यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

भाजपा की एक मात्र सकारात्मक उम्मीद वरुण गांधी ...पर क्या भाजपा वरुण को मौका देगी

2016 - 17 में होने वाले विधानसभा चुनाव बीजेपी की बयार है या नहीं  और कांग्रेस में वापसी की ताकत है या नहीं  ये  पंजाब , असम, तमिलनाडु , प. बंगाल और उत्तर प्रदेश  चुनाव  से पता चलेगा . ऐसे  में सभी राजनीतिक दलों की नजर उत्तर प्रदेश चुनाव पर रहेगी .बीजेपी के लिए विशेष रूप से उत्तर प्रदेश का चुनाव असली अग्नि परीक्षा होगा . उत्तर प्रदेश का चुनाव बीजेपी  की आगामी राजनीतिक दिशा - दशा तय करेगा साथ  ही  मोदी जी और  अमित शाह के  राजनीतिक प्रभाव  व कद को भी . बिहार की हार के बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी की हार जहाँ बीजेपी को अन्दर तक हिला देगी  वहीं विरोधियों में बीजेपी से संघर्ष करने की  क्षमता व विश्वास कई गुना बढ़ा देगी .जिससे बीजेपी अपने लक्ष्य से डगमगा जायेगी और पार्टी में अंतर्कलह को भरपूर उफ़ान मिलेगा .
उत्तर प्रदेश ही वह राज्य है जहाँ 404 विधानसभा सीटें हैं और  100 विधान परिषद की . इसलिए यहीं से सबसे अधिक  31 राज्य सभा सांसद  भी हैं और बीजेपी  राज्य सभा में बहुमत न होने के कारण ही महत्वपूर्ण बिलों को पास नहीं करा पा रही है . लोकसभा में उत्तर प्रदेश की 73 सीटों के कारण ही भाजपा को केंद्र की सत्ता, वो भी पूर्ण बहुमत के साथ मिली है . ये बीजेपी भी भलीभांति जानती है  फिर भी उसके नेता लोकसभा चुनाव जीतने के बाद अपने क्षेत्र में कम ही दिखे हैं .मेरी उत्तर प्रदेश की ताज़ा यात्रा के अनुभव  बीजेपी के बारे में सकारात्मक  नहीं हैं .  लोकसभा चुनाव के बाद नेता जी एक बार भी  आम जनता को नहीं दिखे .  खैर आइये उत्तर प्रदेश की राजनीति की पड़ताल शुरू करते हैं .
उत्तर प्रदेश में गत कुछ चुनाओं से 2 पार्टियों का बर्चस्व रहा है . सपा और बसपा ,  इससे पहले महत्व पूर्ण  पार्टियों में पहले कांग्रेस और फिर भाजपा  महत्वहीन हुई .पर 2014 के  लोसभा चुनाव ने भाजपा को फिर से मुक़ाबले में लाकर खड़ा कर दिया .सो अब 2017 में लड़ाई त्रिकोणीय होगी . सपा और बसपा के पास स्थाई नेता या यूँ कहें नेतृत्व हैं  फंसती है भाजपा,  एक तरफ मायावती दूसरे तरफ मुलायम [ अखिलेश ]  ऐसे  में  भाजपा से कौन....    क्या वरुण गांधी ....हो सकते हैं

 उत्तर प्रदेश में हमेशा स्पष्ट नेतृत्व का फायदा  हुआ है. चुनाव में ये सवाल भी उठेगा कि बीजेपी का मुख्यमंत्री उम्मीदवार कौन ... बसपा चुनाव में प्रबल दावेदार है ,सपा को सत्ता विरोधी लहर , मुजफ्फरपुर दंगे , कानून व्यवस्था , और नेपथ्य से 4 मुख्यमंत्री  वाली बात [ मुलायम सिंह , राम गोपाल , शिवपाल और बडबोले आज़मखान ] मुस्लिम यादव बेस पार्टी  का नुकसान हो सकता है फिर भी मुलायम सिंह जन नेता हैं  और मायावती भी दलित पिछड़े वर्ग की जनाधार वाली नेता हैं  वहीं बीजेपी  में कोई इनकी तुलना में जनाधार वाला नेता नहीं है  . एक सर्व विदित नाम राजनाथ सिंह  हैं   वे सभ्य   व सुशिक्षित हैं पर वे जनाधार वाले नेता नहीं हैं.  ऐसे में जो  बीजेपी  राज्य सत्ता से एक दशक से बाहर है को ऐसा चेहरा लाना  होगा, जो प्रभावशाली हो युवा भी हो ऐसे में बीजेपी में एक मात्र उम्मीद की किरण  वरुण गांधी  नज़र आते हैं जो अखिलेश  के मुक़ाबले में
और सपा और  बसपा नेतृत्व के सामने  तुलनात्मक रूप से ठहर भी सके .
 आइये  हल्का सा तुलनात्मक  अध्ययन कर लेते हैं.....
मुलायम सिंह - उत्तर प्रदेश की राजनीति के सबसे पुराने खिलाड़ी हैं 22 नवम्बर 1939 को जन्म.  1967 में पहली बार विधायक बनें . आगरा विश्वविद्यालय से परास्नातक  और मैंनपुरी  से बीटी करने के बाद कुछ दिनों तक अध्यापन ,कुछ दिनों  तक पहलवानी की  , 5 दिसम्बर 1989 को पहली बार  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनें .  3 बार मुख्यमंत्री  बने एक बार पुत्र को मौका दिए .कुल मिलाकर  अनुभवी , शिक्षित  पर अब उम्र हावी हो रही है और आय से अधिक सम्पत्ति के मामले , वर्ग विशेष के नेता  .
मायावती  -  नेतृत्व क्षमता और अनुभव , मायावती भी जमीनी नेता हैं .15 जनवरी 1956 को जन्म.. दिल्ली के कालिन्दी महाविद्यालय से स्नातक  साथ ही एल.एल बी . औए बी एड. भी हैं मुलायम की तरह कुछ दिनों तक अध्यापन . 1995 में पहली बार मुख्यमंत्री बनी . कुल 4 बार मुख्यमंत्री रहीं . वर्ष 2007- 8  नेताओं में सर्वाधिक आयकर [26 करोंड़] अदा करने वाली. धन के दुरूपयोग  मूर्तियों और पार्क के मामले और फिर अर्थात 60 वर्ष की आयुसीमा के पास .फिर भी दलितों पिछड़ों की कद्दावर नेता .
राजनाथ सिंह -  अनुभवी व मृदुभाषी . 10 जुलाई 1951 को चंदौली में जन्म .गोरखपुर विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण . मिर्जापुर में कुछ दिनों तक भौतिक शास्त्र  में अध्यापन कार्य किया  और वर्ष 2000 में पहली बार भाजपा से मुख्यमंत्री बनें .  2 बार बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे पर बीजेपी इनके नेतृत्व में लोकसभा चुनाव हार गयी .  साफ़ - सुथरे छवि के नेता,  पर जननेता नहीं उम्र  65  के आस -पास. इन उपरोक्त तीनों नेताओं में जो एक रोचक समानता दिखी वो यह कि तीनों ही अपने प्रारम्भिक काल में अध्यापक रहे और तीनों उस दौर में भी उच्च शिक्षित  जब उच्च शिक्षा आसान नहीं थी.
 अब आते हैं नई पीढी के  नये नेता जो 2012 के चुनाव में भारी बहुमत से जीत कर आये  उसका एक कारण उनका युवा व  उच्च शिक्षित  होना भी था .
 अखिलेश यादव -  सबसे बड़ी पहचान मुलायम सिंह के बेटे और निजी योग्यता मृदुभाषी और शिक्षित .
1 जुलाई 1973 को  जन्म .   मुलायम सिंह की पहली पत्नी माँ मालती देवी के पुत्र .  बचपन में ही माँ का निधन. 3 बच्चे , पत्नी डिम्पल  सांसद,
अखिलेश ने राजस्थान मिलिट्री स्कूल धौलपुर से शिक्षा प्राप्त की. उन्होंने अभियान्त्रिकी में स्नातक की उपाधि मैसूर के एस०जे० कालेज ऑफ इंजीनियरिंग से ली, बाद में विदेश चले गये और सिडनी विश्वविद्यालय से पर्यावरण अभियान्त्रिकी में स्नातकोत्तर किया .मार्च 2012 के विधान सभा चुनाव में 224 सीटें जीतकर मात्र 38 वर्ष की आयु में ही वे उत्तर प्रदेश के 33वें मुख्यमन्त्री बन गये। जुलाई 2012 में जब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने उनके कार्य की आलोचना करते हुए व्यापक सुधार का सुझाव दिया तो जनता में यह सन्देश गया कि सरकार तो उनके पिता और दोनों चाचा चला रहे हैं, अखिलेश नहीं. दुर्गानागपाल और मुजफ्फरपुर के दंगे उनकी अनुभवहीनता और  सरकार पर उनका नियंत्रण न होना  उनके खिलाफ जाता है .  ऐसे में अखिलेश के प्रति उत्तर  क्या वरुण हो सकते हैं
वरुण गांधी - पहली पहचान मेनका गांधी के बेटे.  निजी योग्यता  1999 से प्रचार  और  बीजेपी के इतिहास में सबसे कम उम्र के बीजेपी महासचिव, स्पष्टवादी ,प्रखर वक्ता , 20 की उम्र में ''द आथ्नेस ऑफ़ सेल्फ '' नामक किताब लिखी , कविता व लेख भी लिखते रहते हैं . 13 मार्च 1980 को जन्म ,उनके पिता की मौत एक विमान दुर्घटना में जून 1980 में हुई। उनके पिता के निधन के समय वरुण गांधी की आयु मात्र ३ माह थी। वरुण गांधी ने  स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स लंदन विश्वविद्यालय से बीयसई की पढाई की है साथ ही  लन्दन के ओरियन्टल और अफ्रीकन स्टडीज से भी पढाई की है . 2009 में पीलीभीत से पहली बार सांसद बनें ,वर्तमान में सुल्तानपुर से सांसद हैं . वरुण गांधी परिवार की वजह से नहीं बल्की खुद की प्रतिभा के कारण अपनी पहचान बनाना चाहते हैं . ऐसे में यदि उन्हें भाजपा मौका देती है तो भाजपा के लिए  उत्तर प्रदेश में उम्मीद  जग  सकती है . अखिलेश और वरुण में भी कुछ समानता है  जैसे दोनों  उच्च शिक्षित हैं  विदेश में पढ़े हैं  पर जो दुखद है वो ये कि बचपन में अखिलेश की माँ गुजर गयी और वरुण के पिता . यदि वरुण को मौका मिलता है तो वे शायद अखिलेश के  सबसे कम उम्र  के मुख्यमंत्री का रिकार्ड भी तोड़ दें.... पर शायद .  अब पाठक निर्णय करें कौन उपयुक्त और योग्य  है .

रविवार, 27 दिसंबर 2015

भाजपा के लिए ये आपसी नादानियाँ मंहगी न पड़ जाये

मोदी की साख पर सवाल शुरू... आने वाले दिनों में भाजपा के लिए अच्छे नहीं .

बीजेपी  को कांग्रेस  वाली गलतियों से बचना होगा और  जो गलतियाँ हुईं हैं उन्हें सुधारना होगा या नहीं सुधार सकती तो आगे से पुनः गलती न हो वरना बंगाल ,पंजाब , उत्तर प्रदेश  में उसे ''का पछताए होत जब चिड़िया चुग गई खेत '' वाली स्थिति होगी . यदि ऐसा हुआ तो बीजेपी के लिए दुखद होगा पर देश के लिए घातक. पर होनी को सिर्फ अच्छे कर्म टाल सकते हैं और कोई नहीं .
शत्रुघ्न सिन्हा , आर. के. सिंह  और अब कीर्ति आज़ाद . ये बीजेपी के लिए अशुभ संकेत है . कीर्ति आज़ाद को हाशिए पर धकेलना  घातक होगा . ''न खाऊंगा  न खाने दूंगा'' मोदी के इस नारे को कीर्ति का निलंबन  ठेंगा दिखाता हैं साथ ही मोदी की चुप्पी और कीर्ति को मिलने का समय न देना मोदी की उज्ज्वल छवि को ठेस पहुंचा  रहा है . जिसका असर आगामी चुनाओं  में अवश्य दिखेगा . बीजेपी मोदी नामक व्यक्ति के कारण जीती है .बीजेपी के कारण नहीं. मोदी की छवि ध्वस्त अर्थात बीजेपी पराजित .
अब बात करते हैं कुछ करियर और कद की , कुछ आत्म सम्मान की , कुछ  उपेक्षा की , कुछ त्याग की ,  कुछ अपमान की ,
बात शुरू करते हैं शत्रुघ्न सिन्हा से ...... शत्रुघ्न बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं  बीजेपी जब दो सांसदों की पार्टी थी . जब चारो तरफ कांग्रेस का बोलबाला था .  ऐसे समय में कांग्रेस के तमाम प्रलोभनों के बावजूद  शत्रुघ्न ने  बीजेपी को चुना . उस समय शत्रुघ्न अमिताभ को कड़ी टक्कर दे रहे थे .डर कर अमिताभ ने  निर्माताओं  से शत्रु के साथ काम करने से मना कर दिया था . ये  सर्व विदित है . बीजेपी  ने ऐसे में शत्रुध्न सिन्हा के स्टारडम का खूब दोहन किया . ऐसे में 30 -32 वर्षों बाद पार्टी[ मोदी एंड कम्पनी]  के अच्छे दिन आये तो शत्रुघ्न सिन्हा के साथ ऐसा व्यवहार किया गया कि उनके बुरे दिन आने लगे . उन्हें अचानक मात्र अभिनेता कहकर किनारे कर दिया गया . टीवी स्टार स्मृति ईरानी जो एक टीवी स्टार रही केन्द्रीय मंत्री  बन गयी .कोई बात नहीं वे प्रतिभशाली भी है  पर गायक बाबुल सुप्रियों जो बहुत सफल भी नहीं रहे मंत्री बन गये .पर इसके राजनीतिक  मायने थे बंगाल के सन्दर्भ में . पर तमाम जूनियरों को सिंहासन और शत्रु को किसी ने बैठने के लिए कुर्सी तक नहीं पूछी. ऐसे में शत्रु का दुखी , अपमानित महसूस करना  व क्रोधित होना  लाजमी है फिर बिहार में क्या हुआ कहने की जरुरत नहीं .ऐसा नहीं शत्रु ने गलती नहीं की  ,पर उसकाया किसने ...
अब बात कीर्ति आज़ाद की .... कीर्ति आज़ाद 1993 में बीजेपी से जुड़े  . वे 1983 की विश्वविजेता टीम के सदस्य थे .उन्होंने  प्रथम श्रेणी मैच में साढ़े 6 हजार से अधिक रन बनाये हैं और 240 से अधिक विकेट लिए हैं .
 अब तक 3 बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हैं .1993 में दिल्ली विधान सभा के भी सदस्य रहे . इनके पिता भागवत झा बिहार के कद्दावर नेता थे वे बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे . कीर्ति दोनों क्षेत्र के माहिर हैं.ऐसे में क्रिकेट में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जेटली जी और भाजपा को  कीर्ति की बात सुननी चाहिए थी . कई बार बतौर दिल्ली जिला क्रिकेट संघ के अध्यक्ष  के रूप में जेटली जी ने  कीर्ति की शिकायतों को अनसुना किया और कीर्ति की उपेक्षा की. जिससे कीर्ति शायद आहत थे .कीर्ति को कहीं न कहीं ये भी लगा कि मैं क्रिकेटर के साथ पार्टी का एक्टिव मेंबर   भी हूँ और एक व्यक्ति  जो क्रिकेटर भी नहीं है संस्था का अध्यक्ष बना बैठा है और मनमानी कर रहा है  और अपने ही पार्टी के सदस्य की उपेक्षा कर रहा है वो भी भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर . ऐसे में लोकसभा चुनाव मोदी लहर के बावजूद जो व्यक्ति चुनाव हार गया .उसे राज्यसभा में भेजकर  भारी भरकम मंत्रालय भी  दे  दिया गया.  जबकि उन्हें उनकी दक्षता के हिसाब से कानून मंत्रालय मिलना चाहिए था .  कीर्ति मोदी के शुरू से ही प्रशंसक और पैरोकार रहे ऐसे में उन्हें उम्मीद थी कि सरकार में उन्हें भी कुछ .... मिलेगा . उल्टा उन्हें  उनके गृह राज्य बिहार चुनाव में  ही किनारे कर दिया गया . ऐसे में आज़ाद का उबलना  स्वाभाविक था सो हुआ . आज़ाद हर तरह से सक्षम हैं इसलिए वे राजनीति से लेकर न्यायालय तक कड़ी टक्कर देंगे . जो भाजपा के लिए बड़े फलक पर नुकसानदायक होगा .
अब जेटली जी की बात करते हैं  जेटली प्रसिद्ध अधिवक्ता  महाराज  किसन जेटली के पुत्र हैं . 1991 में जेटली जी भाजपा के सदस्य बने .1999 में भाजपा के प्रवक्ता बने . और फिर राज्यसभा सांसद .जेटली भी नामचीन अधिवक्ता और चतुर प्रवक्ता हैं ,जेटली ने कई बार अपनी रणनीतिक चतुराई से पार्टी को संकट से बचाया है. पर वे जन नेता नहीं हैं एक भी लोकसभा चुनाव वे नहीं जीत सके . मोदी  जेटली  की तार्किक योग्यता के मुरीद हैं और आज यही चीज कीर्ति के खिलाफ और जेटली के फेवर में है .पर ये मोदी ,पार्टी,और जेटली के लिए भी नुक्सानदेह है. जेटली को ताल ठोक कर स्वेच्छा से पद छोड़ देना चाहिए .यही  पार्टी  व सबके हित में होगा .जाँच में बेदाग आने पर मोदी पुनः पद बहाल  कर सकतें हैं .
 जब मैं  मुम्बई से प्रकाशित  विश्व हिन्दू परिषद के पत्र विश्व हिन्दू सम्पर्क के सम्पादकीय मंडल में था . तब मैंने ही सबसे पहले मोदी के पक्ष  में लिखा था कि क्यों देश को मोदी के नेतृत्व की आवश्यकता है . तब मोदी

 कहीं भी प्रधानमंत्री हो दौड़ में नहीं थे .
आज देश को और देश से बाहर रहने वाले भारत वासियों  को यहाँ तक कि दुनियां को भी मोदी से बहुत उम्मीदें हैं . वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य भाजपा और देश के लिए घातक होगा .  जो कांग्रेस के लिए ''बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा ''   वाला होगा . ऐसा होना बेहद .......

गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

chavanni ka mela : अटल का बदहाल बटेश्वर

chavanni ka mela : अटल का बदहाल बटेश्वर: अटल जी की वर्ष गांठ पर विशेष लेख अटल जी का बदहाल बटेश्वर मुम्बई, अटल जी वैश्विक शख्शियत हैं .उनके बारे में बहुत कुछ कहा व लिखा जा चुका...

सोमवार, 23 नवंबर 2015

हमारी सहिष्णुता का बेजा फायदा उठाया जा रहा है इतनी सहिष्णुता भी ठीक नही

आज आमिर खान के बयान ने मुझे  आवेश और ग्लानि से भर दिया , मुझे अपनी सहनशीलता या सहिष्णुता जो भी कहें ,पर शर्म आने लगी ,  कि हम इतने सहनशील क्यों हैं कि कोई  हमें ,इस देश को ,कितनी भी गाली दे ले  और हम अभिव्यक्ति की आजादी और सहिष्णुता के नाम पर चुप रहें  सिर्फ इसलिए कि कहीं वो हमें  फिर  से असहिष्णु न कह दे . आखिर वो तो  पूरी व्यवस्था हो ही असहिष्णु कह रहा है या पूरे सवा सौ करोड़ के देश को .वास्तव में हम उसकी असहिष्णुता के शिकार हो गये हैं . हम उसके अधिकारों की रक्षा की खातिर  अपने पूरे देश का अपमान क्यों करवा रहे हैं . ये बेहद गंभीर विषय है इस पर सरकार को नीतिगत तरीके से आगे कदम बढ़ाना होगा . अन्यथा जब देश की सहिष्णुता बर्दाश्त से बाहर हो जायेगी और सहिष्णु लोग सचमुच असहिष्णु होने को मजबूर हो जायेंगे तब आमिर खान और इन जैसे तमाम ढोंगी लोगों व इनके गुरुओं का क्या होगा .... शायद ही किसी को कल्पना हो .   असहिष्णुता वास्तव  में  क्या है  और कहाँ है यदि आमिर या इस सोंच के लोगों को पता करना है  '' डर का माहौल'' महसूस करना है  तो उन्हें ईराक , सीरिया ,अफगानिस्तान , सूडान, में जाकर देखना चाहिए . पड़ोस में भी जा सकते हैं पकिस्तान ,  हाँ मिश्र भी फिलहाल ट्राई कर सकते हैं . फिर सच पता चलेगा और डर क्या होता है मालूम होगा .
हमें सहिष्णुता को जानना है तो आमिर जैसे लोगों को भारत के इतिहास को देखना होगा . हम  सहिष्णु हैं तभी भारत में दुनिया की सबसे अधिक मस्जिदें भारत में हैं , हम सहिष्णु हैं तभी भारत में पीके जैसी फिल्म रिलीज हुई . हम सहिष्णु हैं तभी आज भारत में  मुस्लिमों की आबादी दुनिया में तीसरे नंबर पर है .हम सहिष्णु हैं इसीलिये भारत दुनिया का पहला देश है जो हज पर 50000/ प्रति यात्री सब्सिडी देता है और वहीं हमारे ही देश में हमारे ही ईष्ट का मंदिर तक नहीं बनने दिया जाता . हम सहिष्णु थे इसीलिये  भारत में 3 करोड़ से बढकर 19 करोड़ मुस्लिम हो गये .  पकिस्तान में कितनी हिन्दू आबादी बढ़ी जरा कथित सेकुलर पता करें . पाकिस्तान में 1947 में कुल आबादी का 25 प्रतिशत हिंदू थे। अभी इनकी जनसंख्या कुल आबादी का मात्र 1.6 प्रतिशत रह गई है.इसी तरह बांग्लादेश में भी हिंदुओं पर अत्याचार के मामले तेजी से बढ़े हैं। बांग्लादेश ने "वेस्टेड प्रापर्टीज रिटर्न (एमेंडमेंट) बिल 2011"को लागू किया है, जिसमें जब्त की गई या मुसलमानों द्वारा कब्जा की गई हिंदुओं की जमीन को वापस लेने के लिए क्लेम करने का अधिकार नहीं है। इस बिल के पारित होने के बाद हिंदुओं की जमीन कब्जा करने की प्रवृति बढ़ी है और इसे सरकारी संरक्षण भी मिल रहा है। इसका विरोध करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर भी जुल्म ढाए जाते हैं.
भारत में मस्जिद होना आम बात है पर पाक में मंदिर दिख जाना ख़ास बात है . जब तक भारत हिन्दू बहुल देश बना रहेगा तभी तक सहिष्णुता नामक शब्द भी जीवित रहेगा  ये आमिर व उन जैसों को याद रखना होगा .वरना जिस दिन आमिर बिरादरी हावी हुई  फिर ईराक बनने से कोई नहीं रोक पायेगा और देश छोड़ने की बात तो दूर  ऐसा सोंचने से पहले इनका काम तमाम  हो जायेगा . हमारी सहिष्णुता का ही फल है कि भारत के हिन्दू मुस्लिम आधार पर बंटवारे के बाद भी आमिर जैसे लोग हिन्दुओं के सुपरस्टार हैं , 19 करोड़ मुसलमान आज हिन्दुओं के हिस्से पर कब्जा जमाए बैठे हैं  क्योंकि उन्होंने अपना हिस्सा पाक के रूप में ले लिया .  पाक में कोई हिन्दू  सेना में कर्नल या उससे ऊपर का अधिकारी नहीं बन सकता , राष्ट्रपति नहीं बन सकता  बाकायदा कानून है  हिन्दू विवाह को मान्यता भी नहीं है . आमिर सहिष्णु हिन्दुओं को किसी के इशारे पर भड़काने का काम कर रहे हैं . आमिर पूरी तरह से झूठ बोल रहे हैं  कि किरण राव ने देश छोड़ने की बात कहीं क्योंकि देश में डर का माहौल है. दूसरी बात यदि कही तो मीडिया में कहने की क्या जरुरत है  घर की बात थी ... पर इसे हवा देनी थी  ..... तीसरी बात उन्होंने खुद कही कि उनकी पत्नी अखबार व समाचार चैनल इसीलिये देखने से डरती हैं .इसका अर्थ ये हुआ कि उनके अन्दर असहिष्णुता का डर और माहौल इन चैनलों और अख़बारों ने बनाया वरना  उन्हें इससे पहले बिलकुल भय नहीं था .  ये सारा माहौल सरकार विरोधी  कथित लेखकों ,कलाकारों ,विपक्षी पार्टियों ने देशद्रोही मीडिया के साथ बनाया . वरना १९४७ में 25 लाख लोगों की हत्या  से अब तक कितनी ही लाशें गिरी किसी ने उफ़ तक नहीं किया .
उपरोक्त बातें लिखने का मेरा बस इतना मतलब था कि  इस कृतिम लोगों की  कृतिम असहिष्णुता के खिलाफ आम भारतीय को और अब सरकार को भी उठानी चाहिए अन्यथा जब बर्दाश्त से बाहर हो जायेगा फिर असहिष्णुता बढ़ रही है कहने का मौका भी आम भारतीय ऐसे लोगों को नहीं देगा  फिर सनी देओल का ओ डायलोग गूंजेगा .... जज आर्डर -आर्डर कहता रह जायेगा और तू पिटता रहेगा .
मेरा मन मुस्लिम भाइयों के ह्रदय को चोट पहुचाने की नहीं है  पर आमिर जैसे लोग मजबूर कर देते हैं . आम मुसलमान भी सच्चाई जानता है कि भारत से सुन्दर और सुरक्षित देश मुसलमानों के लिए दुनियां में कोई और हो नहीं सकता .पर  कुछ लोगों को आम मुसलमान की शांति और खुसहाली बर्दाश्त नहीं हो रही है क्योंकि उनकी लाशों पर सन 1947 से ही अपनी रोटी जो सेंकते आये हैं . 
poetpawan50@gmail.com

