जय महेश

 

पवन तिवारी

०८/०६/२०२५