यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 24 मार्च 2016

अठन्नी वाले बाबूजी पढ़कर प्रेमचंद की याद आ गई- शचीन्द्र त्रिपाठी

मुंशी प्रेमचन्द की झलक पवन तिवारी के लेखन में झलकती है.

चर्चित युवा कथाकार एवं पत्रकार पवन तिवारी के उपन्यास अठन्नी वाले बाबू जी का विमोचन मुंबई के प्रेस क्लब में गत रविवार को 4:30 बजे  सुप्रसिद्ध कथाकार सूरज प्रकाश प्रसिद्ध कवि एवं कथाकार विनोद कुमार श्रीवास्तव के हाथों संपन्न हुआ. इस अवसर पर नवभारत टाइम्स के पूर्व संपादक शचीन्द्र त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार राकेश दुबे एवं सुप्रसिद्ध चित्रकार सत्यजीत शेरगिल भी विशिष्ट अतिथि के रुप में उपस्थित थे। समारोह का आगाज सुप्रसिद्ध कवि रास बिहारी पांडे द्वारा सरस्वती वंदना के साथ हुआ उसके उपरांत वरिष्ठ पत्रकार नामदार राही में एवं प्रसिद्ध कवयित्री  व अभिनेत्री हेमा चंदानी “अंजुलि” ने  उपन्यास के अंश का पाठ बेहद भावपूर्ण तरीके से किया। जिसका स्वागत श्रोताओं ने करतल ध्वनि से किया । वरिष्ठ पत्रकार राकेश दुबे ने उपन्यास पर चर्चा करते हुए कहा कि अवधी के लुप्त होते शब्दों का पवन जी ने इस उपन्यास में बखूबी प्रयोग किया है इसके लिए मैं उन्हें बधाई देता हूं। वही नवभारत टाइम्स के पूर्व संपादक शचीन्द्र त्रिपाठी जी ने उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए कहा कि - पवन का उपन्यास पढ़ते हुए मुझे मुंशी प्रेमचंद की याद आ गई । एक लंबे अरसे बाद मुझे पवन के लेखन में प्रेमचंद की झलक दिखाई पड़ती है। इसे प्रेमचंद के लेखन से तो तुलना नहीं कर सकते फिर भी मुझे पवन के लेखन में प्रेमचंद की झलक मिलती है बेहद ही रोचक एवं पठनीय उपन्यास है वहीं वरिष्ठ कथाकार सूरज प्रकाश ने “अठन्नी वाले बाबू जी” के बारे में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि उसे पढ़ते हुए मुझे एक फिल्म की स्क्रिप्ट लगी और ''अठन्नी वाले बाबूजी'' पढ़कर उन्हें अपनी प्रसिद्ध कविता  उम्र की गुल्लक'' याद आई और उन्होंने उसे पढकर उपस्थित श्रोताओं को मुग्ध कर दिया.

भरते रहते हैं हम
उम्र की गुल्लक
अल्लम गल्लम चीजों से
कोई सिलसिला नहीं रहता
भरने का
तारीखें
पाठ
सिर फुट्टौवल
गलबहियां
न जाने क्या क्या भरता रहता है
उम्र की गुल्लक में

हमें याद ही नहीं रहता
कब उसमें डाली थी
दोस्ती की इक्कनी
मास्टर जी की मार का छेद वाला पैसा
या किसी काका के दुलार की अट्ठनी

सब कुछ भरता रहता है
उम्र की गुल्लक में
चाहे अनचाहे
जाने अनजाने

अच्छा लगता है
गुल्लक की फांक में झांकना
उसे हिलाना
सलाई से टटोलना
क्या पता
कोई खोया कलगीदार सिक्का
खुशियों भरा
छपाक से हमारी गोद में आ गिरे
उम्र की गुल्लक से

साथ ही उन्होंने चवन्नी के बन्द होने के तकनीकी पहलू पर भी सवाल  उठाया । वहीं दूसरी तरफ वरिष्ठ कथाकार एवं कवि विनोद कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि साहित्यकार पर  पवन का पत्रकार कहीं हावी हो गया है ।इन्होंने अपने उपन्यास में ग्रामीण जीवन की 27 के करीब समस्याएं उठाई है लेकिन उनका समाधान नहीं दिया है मुझे ऐसा लगता है लेखक को उनकी समस्याओं की तरफ ध्यान देना चाहिए था बाकी तकनीकी चीजें अपनी जगह है. उपन्यास  रोचक व पाठकीयता लिए हुए है . लेखक को बधाई . कार्यक्रम के अंत में उपन्यास के लेखक पवन तिवारी ने अपने माता पिता को स्मरण करते हुए लेखकों एवं उपस्थित श्रोताओं का आभार प्रकट करते हुए कहा कि वह अतिथियों द्वारा सुझाए गए विचारों को सर माथे पर रखते हैं और इमानदारी पूर्वक अपनी कलम को चलाते रहेंगे । कार्यक्रम के अंत में मनोज सिंह ने सभी अतिथियों एवं आगंतुओं का आभार व्यक्त किया कार्यक्रम का सफल संचालन सुप्रसिद्ध कवि रास बिहारी पांडेय ने किया । इस अवसर पर जनवादी विचारक रमेश राजहंस, वरिष्ठ कवि हरिजिंदर सिंह सेठी,सुप्रसिद्ध चित्रकार राम जी शर्मा, प्रसिद्द चित्रकार घनश्याम गुप्ता,हास्य कवि मुकेश गौतम,फिल्मगीतकर रुस्तम घायल, पत्रकारिता कोश के संपादक आफताब आलम,ख़बरें दिनरात के संपादक धर्मेन्द्र उपाध्याय, जे जे वी न्यूज के सम्पादक चन्द्रभूषण विश्वकर्मा ,पत्रकार शम्भू सक्सेना, फ़िल्म निर्देशक ,सैयद अनवर हुसैन,शायर अभिनेता राधवेंद्र त्रिपाठी, निर्माता अभिनेता कुबेर, पंडित अतुल शास्त्री जैसे अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे





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