रविवार, 15 नवंबर 2015

ये अहिंसा का देश कभी नहीं रहा हाँ उदार अवश्य रहा

मित्रों बिहार चुनाव जब से सम्पन्न हुए हैं भारतीय मीडिया और लेखकों, बुद्धिजीवियों में एक आत्मसंतोष दिखाई दे रहा है वे निढाल से हो गये हैं जैसे उनकी व्यूहर चना सफल रही उसी तरह जैसे अभिमन्यु को घेर मारने के बाद कौरव. सारी असहिष्णुता अचानक जैसे गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गयी. पर वे शायद भूल गये उसके बाद भी कौरवों का विनाश हुआ था . उनके पास अद्वितीय योद्धा थे कौरवों की ओर से दुर्योधन व उसके 99 भाइयों सहित भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, मद्रनरेश शल्य, भूरिश्र्वा, अलम्बुष, कृतवर्मा कलिंगराज श्रुतायुध, शकुनि, भगदत्त, जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज सुदक्षिण और बृहद्वल युद्ध में शामिल थे फिर भी हारे .सारा प्रपंच बस बीजेपी को पराजित करने के लिए था.पर बीजेपी मात्र एक व्यूह हारी है युद्ध नहीं, ये विरोधियोंयों को समझना होगा क्यूंकि उस व्यूह के बाद की लड़ाई की अगली कथा कौरवों के लिए बड़ी दुखदाई थी. पुरस्कार लौटाऊ कार्यक्रम अचानक बंद हो गया. सिद्धारमैया ने मुख्यमंत्री होते हुए जानबूझकर उसकाने के लिए गोमांस खाने की बात कही. क्या ये उचित था .फिर टीपू जयंती का विवादित आयोजन और उसमे '' तीन लोगों की हत्या '' इस पर किसी ने पुरस्कार नहीं लौटाया किसी मीडिया को असहिष्णुता नहीं दिखी उन्हें एक मामूली घटना लगी क्योंकि ऐसे ही जयचंदों के कारण भारत को१- ७११ मुहम्मद बिन कासिम .
२ -१०००, महमूद गजनवी
३- ११८२ मोहम्मद गोरी 17 आक्रमण
4- १२ वी शताब्दी में चंगेज खां
5- १३९९ तैमुर लंग
६ - 15 वीं बाबर
7- नादिर शाह
8- १७५७ अहमद शाह अब्दाली लुटा और बर्बाद किया और फिर अंग्रेजों ने.... हम अति सहिष्णु थे या कहें डरपोक थे कि मुट्ठीभर बाहरी आये और हमे लूटकर चले गये पर अब वैसा नहीं होगा .
हमें सच पढाया नहीं जाता....... ये अहिंसा का देश कभी नहीं रहा हाँ उदार अवश्य रहा पहला विश्व युद्ध हमारे ही देश में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में हुआ था जिसे दुनिया महाभारत के नाम से जानती है भारत वीरों की भूमि रही ...... पर आगे चलकर हमें पीढी दर पीढी जो पढ़ाया गया वहीं हमारा मानसिक चेतना बनकर हमारे खून में मिल गया और परिणाम हुआ हिन्दू सहनशील [डरपोक] हो गये .क्योंकि हमे डरपोक बनाया गया .हम डरपोक थे नहीं .अधूरे और अर्ध्य सत्य, उदाहरणों के जरिये , अपनी सुविधा और विचार धारा के अनुसार हमें पुरानी पीढी ने बरगलाये रखा इसी कारण हिन्दू सदैव आक्रमण का शिकार हुआ कभी आक्रमण किया नहीं . हम हमलावर नहीं रहे सदैव बचाव की मुद्रा में रहे इसका कारण हम और हमारी संस्कृति सदैव रौंदी गयी . अहिंसा के सबसे बड़े झूठे पैरोकार रहे गांधी जी .... वे उनका आचरण और उनकी कार्य शैली में जमी आसमा का अंतर था कुछ उदाहरण देखिये .... वे राम जी को अपना ईष्ट मानते थे आदर्श मानते थे और भगत सिंह आज़ाद को उग्रवादी कहते थे . राम अन्याय के विरुद्ध शस्त्र उठाया था.... अहिंसा एक सीमा तक ही ठीक है ..... भगवान राम ने स्वयं सुन्दर काण्ड के 57 वें दोहे में कहा है....
बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति\
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति \\
भावार्थ:-
इधर तीन दिन बीत गए, किंतु जड़ समुद्र विनय नहीं मानता। तब श्री रामजी क्रोध सहित बोले- बिना भय के प्रीति नहीं होती| उसके बाद जो चोपाई है वो इस प्रकार है ...

लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू॥
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती। सहज कृपन सन सुंदर नीती॥
ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी॥
क्रोधिहि सम कामिहि हरि कथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा॥
अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा। यह मत लछिमन के मन भावा॥
संघानेउ प्रभु बिसिख कराला। उठी उदधि उर अंतर ज्वाला॥
मकर उरग झष गन अकुलाने। जरत जंतु जलनिधि जब जाने॥
कनक थार भरि मनि गन नाना। बिप्र रूप आयउ तजि माना॥

