फिर भी कहते ठीक है 
दर्द में झूठ खिलाते हैं सब 
पीड़ादायी रीत है 
घर में आंसू झर झर झरते 
हाल जो पूछो ठीक हैं
कितने हैं मजबूर यहां जन 
पीठ पे लादे भीत हैं
  
पीड़ा का उपहास उड़े ना 
सो कहते सब ठीक है 
किसको किसको बतलाएंगे 
सो कहते सब ठीक है 
पीड़ा को विस्तार सभी दें  
आज की ऐसी रीत है 
औषधि हल की बात नहीं है 
संबंधों में शीत है 
दर्द सुने ना कोई सो अब 
दर्द ही बन गये गीत हैं  
गीतों को बहुधा सुनते अब 
औषधि भी हैं मीत हैं
पवन तिवारी 
२९/०३/२०२१ 
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