बचपन में सचमुच भोला
था
दीवाना था
कुछ के लिए
जिनके प्रति था
स्नेह भाव
आवारा था
उनके लिए
थोड़ा बड़ा
हुआ तो उमड़ा
रिश्तों के प्रति
अपनापन
उनके दुःख से द्रवित
हुआ तो
निज को लेकर चल दिया
वन
कितने दिन ही भूख प्यास से
वन वन निज को भटकाया
था
था उसमें भी मिला
हमें जो
यत्न से उन तक पहुंचाया था
मजे में था मैं उनकी
सोच से
अपना तन
घबराया था
अपनी पीठ ठोंकने
खातिर
ब्याह में मुझे फंसाया था
अपनेपन वाली
माया में
ऐसा कुछ उलझाया
था
दुल्हन भी उनसे आगे
थी
खुद का जाल बिछाया
था
कुछ दिन तक तो ठीक
रहा
फिर दुल्हन
ने पैंतरे लिए
वन के मोटे
आसामी से
मिल यौवन के मजे किये
आपस में कुछ टुनफुन
हो गयी
भेद खुला तब
रति प्रसंग का
मैं पति होकर
खलनायक था
उनके प्रेम
में भंग का
अपनी कहानी बस इतनी
सी
बचपन में
आवारा था
यौवन में पत्नी से
धोखा
अब तो मैं
बंजारा था
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें