यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 5 मई 2020

पैरों की आभा




इन कच्ची मेड़ों पर चलना,
इन दूबों पर लेटना ;
इन ढेलों से खाना ठोकर
इन काँटों का पैरों में चुभना
इन पगडंडियों पर चलते हुए
पैरों में शीत लगना,
कभी तपती धूप में जलना,
पड़ जाना तलवों में छाले !
जाड़ों में फटना बिवाइयाँ,
द्वार पर बारिश में पांवों का फिसलना
और मिटटी से होना लथपथ !
टीले पर चढ़ते हुए
पैरों का होना घायल,
ये सब कृपा थी मेरी माटी की !
तभी इस अंतिम दौर में भी
दौड़ रहा हूँ लगातार !
इन्हीं से मेरे पैरों की आभा है !  


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८     

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें