नैनों से पहले विचारों में आया
नैनों से पहले जा उर में समाया
आसक्ति का व्याधि कैसे ये व्यापा
लगा ज्वल ये निज से न जाए बुझाया
अनुभव प्रणय से समझ में ये आया
आसक्ति ने जग को कैसे नचाया
तभी तो गृहस्ती बनी श्रेष्ठ्तम है
ऋषियों को भी रति ने भरमाया
अनुराग तुम ही विशेष,विशेषण
जीवन के तुम ही हो सबसे प्रमुख गण
तुम बिन बिरस सत्यतः है ये जीवन
तुम हो प्रहर्षित लगे पुनि तो प्रतिक्षण
पवन तिवारी
सम्पर्क –
७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें