यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

कितने जन्मों से

कितने जन्मों से थे प्यार हारे हुए

प्यार तुमसे हुआ तो तुम्हारे हुए

अब जो खिलने लगे ख़ुशबू आने लगी

लग रहा है कि अब हम हमारे हुए

 

पहले तुम थे धरा हम भी तारे हुए

एक ही सरिता के दो किनारे हुए

कितनी ऋतुओं बरस तक यही सत्य था

अब लगा जैसे मोहन सहारे हुए

 

तुम भी मारे हुए हम भी मरे हुए

तुम भी गारे हुए हम भी गारे हुए

भाग्य भी होता है अब भरोसा हुआ

दोनों इक छतरी में जल को धारे हुए

 

एक दूजे पे हम वारे - न्यारे हुए

खुरदुरे थे जी अब प्यारे – प्यारे हुए

अब तो दीवानगी शब्द छोटा लगे

दोनों ही दोनों को हैं दुलारे लगे

 

अपने संवाद अब प्रेम नारे हुए

प्रेमियों के लिए हम सितारे हुए

जन्मों की साधना सिद्ध सी हो गयी

हम पवन से हुए सबके सारे हुए

 

 

पवन तिवारी

२९/०३/२०२१  

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