दोहा- काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच।
बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच॥५८॥
   सुन्दर काण्ड  में ही एक जगह हनुमान जी रावण से कहते हैं जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे।  अर्थात जिसने मुझे मारा  मैंने उसे मारा .... गांधी जी ने कभी राम जी के हनुमान जी के कथनों से कुछ क्यों नहीं सीखा ..... कायर सिर्फ .....दैव -दैव आलसी पुकारा .... कीरट लगाते हैं....  जो कायर हैं   छोटे ह्रदय के हैं वे अहिंसा की आड़ लेकर महान बनने का ढोंग करते हैं और एक पुरी पीढी को कायर बना देते हैं ऐसे लोग ही अहिंसा परमों धर्मः ... का अधूरा श्लोक  रटते हैं अधूरा श्लोक गुमराह करता है  जैसे अधूरा ज्ञान  महाभारत के शांति पर्व में लिखा है  ....अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: l"
 अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है, और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है.. पर आज तक अधूरा श्लोक ही पढ़ाया जरा रहा है  क्यों ..क्या ये शोष का विषय नहीं है . हाँ हम शरण में आये की रक्षा जरुर करते थे  इसी लिए ----------------
, सदियों पुरानी भारतीय सभ्यता आज भी इसलिए जीवित है कि सहिष्णुता इसका स्वभाव ही नहीं, सांस भी है. हिंदू संस्कृति की छांव में बौद्ध, जैन, सिख के साथ-साथ अरब से आए इस्लाम जैसे धर्म ने भी अपने को खूब पोषित किया. यह अलग बात है कि इस सहिष्णुता की सांस की कीमत भी 1947 में भारत ने चुकाई है.
इस बात को याद रखने की जरूरत है कि भारत अगर सेक्युलर है, तो वह इसलिए नहीं है कि इंदिरा गांधी ने 1976 में सेक्युलर शब्द को संविधान का हिस्सा बनाया था. भारत इसलिए है कि हिंदू मूलत: और अंतत: सेक्युलर हैं. संसार के प्रमुख धर्मो में सिर्फ  हिंदू धर्म का कोई पैगंबर नहीं है यानी मोहम्मद, ईसा मसीह, बौद्ध, महावीर या गुरुनानक की तरह हिंदू धर्म का कोई संस्थापक नहीं है. हिंदू या सनातन धर्म संसार का सबसे प्राचीन धार्मिंक विचार है. उसके बाद यहुदी, जैन, बौद्ध वगैरह का स्थान आता है. इस्लाम और सिख तो नए धर्म माने जा सकते हैं. भारत के मालाबार समुद्र तट पर 542 ईसा पूर्व यहूदी पहुंचे. वे तब से यहां अमन-चैन से गुजर-बसर कर रहे हैं. ईसाइयों का भारत में आगमन चालू हुआ 52 ईस्वी में. वे भी सबसे पहले केरल में आए. अब बात पारसियों की. वे कट्टरपंथी मुसलमानों से जान बचाकर ईरान से साल 720 में गुजरात के नवासरी समुद्र तट पर पहुंचे. अब वे देश के अहम समुदायों में शुमार होते हैं.
इस्लाम भी केरल के रास्ते भारत आया. लेकिन, भारत में इस्लाम के मानने वाले बाद के दौर में यहूदियों या पारसियों की तरह से शरण लेने के इरादे से नहीं आए थे. उनका लक्ष्य भारत पर राज करना था. वे आक्रमणकारी थे. भारत में सबसे अंत में विदेशी हमलावर अंग्रेज थे. उन्होंने 1757 में पलासी के युद्ध में विजय पाई. लेकिन गोरे पहले के आक्रमणकारियों की तुलना में ज्यादा समझदार थे. समझ गए थे कि भारत में धर्मातरण करवाने से ब्रिटिश हुकूमत का विस्तार संभव नहीं. भारत से कच्चा माल ले जाकर वे अपने देश में औद्योगिक क्रांति की नींव रख सकेंगे. इसलिए ब्रिटेन, जो एक प्रोटेस्टेंट देश है, ने भारत में अपने 190 सालों के शासनकाल में धर्मातरण शायद ही कभी किया हो. इसलिए ही भारत में प्रोटेस्टेंट ईसाई बहुत कम हैं.
ज्यादातर ईसाई कैथोलिक हैं. इनका धर्मातरण करवाया आयरिश, पुर्तगाली और स्पेनिश ईसाई मिशनरियों ने. इन्होंने गोवा, पुडुचेरी और देश के अन्य भागों में अपना लक्ष्य साधा. दलित हिंदुओं का भी धर्मातरण करवाया. इसके बावजूद देश में कैथोलिक ईसाई कुल आबादी का डेढ़ फीसद हैं. प्रोटेस्टेंट तो और भी कम. भारत में अगर बात मुगलों की करें तो उन्होंने तीन तरह से धर्मातरण करवाया. पहला, वंचितों को धन इत्यादि का लालच देकर. दूसरा, मुगल कोर्ट में अहम पद देने का वादा करके; और तीसरा, इस्लाम स्वीकार करने के बाद जजिया टैक्स से मुक्ति. इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की रोशनी में देखने की जरूरत है कि यहां मुसलमानों और ईसाइयों के साथ कितना भेदभाव हो रहा है.
 कई हिन्दुओं   हिन्दुओं की दाल रोटी  पहचान और राजनीति हिन्दू  विरोध पर ही टिकी है  उन्हें और मीडिया को आजम खान के आज के बयान में दोमुंहापन  नजर नही आता  पेरिस हमले पर आजम खान ने कहा  ये क्रिया की प्रतिक्रिया है तो फिर इस तरह तो गोधरा के प्रतिक्रिया गुजरात दंगे थे   ये मान लेना चाहिए ....पर न मीडिया मानेगी न ये ...... असली भारत के गद्दार और बांटने वाले यही हैं ...इसीलिये ये मोदी को बर्दाश्त नहीं कर  पा रहे हैं  और मीडिया और छद्म लेखकों, बुद्धिजीवियों  को शिखंडी की तरह आगे करके लड़ रहे हैं ....पर इस बार ये हथकंडा  कामयाब होने नहीं देना हैं ..... हम अपने देश के मुसलमानों का भी उतना ही सम्मान करते हैं जितना हिन्दू का पर मामला समानता का हो भेदभाव वाली आखों को बर्दाश्त नहीं करना है उन्हें सदैव के लिए फोड़ना देश हित में जरुरी है  जय हिन्द 
पवन  तिवारी 


ये अहिंसा का देश कभी नहीं रहा हाँ उदार अवश्य रहा.........

मित्रों बिहार चुनाव जब से सम्पन्न हुए हैं भारतीय मीडिया और लेखकों, बुद्धिजीवियों में एक आत्मसंतोष दिखाई दे रहा है वे निढाल से हो गये हैं जैसे उनकी व्यूहर चना सफल रही उसी तरह जैसे अभिमन्यु को घेर मारने के बाद कौरव. सारी असहिष्णुता अचानक जैसे गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गयी. पर वे शायद भूल गये उसके बाद भी कौरवों का विनाश हुआ था . उनके पास अद्वितीय योद्धा थे कौरवों की ओर से दुर्योधन व उसके 99 भाइयों सहित भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, मद्रनरेश शल्य, भूरिश्र्वा, अलम्बुष, कृतवर्मा कलिंगराज श्रुतायुध, शकुनि, भगदत्त, जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज सुदक्षिण और बृहद्वल युद्ध में शामिल थे फिर भी हारे .सारा प्रपंच बस बीजेपी को पराजित करने के लिए था.पर बीजेपी मात्र एक व्यूह हारी है युद्ध नहीं, ये विरोधियोंयों को समझना होगा क्यूंकि उस व्यूह के बाद की लड़ाई की अगली कथा कौरवों के लिए बड़ी दुखदाई थी. पुरस्कार लौटाऊ कार्यक्रम अचानक बंद हो गया. सिद्धारमैया ने मुख्यमंत्री होते हुए जानबूझकर उसकाने के लिए गोमांस खाने की बात कही. क्या ये उचित था .फिर टीपू जयंती का विवादित आयोजन और उसमे '' तीन लोगों की हत्या '' इस पर किसी ने पुरस्कार नहीं लौटाया किसी मीडिया को असहिष्णुता नहीं दिखी उन्हें एक मामूली घटना लगी क्योंकि ऐसे ही जयचंदों के कारण भारत को१- ७११ मुहम्मद बिन कासिम .
२ -१०००, महमूद गजनवी
३- ११८२ मोहम्मद गोरी 17 आक्रमण
4- १२ वी शताब्दी में चंगेज खां
5- १३९९ तैमुर लंग
६ - 15 वीं बाबर
7- नादिर शाह
8- १७५७ अहमद शाह अब्दाली लुटा और बर्बाद किया और फिरअंग्रेजों ने हम अति सहिष्णु थे या कहें डरपोक थे कि मुट्ठीभर बाहरी आये और हमे लूटकर चले गये पर अब वैसा नहीं होगा .
हमें सच पढाया नहीं जाता....... येअहिंसा का देश कभी नहीं रहा हाँ उदार अवश्य रहा...... ये लेख अधूरा है मित्रों ..... .... पूरा करूँगा रात तक .... इंतजार कीजिये

रविवार, 8 नवंबर 2015

भाजपा की हार के कारण और उसके मायने

 भाजपा की हार के कारण  और उसके मायने
 आज 8 नवम्बर 2015 भाजपा के लिए  चिर स्मरणीय है.क्योंकि  भाजपा इस हार से  सदियों तक  सीख सकती  है.उसे भविष्य में यदि अजेय होना है या अधिकाधिक अपने [ जीत ] विचारों का प्रसार करना है तो . बीजेपी के हारने के अनेक कारण हैं जैसे महागठबंधन जीतने के अनेक  कारण हैं.सबसे पहले महागठबंधन को जीत की बधाई.
बड़े कारणों में गलत समय पर बयान, गलत समय पर बयानों पर प्रतिक्रिया और  कुछ  प्रभावशाली  नेताओं  की अनदेखी,या यूँ कहें की बीजेपी के थिंक टैंक में अहंकार का भाव इतना प्रबल हो गया था कि उन्हें मोदी के जी के सामने कोई अन्य कारक प्रभावी लग ही नहीं रहा था .सो काफी हद तक अपने अनुकूल लोगो को टिकट दिया गया जिसकी जितनी बड़ी पकड़ थी उसे टिकट उतनी जल्दी मिला.जिनकी जनता में पकड़ थी उन्हें टिकट  नहीं मिला .
बिहार चुनाव आधा बाहरी मुद्दे पर लड़ा गया आधा स्थानीय मुद्दे प ,स्थानीय मुद्दे पर महागठबंधन जीता और बाहरी मुद्दे ने भाजपा को हराया,बीजेपी के हार के मूल कारणों में एक कारण ये भी है कि जिन मुद्दों पर उसे त्वरित प्रतिक्रिया देनी चाहिए थी उस पर उसने देर कर दी और जिन मुद्दों पर नहीं देनी चाहिए थी उस पर जल्दी और  विपरीत परिस्थियों में बिना समझे- बूझे प्रतिक्रिया दे दी.आरक्षण ने बड़ी भूमिका अदा की.भागवत जी के प्राथमिक बयान ने एक वर्ग को मोदी के विरोध में लाम बंद कर दिया.दूसरा आरक्षण के पक्ष में मोदी जी का देरी से आया बयान आरक्षण वालो कोअपने पक्ष में ला नहीं पाया उल्टा आरक्षण विरोधी  वर्ग काभी एक हिस्सा मोदी से रूठ गया.मैंने सोशल मीडिया पर इस पर तीखी प्रतिक्रिया उन लोगों की देखी जो रोज मोदी- मोदी के नारे लगाते थे.
 बीजेपी पर सुनियोजित तरीके से वैश्विक रूप से हमला बिहार चुनाव को देखते हुए किया गया.  जिसे बीजेपी  को समझने  में देर लगी और वो बिहार चुनाव के कारण दबाव में आ गयी और बीजेपी  के देशी- विदेशी विरोधी  इसी मौके की ताक में थे .बीजेपी चुनाव सम्पन्न होने तक  वेट एंड वाच की मुद्रा  में आ गयी . बस यहीं बीजेपी की हार निश्चित हो गयी.विरोधी अपने अभियान में सफल रहे .पुरस्कार वापसी उसी योजना का एक हिस्सा भर थी .यदि बीजेपी बिहार चुनाव जीत जाती आधे विरोधी अपने आप पस्त हो जाते और मोदी जी का वैश्विक कद काफी बढ़ जाता एक नये भारत का पुनर्निर्माण होता  जिसे आज ब्रेक लग गया . ये दुखद है इस देश के लिए . इसका प्रभाव बीजेपी को अब संसद में भी दिखेगा .उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव पर भी दिखेगा . बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति में मात्र 20 प्रतिशत का अंतर है  इसलिए कुछ ऐसा ही खेल यूपी में भी होगा . विकास  का मुद्दा गौण रहा ,जातीय और अन्य मुद्दे हावी रहे . इस चुनाव ने ये भी एक मिसाल पेश की है दूसरे प्रदेशों के लोगो के लिए कि बिहार की मानसिकता में ज्यादा बदलाव नहीं आया है उन्हें विकास से ज्यादा मतलब नहीं है  उन्हें जाति प्यारी है बिहार के नौजवानों को शायद अभी कुछ और सालों तक दूसरे राज्यों की चौखट  पर मत्था टेकना  होगा. वे जीते जिन्हें  कोर्ट से दोष  साबित होकर सजा हो गयी . जिन्होंने जिस जनता का पैसा लूटा उसी जनता ने उसे सर पर बिठाया इसे क्या कहेंगे.इससे साबित होता है  कि आज भी बिहार  सोंच के स्तर पर कहाँ है . खैर बीजेपी को सावधान रहना होगा .
  

मंगलवार, 27 अक्टूबर 2015

मेरी कुछ नई पुरानी तस्वीरें



















कथा संग्रह चवन्नी का मेला की कहानी पर आधारित फिल्म ......स्लम ज्वेल्स

 दैनिक पंजाब केसरी के दिल्ली संस्करण में 25 अक्तूबर 2015 को गोल्डन रेज ऑफ़ स्लम ज्वेल्स की ख़बर

रविवार, 18 अक्टूबर 2015

हमारी फिल्म ''गोल्डन रेज ऑफ़ स्लम ज्वेल्स''

मित्रों आज के हिन्दी सामना में हमारी फिल्म ''गोल्डन रेज ऑफ़ स्लम ज्वेल्स'' की खबर प्रकाशित हुई है

कथा संग्रह ''चवन्नी का मेला'' की कहानी ''तेरे को मेरे को'' पर आधारित हिन्दी फीचर फिल्म ''गोल्डन राइज ऑफ़ स्लम ज्वेल्स '' का मुहूर्त संपन्न

 मेरे
कथा संग्रह ''चवन्नी का मेला'' की कहानी ''तेरे को मेरे को'' पर आधारित हिन्दी फीचर फिल्म ''गोल्डन राइज ऑफ़ स्लम ज्वेल्स '' का मुहूर्त वीरा देसाई मार्ग गीत स्टूडियो में एक प्रार्थना गीत की रिकार्डिंग के साथ अंधेरी [प.] में संपन्न हुआ .फिल्म के निर्देशक अनवर हुसैन के अनुसार यह फिल्म एक ऐसी  फिल्म   है  जो गरीब ,वंचित , शोषित और संघर्षरत 15 से 18 के किशोर उम्र के बच्चों की कहानी हैं , हिन्दी सिनेमा में पहली बार किशोर बच्चों पर केन्द्रित एक पूर्ण फिल्म बन रही है . इससे पहले या तो युवाओं या छोटे बच्चों पर फ़िल्में बनती रही हैं हिन्दी फिल्मों में 14 से 17 की उम्र के किशोरों पर केन्द्रित फिल्मे न के बराबर बनीं हैं . ये फिल्म दिन भर छोटे -मोटे  काम करके और फिर शाम को नाईट स्कूलों में  पढ़ने वाले ,सपने देखने वाले , वक्त से दो- चार  हाथ करने की इच्छा रखने वाले किशोर छात्रों की मनोरंजन और प्रेरणा से पूर्ण कहानी है . अनवर जी के अनुसार  कहानी के विषय ने मुझे फिल्म बनाने के लिए मजबूर कर दिया .सैयद अनवर हुसैन गत 25 वर्षों से  फिल्म निर्देशन से जुड़े हुए हैं .इन्होने आर के नैय्यर  और फिरोज खान जैसे बड़ेनिर्देशकों के साथ काम किया .  इस फिल्म का निर्माण रेयर इमैजिनेशन और एक्स्प्रेसंस एंड डायलाग के बैनर तले हो रहा है सह निर्माता हैं श्याम पुरोहित जी एसोसियेट प्रोड्यूसर हैं ब्लू एप्पल इंटरटेनमेंट, निर्देशक एवं गीतकार हैं सैयद अनवर हुसैन ,संगीतकार हैं रिकी , स्क्रिप्ट [ कथा पटकथा संवाद ] पवन तिवारी की है कैमरामैन हैं नीलाभ कौल ,कला निर्देशक हैं नेशनल एवार्ड विजेता सी वी मोरे जी ,एक्शन मास्टर हैं राजू वर्मा ,संपादक हैं पी . श्रीवास्तव 

