यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 12 अक्टूबर 2019

उसे बुलाओ


उसे बुलाओ  पुनः सुनाओ
कहता कौन कि डर जायेंगे

रोम – रोम  ने पीड़ा भोगी
फिर भी बना नहीं ये योगी
राष्ट्र के आगे पीड़ा क्या है
हम  हैं देश  प्रेम के रोगी
हम तो भय से परे जा चुके
बहुत  हुआ तो मर  जायेंगे

हर  युग  में गद्दार हुए हैं
पीछे  से  भी  वार हुए हैं
फिर भी वीर हटे ना पीछे
लड़ते – लड़ते  पार हुए हैं
जिद की अपनी महिमा है
करते – करते कर जायेंगे

आपस  में  लड़ना छोड़ेंगे
घुट- घुट के मरना छोड़ेंगे
छोटा – बड़ा  व तेरा मेरा
कब  ये सब  करना छोड़ेंगे
रहे एक जो मिल करके हम
फ़तह  आसमां  कर जायेंगे

राष्ट्र रहा तो ही  हम  होंगे
कहीं  रहो   थोड़े  गम होंगे
निज पर यदि विश्वास रहा तो
कहीं भी  रहे  हम हम होंगे
बात उठी भारत हित की तो
उसके लिए  प्रति घर जायेंगे

गीत  देश  के हम गायेंगे
कुर्बानी  को  भी  आयेंगे
दुश्मन  की छाती पे नहीं
मस्तक पे तिरंगा फहरायेंगे
भारत  पर मरने वाले तो
बिन  गंगा के तर जायेंगे



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत   

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