यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 20 जनवरी 2020

ये जानूँ मैं पहले से उलझते नहीं हो तुम


ये जानूँ मैं  पहले  से उलझते  नहीं हो तुम
उसपे भी ये अच्छा कि बिफरते नहीं हो तुम

बिन माँगे  मशविरा  दें हर  बात पर टोकें
उस पर भी ये कहें कि समझते नहीं हो तुम

सब कहते कैसे झेलता हूँ इतनी  खामियाँ
है प्यार इसलिए ही  अखरते नहीं हो तुम  

है सामने उपवन  मगर  चुपचाप खड़े हो
कैसे हो आदमी  कि बहकते नहीं हो तुम

इतनी  मुसीबतों  को जो तुम फूँक दिये हो
है प्यार की ताकत जो बिखरते नहीं हो तुम

तुमसे  कोई  टकराता नहीं  यूँ ही बेवजह
ये  जानते हैं  लोग बिसरते  नहीं हो  तुम

आती  हुई  ख़ुशबू  से  अनजान  बने  हो
है कैसा दिल पवन कि मचलते नहीं हो तुम



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८  

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