यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 21 अक्टूबर 2018

मैं स्वतंत्र पथ का अनुगामी


मैं स्वतंत्र  पथ  का  अनुगामी  बंधन नहीं मुझे भाया
बात-बात पर हाँ जी- हाँ जी अति सुन्दर ना कह पाया
आया  नहीं अर्थ की  खातिर  चरण पादुका सर धरने
मैं स्वतंत्रता सत्य का वाहक  मैं चारण नहि बन पाया

मैं निज  का अवलम्ब और निज व्योम लिए फिरता हूँ
मैं  प्रसन्न अपने पथ पर गिर-गिर पुनि-पुनि उठता हूँ
खा  सकता  बादाम  शारदे  नहि पिंजर में मैं  रहकर
तेरा  शब्द  पुत्र  हूँ  मैं  संघर्षों  से  नहि  डरता  हूँ

मेरे शब्द राष्ट्र को अर्पित मेरी कविता  जन - मन को
स्वाभिमान ही प्रथम रहा मैं गिरा  नहीं लोलुप धन को
जो जीवन में सहज मिला उसको ही लगाया मस्तक से
मेरी  कविता गीत मेरे सब अर्पित हैं प्रति जन-जन को

जाने  कितनों ने व्यंग कसे जाने कितने उपहास किये
सौ  कहने वालों में  केवल  इक्का – दुक्का साथ दिए
पथ  से  जाते  देख मुझे वे हेय दृष्टि  से देखा करते  
पर  मेरी  कविता व सत्य  ने धैर्य  पूर्वक  साथ दिये

जो  कवि  को  चारण  समझे उनके भी दुर्दिन आयेंगे
जो  कवि  का  उपहास  उड़ाते भीख माँग कर खायेंगे
सब  विक्रय  होता  जग  में पर विवेक का मोल नहीं
सच्चे  कवि  तो युगों - युगों तक यूँ  ही गाये जायेंगे

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक –  poetpawan50@gmail.com






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