मैं तो देसी ठेठ
आदमी
कहीं गुज़ारा कर
लूँगा
रोटी तो मिल ही
जायेगी
जहाँ पसीना श्रम दूँगा
चकाचौंध के इस जाले
से
बोलो तुम कैसे निकलोगी
आखेटक के हाथ लगे तो
बोलो तुम कैसे
डोलोगी
मुझको धक्का देती हो
तुम
गाँव हमारा ये ज़िंदा
है
सुविधाओं की आस नहीं
है
गाँव का ये बासिन्दा
है
तुम तो तितली महानगर
की
इन नखरों का क्या
होगा
किस पर रौब जमाओगी
अब
अधिकारों का क्या
होगा
मुझको ठोकर मार रही
हो
ढेले सा चला जाऊँगा
मिटटी का बेटा हूँ
हँस के
मिटटी में मिल
जाऊँगा
तुम खुद को अप्सरा
हो कहती
सुख सुविधा का क्या
होगा
मैं था श्रमिक जा
रहा हूँ अब
ऐश्वर्यों का
क्या होगा
मेरे दुःख तो गा
लूँगा मैं
तेरे दुःख का क्या
होगा
जब पूछेंगे देव
प्रश्न तो
तेरा उत्तर
क्या होगा
स्वाभिमान मेरी थाती है
इसका कोई
मोल नहीं
मैं कोई वस्तु नहीं
जो बिक लूँ
मेरा उर कोई
ढोल नहीं
नगर तुझे ये छल
जायेगा
तेरा वैभव गल जायेगा
जिस दिन काया धूमिल
होगी
वक्त तेरा भी जल
जायेगा
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
१३/०८/२०२०
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