यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 25 अक्टूबर 2025

प्रेम की छाँव में राम की चाह में


 


प्रेम की छाँव में राम की चाह में

जानकी आ गयी गौरी की राह में

 

गौरी ने पाया जब जानकी को शरण

याद आया उन्हें अपना भी आचरण

प्रेम में शिव के कितनी वो व्याकुल रही

सिद्ध तप से किया प्रेम का व्याकरण

 

प्रेम उदात्त कितना है, की थाह में

सिय का उर जल रहा प्रेम के दाह में

सिय का अंतःकरण देख के गौरी का

निज का उर भी सिसकने लगा आह में

 

अपने दिन याद आये भरे नैन तब

वैसी स्थिति में ही सिय को देखा है अब

प्रेम की पीर जब प्रेम से मिल गयी

गौरी ने कह दिया इच्छा पूरी हो सब

 

क्षण उसी सिय को सारे शगुन हो गये

शंख घंटे के स्वर मन्त्र से हो गये

नेत्र बायाँ निरंतर फड़कने लगा

क्षण उसी राम सीता के पिय हो गये

 

पवन तिवारी

२५/१०/२०२५  

 


बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

तू किसी और की हो गयी



तू किसी और की हो गयी

ज़िन्दगी यूँ लगी खो गयी

था लगा तेरे बिन कुछ नहीं

तू गयी ज़िन्दगी तो गयी

 

स्वप्न की रागिनी सो गयी

कीमती सबसे जो खो गयी

कुछ दिनों तक चला सिलसिला

वक्त की चाल सब धो गयी

 

कोई पूछे कहाँ को गयी

मैं भी कह दूं गयी तो गयी

अब पुरानी कहानी सी है

बात आयी गयी हो गयी

 

लगता है अच्छा अब जो गयी

प्रेम का रंग सब धो गयी

फिर से यात्रा सुघर है हुई

अब कहानी सही हो गयी

 

पवन तिवारी

१५/१०/२०२५