यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 27 दिसंबर 2015

भाजपा के लिए ये आपसी नादानियाँ मंहगी न पड़ जाये

मोदी की साख पर सवाल शुरू... आने वाले दिनों में भाजपा के लिए अच्छे नहीं .

बीजेपी  को कांग्रेस  वाली गलतियों से बचना होगा और  जो गलतियाँ हुईं हैं उन्हें सुधारना होगा या नहीं सुधार सकती तो आगे से पुनः गलती न हो वरना बंगाल ,पंजाब , उत्तर प्रदेश  में उसे ''का पछताए होत जब चिड़िया चुग गई खेत '' वाली स्थिति होगी . यदि ऐसा हुआ तो बीजेपी के लिए दुखद होगा पर देश के लिए घातक. पर होनी को सिर्फ अच्छे कर्म टाल सकते हैं और कोई नहीं .
शत्रुघ्न सिन्हा , आर. के. सिंह  और अब कीर्ति आज़ाद . ये बीजेपी के लिए अशुभ संकेत है . कीर्ति आज़ाद को हाशिए पर धकेलना  घातक होगा . ''न खाऊंगा  न खाने दूंगा'' मोदी के इस नारे को कीर्ति का निलंबन  ठेंगा दिखाता हैं साथ ही मोदी की चुप्पी और कीर्ति को मिलने का समय न देना मोदी की उज्ज्वल छवि को ठेस पहुंचा  रहा है . जिसका असर आगामी चुनाओं  में अवश्य दिखेगा . बीजेपी मोदी नामक व्यक्ति के कारण जीती है .बीजेपी के कारण नहीं. मोदी की छवि ध्वस्त अर्थात बीजेपी पराजित .
अब बात करते हैं कुछ करियर और कद की , कुछ आत्म सम्मान की , कुछ  उपेक्षा की , कुछ त्याग की ,  कुछ अपमान की ,
बात शुरू करते हैं शत्रुघ्न सिन्हा से ...... शत्रुघ्न बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं  बीजेपी जब दो सांसदों की पार्टी थी . जब चारो तरफ कांग्रेस का बोलबाला था .  ऐसे समय में कांग्रेस के तमाम प्रलोभनों के बावजूद  शत्रुघ्न ने  बीजेपी को चुना . उस समय शत्रुघ्न अमिताभ को कड़ी टक्कर दे रहे थे .डर कर अमिताभ ने  निर्माताओं  से शत्रु के साथ काम करने से मना कर दिया था . ये  सर्व विदित है . बीजेपी  ने ऐसे में शत्रुध्न सिन्हा के स्टारडम का खूब दोहन किया . ऐसे में 30 -32 वर्षों बाद पार्टी[ मोदी एंड कम्पनी]  के अच्छे दिन आये तो शत्रुघ्न सिन्हा के साथ ऐसा व्यवहार किया गया कि उनके बुरे दिन आने लगे . उन्हें अचानक मात्र अभिनेता कहकर किनारे कर दिया गया . टीवी स्टार स्मृति ईरानी जो एक टीवी स्टार रही केन्द्रीय मंत्री  बन गयी .कोई बात नहीं वे प्रतिभशाली भी है  पर गायक बाबुल सुप्रियों जो बहुत सफल भी नहीं रहे मंत्री बन गये .पर इसके राजनीतिक  मायने थे बंगाल के सन्दर्भ में . पर तमाम जूनियरों को सिंहासन और शत्रु को किसी ने बैठने के लिए कुर्सी तक नहीं पूछी. ऐसे में शत्रु का दुखी , अपमानित महसूस करना  व क्रोधित होना  लाजमी है फिर बिहार में क्या हुआ कहने की जरुरत नहीं .ऐसा नहीं शत्रु ने गलती नहीं की  ,पर उसकाया किसने ...
अब बात कीर्ति आज़ाद की .... कीर्ति आज़ाद 1993 में बीजेपी से जुड़े  . वे 1983 की विश्वविजेता टीम के सदस्य थे .उन्होंने  प्रथम श्रेणी मैच में साढ़े 6 हजार से अधिक रन बनाये हैं और 240 से अधिक विकेट लिए हैं .
