यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 8 नवंबर 2015

भाजपा की हार के कारण और उसके मायने

 भाजपा की हार के कारण  और उसके मायने
 आज 8 नवम्बर 2015 भाजपा के लिए  चिर स्मरणीय है.क्योंकि  भाजपा इस हार से  सदियों तक  सीख सकती  है.उसे भविष्य में यदि अजेय होना है या अधिकाधिक अपने [ जीत ] विचारों का प्रसार करना है तो . बीजेपी के हारने के अनेक कारण हैं जैसे महागठबंधन जीतने के अनेक  कारण हैं.सबसे पहले महागठबंधन को जीत की बधाई.
बड़े कारणों में गलत समय पर बयान, गलत समय पर बयानों पर प्रतिक्रिया और  कुछ  प्रभावशाली  नेताओं  की अनदेखी,या यूँ कहें की बीजेपी के थिंक टैंक में अहंकार का भाव इतना प्रबल हो गया था कि उन्हें मोदी के जी के सामने कोई अन्य कारक प्रभावी लग ही नहीं रहा था .सो काफी हद तक अपने अनुकूल लोगो को टिकट दिया गया जिसकी जितनी बड़ी पकड़ थी उसे टिकट उतनी जल्दी मिला.जिनकी जनता में पकड़ थी उन्हें टिकट  नहीं मिला .
बिहार चुनाव आधा बाहरी मुद्दे पर लड़ा गया आधा स्थानीय मुद्दे प ,स्थानीय मुद्दे पर महागठबंधन जीता और बाहरी मुद्दे ने भाजपा को हराया,बीजेपी के हार के मूल कारणों में एक कारण ये भी है कि जिन मुद्दों पर उसे त्वरित प्रतिक्रिया देनी चाहिए थी उस पर उसने देर कर दी और जिन मुद्दों पर नहीं देनी चाहिए थी उस पर जल्दी और  विपरीत परिस्थियों में बिना समझे- बूझे प्रतिक्रिया दे दी.आरक्षण ने बड़ी भूमिका अदा की.भागवत जी के प्राथमिक बयान ने एक वर्ग को मोदी के विरोध में लाम बंद कर दिया.दूसरा आरक्षण के पक्ष में मोदी जी का देरी से आया बयान आरक्षण वालो कोअपने पक्ष में ला नहीं पाया उल्टा आरक्षण विरोधी  वर्ग काभी एक हिस्सा मोदी से रूठ गया.मैंने सोशल मीडिया पर इस पर तीखी प्रतिक्रिया उन लोगों की देखी जो रोज मोदी- मोदी के नारे लगाते थे.
 बीजेपी पर सुनियोजित तरीके से वैश्विक रूप से हमला बिहार चुनाव को देखते हुए किया गया.  जिसे बीजेपी  को समझने  में देर लगी और वो बिहार चुनाव के कारण दबाव में आ गयी और बीजेपी  के देशी- विदेशी विरोधी  इसी मौके की ताक में थे .बीजेपी चुनाव सम्पन्न होने तक  वेट एंड वाच की मुद्रा  में आ गयी . बस यहीं बीजेपी की हार निश्चित हो गयी.विरोधी अपने अभियान में सफल रहे .पुरस्कार वापसी उसी योजना का एक हिस्सा भर थी .यदि बीजेपी बिहार चुनाव जीत जाती आधे विरोधी अपने आप पस्त हो जाते और मोदी जी का वैश्विक कद काफी बढ़ जाता एक नये भारत का पुनर्निर्माण होता  जिसे आज ब्रेक लग गया . ये दुखद है इस देश के लिए . इसका प्रभाव बीजेपी को अब संसद में भी दिखेगा .उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव पर भी दिखेगा . बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति में मात्र 20 प्रतिशत का अंतर है  इसलिए कुछ ऐसा ही खेल यूपी में भी होगा . विकास  का मुद्दा गौण रहा ,जातीय और अन्य मुद्दे हावी रहे . इस चुनाव ने ये भी एक मिसाल पेश की है दूसरे प्रदेशों के लोगो के लिए कि बिहार की मानसिकता में ज्यादा बदलाव नहीं आया है उन्हें विकास से ज्यादा मतलब नहीं है  उन्हें जाति प्यारी है बिहार के नौजवानों को शायद अभी कुछ और सालों तक दूसरे राज्यों की चौखट  पर मत्था टेकना  होगा. वे जीते जिन्हें  कोर्ट से दोष  साबित होकर सजा हो गयी . जिन्होंने जिस जनता का पैसा लूटा उसी जनता ने उसे सर पर बिठाया इसे क्या कहेंगे.इससे साबित होता है  कि आज भी बिहार  सोंच के स्तर पर कहाँ है . खैर बीजेपी को सावधान रहना होगा .
  

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