यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 4 मार्च 2022

अपनी शर्त पर

जो अपने मन का

चाहता है करना

जो अपनी शर्तों पर

या बिना शर्त के

चाहता है अपनी पसंद !

जो कह देता है,

जो उसे कहना है !

बिना हानि-लाभ के .

जोड़ – घटाव के बिना

जिसकी जिह्वा फिसलती नहीं है

उसका रास्ता बिल्ली से अधिक

लोग काटते हैं

फिर भी यदि वह

वह हो जाता है  जो,

चाहता है वह होना

फिर लोग चाटते हैं तलवा

बिना किसी स्वाद के !

 

पवन तिवारी


१६/०१/२०२२

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