 अब तक 3 बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हैं .1993 में दिल्ली विधान सभा के भी सदस्य रहे . इनके पिता भागवत झा बिहार के कद्दावर नेता थे वे बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे . कीर्ति दोनों क्षेत्र के माहिर हैं.ऐसे में क्रिकेट में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जेटली जी और भाजपा को  कीर्ति की बात सुननी चाहिए थी . कई बार बतौर दिल्ली जिला क्रिकेट संघ के अध्यक्ष  के रूप में जेटली जी ने  कीर्ति की शिकायतों को अनसुना किया और कीर्ति की उपेक्षा की. जिससे कीर्ति शायद आहत थे .कीर्ति को कहीं न कहीं ये भी लगा कि मैं क्रिकेटर के साथ पार्टी का एक्टिव मेंबर   भी हूँ और एक व्यक्ति  जो क्रिकेटर भी नहीं है संस्था का अध्यक्ष बना बैठा है और मनमानी कर रहा है  और अपने ही पार्टी के सदस्य की उपेक्षा कर रहा है वो भी भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर . ऐसे में लोकसभा चुनाव मोदी लहर के बावजूद जो व्यक्ति चुनाव हार गया .उसे राज्यसभा में भेजकर  भारी भरकम मंत्रालय भी  दे  दिया गया.  जबकि उन्हें उनकी दक्षता के हिसाब से कानून मंत्रालय मिलना चाहिए था .  कीर्ति मोदी के शुरू से ही प्रशंसक और पैरोकार रहे ऐसे में उन्हें उम्मीद थी कि सरकार में उन्हें भी कुछ .... मिलेगा . उल्टा उन्हें  उनके गृह राज्य बिहार चुनाव में  ही किनारे कर दिया गया . ऐसे में आज़ाद का उबलना  स्वाभाविक था सो हुआ . आज़ाद हर तरह से सक्षम हैं इसलिए वे राजनीति से लेकर न्यायालय तक कड़ी टक्कर देंगे . जो भाजपा के लिए बड़े फलक पर नुकसानदायक होगा .
अब जेटली जी की बात करते हैं  जेटली प्रसिद्ध अधिवक्ता  महाराज  किसन जेटली के पुत्र हैं . 1991 में जेटली जी भाजपा के सदस्य बने .1999 में भाजपा के प्रवक्ता बने . और फिर राज्यसभा सांसद .जेटली भी नामचीन अधिवक्ता और चतुर प्रवक्ता हैं ,जेटली ने कई बार अपनी रणनीतिक चतुराई से पार्टी को संकट से बचाया है. पर वे जन नेता नहीं हैं एक भी लोकसभा चुनाव वे नहीं जीत सके . मोदी  जेटली  की तार्किक योग्यता के मुरीद हैं और आज यही चीज कीर्ति के खिलाफ और जेटली के फेवर में है .पर ये मोदी ,पार्टी,और जेटली के लिए भी नुक्सानदेह है. जेटली को ताल ठोक कर स्वेच्छा से पद छोड़ देना चाहिए .यही  पार्टी  व सबके हित में होगा .जाँच में बेदाग आने पर मोदी पुनः पद बहाल  कर सकतें हैं .
 जब मैं  मुम्बई से प्रकाशित  विश्व हिन्दू परिषद के पत्र विश्व हिन्दू सम्पर्क के सम्पादकीय मंडल में था . तब मैंने ही सबसे पहले मोदी के पक्ष  में लिखा था कि क्यों देश को मोदी के नेतृत्व की आवश्यकता है . तब मोदी

 कहीं भी प्रधानमंत्री हो दौड़ में नहीं थे .
आज देश को और देश से बाहर रहने वाले भारत वासियों  को यहाँ तक कि दुनियां को भी मोदी से बहुत उम्मीदें हैं . वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य भाजपा और देश के लिए घातक होगा .  जो कांग्रेस के लिए ''बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा ''   वाला होगा . ऐसा होना बेहद .......

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