यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 28 अक्टूबर 2024

अपने सिद्धांत, ठसक सर पे लिए चलते हैं,



अपने सिद्धांत, ठसक

सर पे लिए चलते हैं,

और इस ज़िन्दगी में

रोज थोड़ा मरते हैं.

 

रोज़ हँसते हैं मुस्करा के

गले मिलते हैं,

और अंदर के घाव

रोज थोड़ा सिलते हैं.

 

आज दीवाली पे

मेरे घर में अंधेरा है भले,

मेरे अंदर कई चराग

कब से जलते हैं.

 

एक तन्हाई ये जो

रोज़ डाँटती है मुझे,

कितने लेखक इसी पे

मरते, मरते, मरते हैं.

 

यूँ ही घंटों से अकेले में

जो हूँ सोच रहा,

लोग सरेआम उसपे

रोज बात करते हैं.

 

मैंने अब तक जो जिया

वो क़िताब उम्दा है,

इसीलिये इ
से पढ़ने से

लोग डरते हैं.

 

मरोगे जब तुम्हारी

ज़िन्दगी बिकेगी बहुत,

पवन कोई जीवनी

कोई आत्मकथा कहते हैं.

 

पवन तिवारी

२८/१०/२०२४

(गोवत्स द्वादशी)    

 

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