इन कच्ची मेड़ों पर
चलना,
इन दूबों पर लेटना ;
इन ढेलों से खाना
ठोकर
इन काँटों का पैरों
में चुभना
इन पगडंडियों पर
चलते हुए
पैरों में शीत लगना,
कभी तपती धूप में
जलना,
पड़ जाना तलवों में
छाले !
जाड़ों में फटना
बिवाइयाँ,
द्वार पर बारिश में पांवों
का फिसलना
और मिटटी से होना
लथपथ !
टीले पर चढ़ते हुए
पैरों का होना घायल,
ये सब कृपा थी मेरी
माटी की !
तभी इस अंतिम दौर
में भी
दौड़ रहा हूँ लगातार
!
इन्हीं से मेरे
पैरों की आभा है !
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
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