यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 19 फ़रवरी 2017

साथी

मित्रों ये रचना मैंने १४ फरवरी की रात में करीब 3 बजे लिखी .कारण मेरी जीवन साथी उसी दिन मुंबई से गाँव गई . एक लम्बे अरसे बाद हम बिछुड़े . घर लौटने पर एक उदासी सी छा गयी.नीद भी नहीं आई.रट के तीन बज गये .फिर बत्ती जलाया कलम और कागज उठाया उसके बाद जो भाव आये उतार दिया कागज पर उसके बाद थोड़ा सा सुकून मिला.करीब ५ बजे सुबह नींद आयी होगी. इस भाव से आप इस रचना को पढ़ें तो शायद ठीक लगे आप को ....
          

























              १
जब थे साथ लड़े - झगड़े
शिकवे शिकायतें रोज किये
बहँसें हुई,न जाने कितने हंगामें 
खाना -पीना, कपड़ा-लत्ता,स्त्री करना
हर काम में नुक्ता-चीनी 
रोज भुनभुनाहट,भीनी-भीनी
इन सबके भी बीच कुछ पल 
तेरी मेरी कथा-कहानी 
कुछ हँसी-ठिठोली 
कुछ सपनों के ताने-बाने बुनते थे 
साहस देते इक दूजे को 
चिंता न करो अच्छा होगा
अब सो जाओ बड़ी देर हुई 
              
                   २

फिर सुबह हुई, आफिस जाना
जूते-मोज़े,कपड़े,चश्में का खो जाना
फिर झल्लाना और चिल्लाना 
इन छोटी -छोटी में फिर लड़ जाना  
फिर गुस्से में तेजी से दरवाज़ा भिड़काना 
और दौड़कर उनका दरवाजे पर आना
जूते की खट-खट और सीढ़ियों का नप जाना 
शाम लौटकर फिर घर आना 
लपककर उनका पानी देना 
और पूछना दिन का हाल 
ठीक ही रहा नहीं कुछ ख़ास 
खडूस आदमी है नया बॉस 
और पूछना उनका चाय बनाऊँ

           

जब झगड़े में दोनों गुस्सा हो जाते 
''मैं कहता- जाने कब पीछा छूटेगा''
''वो कहतीं- फूटे मेरे करम थे जो तुम्ही मिले''
अब जब चली गईं वो याद बहुत आती हैं 
कपड़े धोना,स्त्री करना, चाय पिलाना 
काम से घर आते ही झट से पानी लाना 
कैसे बीता दिन का सारा हाल पूछना 
सपने पूरे होंगे का विश्वास दिलाना 
साया बनकर रहना हर-पल साथ निभाना 
तुम बिन घर सूना-सूना है, 
और मन मेरा बुझा-बुझा 
बड़ा कठिन होता है बिन साथी के जीना 
मोल नहीं कर पाते संग -संग रहने पर 
                    
                      

बिछुड़े तो एहसास हुआ हैं वो अनमोल
उसका क्या हम मोल लगाते जो अनमोल 
दरवाज़े,खिड़की,दीवारें
मंदिर,खाट,रसोई,आँगन
सब सूनें हैं,सब उदास 
कल तक तुम थीं,तो ये घर था 
अब कोई मकां भयानक लागे 
बिन जीवन साथी के घर तो 
घर के सिवा सभी कुछ लागे
साथ में रहके मोल न समझें 
होते हैं कुछ लोग अभागे 
सोचें-समझें गुनें जिन्दगी
ऐसा ना हो फिर कभी आगे 

poetpawan50@gmail.com
सम्पर्क-7718080978

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