यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

बचपन में सचमुच भोला था


बचपन में सचमुच भोला था
दीवाना  था  कुछ  के लिए
जिनके प्रति था स्नेह  भाव 
आवारा   था   उनके  लिए

थोड़ा  बड़ा  हुआ तो उमड़ा
रिश्तों के  प्रति  अपनापन
उनके दुःख से द्रवित हुआ तो
निज को लेकर चल दिया वन

कितने दिन ही भूख  प्यास से
वन वन निज को भटकाया था
था उसमें  भी  मिला हमें जो
यत्न से उन तक  पहुंचाया था

मजे में था मैं उनकी सोच से
अपना  तन   घबराया  था
अपनी  पीठ  ठोंकने खातिर
ब्याह में   मुझे  फंसाया था

अपनेपन  वाली  माया में
ऐसा कुछ  उलझाया  था
दुल्हन भी उनसे आगे थी
खुद का जाल बिछाया था

कुछ दिन तक तो ठीक रहा
फिर  दुल्हन  ने पैंतरे लिए
वन के  मोटे  आसामी  से
मिल यौवन के  मजे किये

आपस में कुछ टुनफुन हो गयी
भेद खुला तब रति  प्रसंग  का
मैं पति  होकर  खलनायक था
उनके  प्रेम   में   भंग   का

अपनी कहानी बस इतनी सी
बचपन  में   आवारा   था
यौवन में पत्नी   से  धोखा
अब  तो   मैं   बंजारा  था



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८   

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