शनिवार, 17 अक्टूबर 2015

धृतराष्ट्र लेखकों व कथित बुध्दिजीवियों की मैं घोर निंदा करता हूँ

धृतराष्ट्र लेखकों  व कथित  बुध्दिजीवियों  की मैं घोर निंदा करता हूँ

.मित्रों दादरी में अख़लाक़ की हत्या जितनी निंदा की जाए कम है  परन्तु  उन लोगों के खिलाफ़ आवाज उठानी होगी जो इस हत्या  को 84 के सिख दंगों , कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार , भागलपुर दंगे , आपातकाल, मुजफ्फर पुर दंगे . गोधरा दंगे , फैजाबाद दंगे , केरल में हिन्दू भाइयों की हत्या  ,बंगाल में पूरे हिन्दुओं के गाँव को घेर कर जला दिया गया .जिसका जिक्र तस्लीमा नसरीन ने  आज के नवभारत टाइम्स को दिए साक्षात्कार में किया है .ऐसे अनगिनत उदाहरण है . उस पर पुरस्कार लौटाने वाले कथित बुद्धिजीवी  लेखक  क्यों  नहीं  अपनी जुबान खोले  क्या हिन्दू होना, हिन्दू की पीड़ा ,हिन्दू का मरना अथवा अपमानित  होना  कोई मायने  नहीं रखता  हम कीड़े - मकोड़े हैं . एक मुस्लिम का मरना  अर्थात लोकतंत्र संकट में ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता  संकट में ,असहिष्णुता चरम पर ,,धर्मनिरपेक्षता  खतरे में, क्या इतनी खतरनाक स्थिति में भारत पहुँच गया है. अख़लाक़ की दर्दनाक हत्या को हिन्दू बनाम मुस्लिम  बनाकर वस्तु की तरह बेचा जा रहा है , मीडिया इसे अन्तर्राष्ट्रीय घटना बनाने पर तुली है और कथित लेखक  इसे अपने विरोध के हथकंडे से वैश्विक स्तर पर भारत की ऐसी छवि विदेशी मीडिया के सहारे गढ़ने में लगे हैं जैसे भारत में अभिव्यक्ति की , धर्मनिरपेक्षता की  कोई जगह ही नहीं बची है भारत में अराजकता अपने चरम पर है .आपातकाल जैसी  स्थिति है .  आज लेखक होने का अर्थ है हिन्दू विरोध इन लेखकों का अस्तित्व ही इसी अवधारणा पर टिका है . आज से पहले कितने लोग इन लेखको जानते थे  पर आज ये देश की इज्जत विदेशों में बेच कर  अपना नाम चमका रहे हैं  .ये एक तरह का राष्ट्र द्रोह ही है  आज भी हम एक भारतीय बन कर  नहीं  बल्की हम हिन्दू मुस्लिम बनकर जी रहे हैं . यही वो मानसिकता थी जिसने भारत को  चीर कर भारत पाकिस्तान  बना दिया . पर हमने उससे कुछ नहीं सीखा .नेता तो नेता  आज बुद्धिजीवी भी हिन्दू  मुस्लिम की राजनीति कर  रहे हैं . आज  जो लेखक  जिस सुनियोजित तरीके से विरोध  कर रहे हैं  वह दर्शाता है कि नेताओं को उन्होंने राजनीति में फेल कर दिया है . यह वास्तव में एक चुनी हुई सरकार के खिलाफ सुनियोजित  षड्यंत्र  है. जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता  और असहमत होने के अधिकार के तहत  अपने अधिकार का प्रयोग  इस सरकार  व बहुसंख्य   लोगों  विरोध में कर   रहे हैं   बड़े सम्मान के साथ उन्ही अधिकारों के तहत हम उनका विरोध  रहे हैं.  उनके पुरस्कार लौटाने के छद्म कारणों की घोर  निंदा करते हैं .लेखक निष्पक्ष होता है  और ये पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं  ऐसे धृतराष्ट्र लेखको  बुद्धिजीवियों की  हम भर्त्सना करते हैं. माँ शारदा का पुत्र होने का दंभ भरने वाले इन  कथित पुत्रो को माँ शारदे सद्बुद्धि दें    

बुधवार, 30 सितंबर 2015

अटल का बदहाल बटेश्वर

अटल जी की वर्ष गांठ पर विशेष लेख
अटल जी का बदहाल बटेश्वर
मुम्बई, अटल जी वैश्विक शख्शियत हैं .उनके बारे में बहुत कुछ कहा व लिखा जा चुका है और उनके बारे में बहुत सी बाते आम चर्चा की विषय भी बन चुकी हैं ,फिर चाहे उनका कवि व्यक्तित्व हो ,या अच्छे वक्ता का रूप या फिर हिन्दी प्रेमी व उच्च कोटि के राजनेता का सब एक से बढ़कर एक पर मैं एक दूसरे तरीके से अटल जी को याद करना चाहता हूँ .उनकी जन्म भूमि को लेकर .हमारी संस्कृति में संस्कृत भाषा में एक पद्य है ,जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसीअर्थात् जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होते हैं। इसी लिए मैं आज अटल जी की जन्मभूमि से कुछ बातें कहना चाहूँगा .
आगामी 25 दिसंबर को हमारे देश की महान विभूति अटल बिहारी वाजपेयी जी की वर्षगांठ है .वे उस पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं जो 2 सांसदों की पार्टी से यात्रा प्रारम्भ करके आज एक लम्बे अर्सेबाद इस देश में एक पूर्ण बहुमत की स्थाई सरकार बनाई है .आज देश के प्रधान मंत्री नरेन्द्र जी हैं .इनका उत्थान अटल जी के ही समय में हुआ .एक तरह से वर्तमान प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी अटल जी के ही शिष्य है . और विकासोन्मुखी सोच रखतें हैं .इसके लिए वे चर्चा में भी रहते हैं और इसी विषय को चुनाव में मुद्दा बनाकर वे सत्ता में आये भी हैं . देश में विकास की एक नई उम्मीद जगी है .ऐसे में दशकों से उपेक्षित पड़े शांति काशी व ,सभी तीर्थो का भांजा , के नाम से विख्यात महान तीर्थ भागवान शिव का स्थान और श्री अटल बिहारी वाजपेई का जन्म स्थान बटेश्वर का विकास भी होना चाहिए .नरेन्द्र को अपने गुरु के जन्मस्थान [दक्षिणेश्वर] बटेश्वर के विकास का शंखनाद उनके जन्म दिन से करना चाहिए .नरेन्द्र के लिए ये एक स्वर्णिम अवसर है .वे मोक्ष काशी [बनारस ] के प्रतिनिधि हैं और अटल जी शांति काशी के . बिना शांति के मोक्ष संभव नहीं है. यह नरेन्द्र मोदी जी को समझना होगा .
गत 12 दिसंबर को मैं बटेश्वर गया था .वहां की दुर्दशा अकथनीय है .फिर भी मैं अपनी अल्प समझ से कुछ शब्दों के माध्यम से कहना चाहूँगा .२४ दिसंबर १९२४ को ब्रम्ह्मुहूर्त में बटेश्वर के जिस घर में अटल जी का जन्म हुआ था आज वह स्थान जंगल का रूप ले चूका है . आस -पास कटीले बबूल हैं . अटल जी व उनका परिवार जिस मोहल्ले में रहता था उसे वाजपेई मोहल्ला कहते थे . उस मोहल्ले में प्रवेश के लिए एक जमाने में एक शानदार प्रवेशद्वार [गेट ] हुआ करता था आज वहां कूड़ा - कचरा है . अटल जी के पूर्वज कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे. बटेश्वर आकर उन्होंने वाजपेय यज्ञ कराया .जिससे उनका उपनाम वाजपेयी पड़ गया और वे यहीं बस गये .वाजपेई मोहल्ला बेहद समृद्ध और कुलीन था .अगल - बगल के शानदार महलनुमा मकानों के अवशेषों को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है . यहीं अटल जी के पैत्रिक घर से लगभग 100 मीटर की दूरी पर बनियों का बेहद समृद्ध मोहल्ला था जो व्यापार और समृद्धि के लिए पूरे भदौरिया स्टेट में प्रसिद्द था .आज उसके वैभव की कहानी उसके आलीशान अवशेष खंडहर कह रहें हैं .उसी खानदान के एक सज्जन आज बटेश्वर नाथ महादेव तीर्थ के पास पार्किंग स्टैंड में टिकट काटतें हैं .ये पूरा क्षेत्र भदौरिया स्टेट की शान था यहाँ के राजा भदावर सिंह भदौरिया थे . बटेश्वर में उनके अस्तबल का भव्य भग्नावशेष आज भी बरबस आकर्षित करता है .अटल जी कि मित्र के छोटे भाई एवं सेवा निवृत अध्यापक डूरी लाल गोस्वामी जी हमें उस स्थान पर ले गये जहाँ अटल जी अपने बचपन व युवावस्था में नहाया करते थे .ये स्थान है प्रसिद्द गोपालेश्वर महादेव मंदिर का घाट , जहाँ अब घाट जैसा कुछ नहीं है . यह मंदिर भी यमुना जी के तट पर स्थित श्वेत रंग के 108 मंदिरों में से एक है .आस्था ,पर्यटन और विरासत का प्राचीन केंद्र बटेश्वर आज बदहाल है . आज मंदिरों के मरम्मत की आवश्यकता है . वे पश्चिम की तरफ से टूट रहे हैं .वरना वे भी एक दिन अवशेष कहे जायेंगे .
मैं बटेश्वर महादेव के दर्शनकर यमुना जी के दर्शनार्थ उनके समीप गया तो देखा यमुना जी का पानी काला हो गया है. आप की हिम्मत स्नान करने की नहीं करेगी .मैंने अंजुली में पानी लिया तो ढेर सारा कचरा मेरी अंजुली में आ गया .इसी यमुना जी में अटल जी तैरा करते थे .अटल जी को तैराकी का शौक़ था. मोदी जी ने विष्णु पत्नी गंगा जी की सफाई पर एक अलग मंत्रालय ही बना दिया है .फिर यमुना जी भी तो विष्णुप्रिया हैं .उनकी उपेक्षा क्यों ? किंवदन्ती के अनुसार यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण के पितामह राजा शूरसेन की राजधानी थी। जो यहाँ से मात्र 3 किमी है . (शौरि कृष्ण का भी नाम है)। जरासंध ने जब मथुरा पर आक्रमण किया तो यह स्थान भी नष्ट-भ्रष्ट हो गया था। बटेश्वर-महात्म्य के अनुसार महाभारत युद्ध के समय बलभद्र विरक्त होकर इस स्थान पर तीर्थ यात्रा के लिए आए थे।यह भी लोकश्रुति है कि कंस का मृत शरीर बहते हुए बटेश्वर में आकर कंस किनारा नामक स्थान पर ठहर गया था। जो पास में ही है . बटेश्वर को ब्रजभाषा का मूल उदगम और केन्द्र भी माना जाता है। जैनों के 22वें तीर्थकर स्वामी नेमिनाथ का जन्म स्थल शौरिपुर ही माना जाता है। जैनमुनि गर्भकल्याणक तथा जन्म-कल्याणक का इसी स्थान पर निर्वाण हुआ था, ऐसी जैन परम्परा भी यहाँ प्रचलित है। वास्तव में यहाँ पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं .
बटेश्वर घाट की अर्धचन्द्राकार 108 मंदिरों वाली लम्बी श्रेणी अविच्छिन्नरूप से दूर तक चली गई है। उनमें बनारस की भाँति बीच-बीच में रिक्तता नहीं दिखलाई पड़ता। बातचीत में पता चला कि भदोरिया वंश के पतन के पश्चात बटेश्वर में 17वीं शती में मराठों का आधिपत्य स्थापित हुआ। इस काल में संस्कृत विद्या का यहाँ पर अधिक प्रचलन था। जिसके कारण बटेश्वर को छोटी काशी भी कहा जाता है। पानीपत के तृतीय युद्ध (1761 ई.) के पश्चात्त वीरगति पाने वाले मराठों को नारूशंकर नामक सरदार ने इसी स्थान पर श्रद्धांजलि दी थी और उनकी स्मृति में एक विशाल मन्दिर व 108 दीपों का स्तम्भ भी बनवाया जो बेहद प्रसिद्द है .सरकार चाहे तो बटेश्वर पर्यटन का केंद्र बन सकता है .
स्थानीय निवासी सेवा निवृत्त अध्यापक डूरी लाल गोस्वामी जी ने बातचीत में बताया कि बीते जमाने में बटेश्वर की एक अलग ही आभा थी .पर सरकार व् प्रशासन की अनदेखी की वज़ह से आज बटेश्वर की ये दुर्दशा है .श्री बटेश्वर नाथ मेला पूरे देश में प्रसिद्द था .पुष्कर के समान , यहाँ का मेला उच्च कोटि के ऊँटों के लिए विख्यात था, साथ ही यहाँ अच्छी नस्ल के घोड़े भी मिलते थे .पिछले वर्ष मेले में हंसिनी नाम की एक घोड़ी डेढ़ करोड़ में बिकी. जिसकी मीडिया में भी बड़ी चर्चा रही .यह घोड़ी आगरा पंचायत के अध्यक्ष गणेश यादव की थी . कार्तिक शुक्ल पक्ष दूज से एक महीने चलने वाले इस मेले में चौदस के दिन विराट कवि सम्मलेन होता था .जिसमें अटल जी अपनी ओज पूर्ण कविताओं से समां बांध देते थे .अटल जी जब भी बटेश्वर आते धोती- कुर्ता पहने पैर में चप्पल तथा कन्धे पर झोला लटकाए आते .ये उनकी पहचान थी .सबसे सहजता से मिलते . उन्हें खिचड़ी बहुत पसंद थी . कभी - कभी भंग भी लेते थे .दिल के सच्चे ,मिलनसार .
अटल जी की सोंच बहुत बड़ी थी .जब वे प्रधानमंत्री बने तो बटेश्वर से हम मिलने गये .हमें उम्मीद थी की अब बटेश्वर का विकास होगा . हमने उनसे बटेश्वर के लिए विकास के लिए कुछ करने का अनुरोध किया .अटल जी का जवाब था - बटेश्वर का ही क्यों ? बाकी जगहों का भी विकास होना चाहिए मैं पूरे प्रधानमंत्री हूँ .मेरे लिए सबका विकास ध्येय है .मेरे लिए सब बटेश्वर जितने ही महत्वपूर्ण हैं .मैं पक्षपात नही कर सकता .मेरी आत्मा मुझे इसकी इजाजत नही देती . विकास का काम क्षेत्र के सांसद, विधायक व स्थानीय निकाय का है राज्य के मुख्यमंत्री को सोंचना चाहिए ..हाँ वे मेरे पास कोई विकास की योजना लायें तो मैं अवश्य सहायता करूंगा . ऐसे निराले व बड़ी सोंच वाले नेता थे अटल जी . आज भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है .बटेश्वर वासियों को मोदी जी से बड़ी उम्मीदें हैं .अटल जी के जन्म स्थान बटेश्वर का समुचित विकास ही अटल जी को सच्ची श्रद्धांजली होगी . उनके जन्म दिन पर मोदी जी को बटेश्वर आना चाहिए .यही बटेश्वर के लोग चाहते हैं यहीं पास में मुख्यमंत्री अखिलेश ने विश्वस्तर सफारी बनवाया है . पिछले मेले में हेलीकॉप्टर से आये और उड़ गये .यहाँ एक बालिका इंटर कालेज की महती आवश्यकता है . अटल जी की बहन ने अस्पताल के लिए अपनी जमीन दान कर दी. अस्पताल बना भी पर न तो चिकित्सक हैं नही दवाएं . खाली ईमारत से क्या होगा . बातें ख़त्म होनें का नाम नहीं ले रही थी दोपहर से शाम हो गयी थी .थोड़ी -थोड़ी ठण्ड पड़ने लगी थी . बटेश्वर पुनः आने का वादा कर हम गोस्वामी जी से विदा लिए और आगरा की तरफ चल पड़े .वास्तव में बटेश्वर का विकास ही अटल जी के प्रति सच्चा सम्मान सच्ची श्रद्धा होगी .
लेखक अटल जी की जन्मभूमि बटेश्वर से लौटकर आखों देखी वर्तमान स्थिति की विशेष रिपोर्टिंग
लेखक कई पत्र पत्रिकाओं के सम्पादक रहें हैं वर्तमान में स्वतंत्र लेखन के साथ -साथ वर्तमान शोध शक्ति पत्र के सम्पादक तथा में सनातन टीवी में क्रिएटिव डायरेक्टर हैं .




पवन तिवारी ,email -poetpawan50@gmail.com ,संपर्क +91 7718080978 मुंबई