मित्रों,पाठकों
भक्त ध्रुव की कथा तो सबने सुनी है.... कि सौतेली माँ द्वारा अपमानित होकर
उन्होंने भगवान् विष्णु की घोर तपस्या की और बदले में उन्हें प्रभु ने पिता
उत्तानपाद के सिंहासन से ऊँचा स्थान दिया. सप्तऋषियों से भी ऊँचा स्थान ध्रुव को
प्राप्त हुआ. आइये अब कुछ अनसुनी या कम चर्चित कहानियाँ ध्रुव के बारे में
जानें......
# क्या आप
जानते हैं ध्रुव के पिता 3 भाई थे ? ज्यादातर लोग जानते हैं कि ध्रुव के पिता 2
भाई थे. प्रियव्रत और उत्तानपाद जबकि
तीसरे भाई का नाम वीर था.ध्रुव के पिता उत्तानपाद से बड़े प्रियव्रत थे. प्रियव्रत
साधारण जीवन जीना चाहते थे,उन्हें राजपाट में रूचि नहीं थी. उनके इनकार के बाद
उत्तानपाद को राजा बनाया गया.
# ध्रुव की
तीन बुवा थीं..............आकूति, देवहुति और प्रसूति
अक्सर दो बुवा
के बारे में ही कहा जाता है.
# ध्रुव के
नाना का नाम प्रजापति धर्म था.
# ध्रुव ने भगवान् को प्रसन्न करने के बाद तुरंत
स्वर्ग नहीं गये ,बल्की वापस आकर नारदजी के कहने और उत्तानपाद के क्षमा मांगने के
बाद अपने पिता उत्तानपाद का सिंहासन सम्भाला. ध्रुव चक्रवर्ती राजा बने और 36 हजार
वर्ष राज किये.
# भक्त
की उपाधि इस लिए मिली कि वैसी कठिन भक्ति किसी ने किसी भी काल में नहीं की . मात्र
साढ़े 4 वर्ष की उम्र में निर्जन वन में ध्रुव ने तप आरम्भ किया.
# ध्रुव ने अनन्य चित्त होकर तप किया. जिस कारण
भगवान् विष्णु ध्रुव के ह्रदय में स्थित हो गए. जिस कारण ध्रुव का भार पृथ्वी को सम्भालना
मुश्किल हो गया.
# ध्रुव ने एक
पैर पर खड़े होकर तप किया. कुछ दिनों तक बाएं पैर पर खड़े होकर और कुछ दिनों तक
दायें पैर पर . ध्रुव जिस पैर पर खड़े होकर तप करते पृथ्वी उस ओर आधा दब जाती या
झुक जाती थी.
# ध्रुव
ने कुछ दिनों तक मात्र पैर के अंगूठे के बल पर खड़े होकर तप किया जिसके दबाव के कारण
पहाड़ों सहित धरती हिलने लगी.
# इंद्र ने धुव की तपस्या भंग करने की काफी
कोशिश की पर असफल रहे .
# इंद्र की
माया से अनेक राक्षस डराने आये . ध्रुव की मया रूपी माँ भी रोते हुए आयी पर ध्रुव
पर कोई असर नहीं हुआ .
# हारकर इंद्र
आदि देव स्वयं भगवान् विष्णु की पास गये और ध्रुव को दर्शन दे उसकी तपस्या समाप्त
करवाने की विनती की.
# ध्रुव के
कठोर तप के तेज के कारण देवलोक तपने लगा था. ध्रुव ने कई महीनों तक सिर्फ हवा पीकर
तप किया. इसलिए ध्रुव ‘’भक्त ध्रुव’’ कहलाये.
# ध्रुव जब घर से तप के लिए से निकले तो सर्व
प्रथम उन्हें नारद ने नहीं सप्तऋषियों ने मार्गदर्शन दिया. वे सप्तर्षि थे
....मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु और वशिष्ठ .
# ध्रुव ने
मधुवन में यमुना के तट पर तप किया था.
# ध्रुव पूर्व
जन्म में एक ब्राह्मण पुत्र थे.उनका मित्र राजा का पुत्र था. इस लिए उनके मन में
भी राजपुत्र होने की इच्छा हुई और अगले जन्म में ध्रुव राजा उत्तानपाद के पुत्र
हुए.
# विष्णु भगवान् ने ध्रुव को देवों और सप्तर्षि
से भी ऊँचा स्थान दिया.सप्तर्षि ध्रुव की परिक्रमा करते हैं.
# देवताओं की
आयु 4 युगों या अधिकतम एक मन्वन्तर होती है, किन्तु भगवान् विष्णु ने ध्रुव को और
साथ में उनकी माता सुनीति को भी एक कल्प की आयु दी. [एक कल्प में 14 मन्वन्तर होते
हैं]
# ध्रुव के सौतेले भाई उत्तम जो सुरुचि के गर्भ
से पैदा हुआ था. उसको यक्षों ने जंगल में मार डाला था.
# ध्रुव ने
अपने भाई उत्तम की मृत्यु का बदला लेने के लिए यक्षों से भीषण युद्ध किया और उनका संहार
करना शुरू किया. यक्षों के राजा कुबेर ने महाराज ध्रुव से युद्ध बंद करने की
प्रार्थना की. तब जाकर ध्रुव ने युद्ध बंद किया.
# ध्रुव की
सौतेली माँ सुरुचि दावानल में फंसकर भस्म हुई.
# ध्रुव ने
अपने पुत्र वत्सर को राज्य सौंप बदरिकाश्रम गये और वहीं शरीर त्याग कर परमधाम को
गये .
# ध्रुव के
बड़े पुत्र का नाम उत्कल था, जो तत्वज्ञानीएवं दार्शनिक थे.
# ध्रुव के
चाचा प्रियव्रत के प्रपौत्र भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा. इससे पहले
इसे जम्बूद्वीप कहते थे.जिसके राजा ध्रुव के चचेरे भाई आग्रीध थे.
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