यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 15 नवंबर 2015

ये अहिंसा का देश कभी नहीं रहा हाँ उदार अवश्य रहा

मित्रों बिहार चुनाव जब से सम्पन्न हुए हैं भारतीय मीडिया और लेखकों, बुद्धिजीवियों में एक आत्मसंतोष दिखाई दे रहा है वे निढाल से हो गये हैं जैसे उनकी व्यूहर चना सफल रही उसी तरह जैसे अभिमन्यु को घेर मारने के बाद कौरव. सारी असहिष्णुता अचानक जैसे गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गयी. पर वे शायद भूल गये उसके बाद भी कौरवों का विनाश हुआ था . उनके पास अद्वितीय योद्धा थे कौरवों की ओर से दुर्योधन व उसके 99 भाइयों सहित भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, मद्रनरेश शल्य, भूरिश्र्वा, अलम्बुष, कृतवर्मा कलिंगराज श्रुतायुध, शकुनि, भगदत्त, जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज सुदक्षिण और बृहद्वल युद्ध में शामिल थे फिर भी हारे .सारा प्रपंच बस बीजेपी को पराजित करने के लिए था.पर बीजेपी मात्र एक व्यूह हारी है युद्ध नहीं, ये विरोधियोंयों को समझना होगा क्यूंकि उस व्यूह के बाद की लड़ाई की अगली कथा कौरवों के लिए बड़ी दुखदाई थी. पुरस्कार लौटाऊ कार्यक्रम अचानक बंद हो गया. सिद्धारमैया ने मुख्यमंत्री होते हुए जानबूझकर उसकाने के लिए गोमांस खाने की बात कही. क्या ये उचित था .फिर टीपू जयंती का विवादित आयोजन और उसमे '' तीन लोगों की हत्या '' इस पर किसी ने पुरस्कार नहीं लौटाया किसी मीडिया को असहिष्णुता नहीं दिखी उन्हें एक मामूली घटना लगी क्योंकि ऐसे ही जयचंदों के कारण भारत को१- ७११ मुहम्मद बिन कासिम .
२ -१०००, महमूद गजनवी
३- ११८२ मोहम्मद गोरी 17 आक्रमण
4- १२ वी शताब्दी में चंगेज खां
5- १३९९ तैमुर लंग
६ - 15 वीं बाबर
7- नादिर शाह
8- १७५७ अहमद शाह अब्दाली लुटा और बर्बाद किया और फिर अंग्रेजों ने.... हम अति सहिष्णु थे या कहें डरपोक थे कि मुट्ठीभर बाहरी आये और हमे लूटकर चले गये पर अब वैसा नहीं होगा .
हमें सच पढाया नहीं जाता....... ये अहिंसा का देश कभी नहीं रहा हाँ उदार अवश्य रहा पहला विश्व युद्ध हमारे ही देश में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में हुआ था जिसे दुनिया महाभारत के नाम से जानती है भारत वीरों की भूमि रही ...... पर आगे चलकर हमें पीढी दर पीढी जो पढ़ाया गया वहीं हमारा मानसिक चेतना बनकर हमारे खून में मिल गया और परिणाम हुआ हिन्दू सहनशील [डरपोक] हो गये .क्योंकि हमे डरपोक बनाया गया .हम डरपोक थे नहीं .अधूरे और अर्ध्य सत्य, उदाहरणों के जरिये , अपनी सुविधा और विचार धारा के अनुसार हमें पुरानी पीढी ने बरगलाये रखा इसी कारण हिन्दू सदैव आक्रमण का शिकार हुआ कभी आक्रमण किया नहीं . हम हमलावर नहीं रहे सदैव बचाव की मुद्रा में रहे इसका कारण हम और हमारी संस्कृति सदैव रौंदी गयी . अहिंसा के सबसे बड़े झूठे पैरोकार रहे गांधी जी .... वे उनका आचरण और उनकी कार्य शैली में जमी आसमा का अंतर था कुछ उदाहरण देखिये .... वे राम जी को अपना ईष्ट मानते थे आदर्श मानते थे और भगत सिंह आज़ाद को उग्रवादी कहते थे . राम अन्याय के विरुद्ध शस्त्र उठाया था.... अहिंसा एक सीमा तक ही ठीक है ..... भगवान राम ने स्वयं सुन्दर काण्ड के 57 वें दोहे में कहा है....
बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति\
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति \\
भावार्थ:-
इधर तीन दिन बीत गए, किंतु जड़ समुद्र विनय नहीं मानता। तब श्री रामजी क्रोध सहित बोले- बिना भय के प्रीति नहीं होती| उसके बाद जो चोपाई है वो इस प्रकार है ...

लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू॥
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती। सहज कृपन सन सुंदर नीती॥
ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी॥
क्रोधिहि सम कामिहि हरि कथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा॥
अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा। यह मत लछिमन के मन भावा॥
संघानेउ प्रभु बिसिख कराला। उठी उदधि उर अंतर ज्वाला॥
मकर उरग झष गन अकुलाने। जरत जंतु जलनिधि जब जाने॥
कनक थार भरि मनि गन नाना। बिप्र रूप आयउ तजि माना॥

दोहा- काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच।
बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच॥५८॥
   सुन्दर काण्ड  में ही एक जगह हनुमान जी रावण से कहते हैं जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे।  अर्थात जिसने मुझे मारा  मैंने उसे मारा .... गांधी जी ने कभी राम जी के हनुमान जी के कथनों से कुछ क्यों नहीं सीखा ..... कायर सिर्फ .....दैव -दैव आलसी पुकारा .... कीरट लगाते हैं....  जो कायर हैं   छोटे ह्रदय के हैं वे अहिंसा की आड़ लेकर महान बनने का ढोंग करते हैं और एक पुरी पीढी को कायर बना देते हैं ऐसे लोग ही अहिंसा परमों धर्मः ... का अधूरा श्लोक  रटते हैं अधूरा श्लोक गुमराह करता है  जैसे अधूरा ज्ञान  महाभारत के शांति पर्व में लिखा है  ....अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: l"
 अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है, और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है.. पर आज तक अधूरा श्लोक ही पढ़ाया जरा रहा है  क्यों ..क्या ये शोष का विषय नहीं है . हाँ हम शरण में आये की रक्षा जरुर करते थे  इसी लिए ----------------
, सदियों पुरानी भारतीय सभ्यता आज भी इसलिए जीवित है कि सहिष्णुता इसका स्वभाव ही नहीं, सांस भी है. हिंदू संस्कृति की छांव में बौद्ध, जैन, सिख के साथ-साथ अरब से आए इस्लाम जैसे धर्म ने भी अपने को खूब पोषित किया. यह अलग बात है कि इस सहिष्णुता की सांस की कीमत भी 1947 में भारत ने चुकाई है.
इस बात को याद रखने की जरूरत है कि भारत अगर सेक्युलर है, तो वह इसलिए नहीं है कि इंदिरा गांधी ने 1976 में सेक्युलर शब्द को संविधान का हिस्सा बनाया था. भारत इसलिए है कि हिंदू मूलत: और अंतत: सेक्युलर हैं. संसार के प्रमुख धर्मो में सिर्फ  हिंदू धर्म का कोई पैगंबर नहीं है यानी मोहम्मद, ईसा मसीह, बौद्ध, महावीर या गुरुनानक की तरह हिंदू धर्म का कोई संस्थापक नहीं है. हिंदू या सनातन धर्म संसार का सबसे प्राचीन धार्मिंक विचार है. उसके बाद यहुदी, जैन, बौद्ध वगैरह का स्थान आता है. इस्लाम और सिख तो नए धर्म माने जा सकते हैं. भारत के मालाबार समुद्र तट पर 542 ईसा पूर्व यहूदी पहुंचे. वे तब से यहां अमन-चैन से गुजर-बसर कर रहे हैं. ईसाइयों का भारत में आगमन चालू हुआ 52 ईस्वी में. वे भी सबसे पहले केरल में आए. अब बात पारसियों की. वे कट्टरपंथी मुसलमानों से जान बचाकर ईरान से साल 720 में गुजरात के नवासरी समुद्र तट पर पहुंचे. अब वे देश के अहम समुदायों में शुमार होते हैं.
इस्लाम भी केरल के रास्ते भारत आया. लेकिन, भारत में इस्लाम के मानने वाले बाद के दौर में यहूदियों या पारसियों की तरह से शरण लेने के इरादे से नहीं आए थे. उनका लक्ष्य भारत पर राज करना था. वे आक्रमणकारी थे. भारत में सबसे अंत में विदेशी हमलावर अंग्रेज थे. उन्होंने 1757 में पलासी के युद्ध में विजय पाई. लेकिन गोरे पहले के आक्रमणकारियों की तुलना में ज्यादा समझदार थे. समझ गए थे कि भारत में धर्मातरण करवाने से ब्रिटिश हुकूमत का विस्तार संभव नहीं. भारत से कच्चा माल ले जाकर वे अपने देश में औद्योगिक क्रांति की नींव रख सकेंगे. इसलिए ब्रिटेन, जो एक प्रोटेस्टेंट देश है, ने भारत में अपने 190 सालों के शासनकाल में धर्मातरण शायद ही कभी किया हो. इसलिए ही भारत में प्रोटेस्टेंट ईसाई बहुत कम हैं.
ज्यादातर ईसाई कैथोलिक हैं. इनका धर्मातरण करवाया आयरिश, पुर्तगाली और स्पेनिश ईसाई मिशनरियों ने. इन्होंने गोवा, पुडुचेरी और देश के अन्य भागों में अपना लक्ष्य साधा. दलित हिंदुओं का भी धर्मातरण करवाया. इसके बावजूद देश में कैथोलिक ईसाई कुल आबादी का डेढ़ फीसद हैं. प्रोटेस्टेंट तो और भी कम. भारत में अगर बात मुगलों की करें तो उन्होंने तीन तरह से धर्मातरण करवाया. पहला, वंचितों को धन इत्यादि का लालच देकर. दूसरा, मुगल कोर्ट में अहम पद देने का वादा करके; और तीसरा, इस्लाम स्वीकार करने के बाद जजिया टैक्स से मुक्ति. इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की रोशनी में देखने की जरूरत है कि यहां मुसलमानों और ईसाइयों के साथ कितना भेदभाव हो रहा है.
 कई हिन्दुओं   हिन्दुओं की दाल रोटी  पहचान और राजनीति हिन्दू  विरोध पर ही टिकी है  उन्हें और मीडिया को आजम खान के आज के बयान में दोमुंहापन  नजर नही आता  पेरिस हमले पर आजम खान ने कहा  ये क्रिया की प्रतिक्रिया है तो फिर इस तरह तो गोधरा के प्रतिक्रिया गुजरात दंगे थे   ये मान लेना चाहिए ....पर न मीडिया मानेगी न ये ...... असली भारत के गद्दार और बांटने वाले यही हैं ...इसीलिये ये मोदी को बर्दाश्त नहीं कर  पा रहे हैं  और मीडिया और छद्म लेखकों, बुद्धिजीवियों  को शिखंडी की तरह आगे करके लड़ रहे हैं ....पर इस बार ये हथकंडा  कामयाब होने नहीं देना हैं ..... हम अपने देश के मुसलमानों का भी उतना ही सम्मान करते हैं जितना हिन्दू का पर मामला समानता का हो भेदभाव वाली आखों को बर्दाश्त नहीं करना है उन्हें सदैव के लिए फोड़ना देश हित में जरुरी है  जय हिन्द 
पवन  तिवारी 


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