यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 9 अक्तूबर 2024

धान होती हैं बेटियाँ




बेटियाँ एक घर में

पैदा होती हैं और ,

एक उम्र होने पर

दूसरे घर में

रोप दी जाती हैं ;

ठीक धान की तरह !

सूखे वाले क्षेत्र में

लोग नहीं ब्याहते बेटियाँ ,

और लोग

नहीं रोपते धान !

आज कल कहीं भी

पड़ जाता है अकाल ,

सारा श्रम

दम तोड़ देता है !

लुटेरा इंद्र जैसे लूटा था

अहल्या को; आज भी

लूट ले रहा है ,

भरे दिन, दोपहरी ,

धान को, बेटियों को !

ओह, दिन दहाड़े

कोई है... जो दे सके शाप ;

उठा सके गोवर्धन !

 

पवन तिवारी

१८/०८/२०२१

परिष्करण ९/१०/२०२४

   

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें