गुरुवार, 31 जनवरी 2019

देख कर उसको मैं गीत लिखने लगा


देख कर उसको मैं गीत लिखने लगा
प्यार के  नाम पर गीत बिकने लगा
वह भी सुनती रही दिल लगाकर मुझे
उसकी खातिर मैं मंचों पे दिखने लगा

मेरे  हर छन्द  पर वह बिखरने लगी
मेरी  कविता में ढल के निखरने लगी
उसको यह सब पता ही न थी बावरी
मेरी हर रचनाएँ उस पर सँवरने लगी

मुझको सुनने की खातिर वो आती रही
रात  भर  जाग  कर  गुनगुनाती रही
मित्र जब  भी मिलें  उनसे वो पूछती
मिल भी जाती तो बस  शरमाती रही

उसको बस देखकर ही मैं कवि हो गया
उसकी नजरों में मैं दिल का रवि हो गया
वह  मेरी  चाँदनी  उससे   कैसे  कहूँ
मैं रहा मैं  नहीं  उसका छवि हो गया


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com


बुधवार, 30 जनवरी 2019

सरसों फुलाई गइनी- अवधी गीत


सरसों फुलाई गइनी मटर गदराई गइनी
हरे – हरे पतवा से खेतिया तोपाई गइनी
अलुआ खनाये लागल उखुड़ी पेराए लागल
सनई के देंहिया में घुँघरू टंगाये लागल


क्यारी- क्यारी खेत बारी चारो ओर हरियाली
एक हमही सूखल जात बाटी मोर सजनवा


मकर संकरान्ति कै बीति गै नहनवाँ
दाना भेली खिचड़ी कै बीतल मौसमवाँ
चनवो में नील फूल तीसी चोनराइल
बथुवा भी खेतवा में गईल उधिराइल


काव - काव कही हम अउर का बताई
धनिया के पतिया खोंटाले मोर सजनवाँ


तोंहके अगोरि गयल साग रिसीयाई
सकपहिता रिसी में गयल बसियाई
तोंहके अगोरि के रजइयो  बुढ़ाइल
दुअरे कै गेंदा फूल गयल मुरझाइल


जाड़ा जवानी कै चानी मौसमवां
झख मारि बीतल जात बाटै मोर सजनवां


घमवा चहकि उठे अमवा बउरि उठे
महकत फुलवन पे भंवरा बहकि उठे
होली नियराई गइल सियरो रंगाई गइल
बुढ़वन के चेहरन पे होली उधिराई गइल


फाग कै रगिया त कनवा सुनाई गइल
तू कहिया गइबा मोरे संग मोर सजनवाँ


जेठ - जेठनियों कै मन बउराइल
छोटे-छोटे लड़िकन कै मन उधिराइल
देवरू त लागत हउवें पूरा पगलाइल
ससुरो कै मन लागत हउवै ललचाइल


अइसे में हमसे रहाइस न होला
आवा अपने रंग में रंगावा मोर सजनवाँ
बाटी गोहरावत चलि आवा मोर सजनवाँ

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८



मंगलवार, 29 जनवरी 2019

तुम बुलाओगी


तुम  बुलाओगी  तो मैं चला आऊँगा
जाना  तो  चाहता लौट पर आऊँगा
तुम जरा प्रेम का एक सहारा तो दो  
अपने घर में ही समृद्धि मैं उपजाऊंगा

यह  गृहस्थी  तुम्हारे बिना कुछ नहीं
तुम ही लक्ष्मी तुम्हारे बिना कुछ नहीं
प्रेम की शक्ति जिसको भी मिलती रहे
लाखों दुख उसके खातिर भी हैं कुछ नहीं

एक  दूजे  के  दुख ग़र हमारे रहे
सारे दुख बनके सुख तब हमारे रहे
फिर तो दुनिया में किस की ना परवाह रहे
हम  तुम्हारे  रहे  तुम  हमारे रहे

आओ इक दूजे के आंसू पी लें प्रिये
सात  जन्मों से जैसे हो साथ जिये
साथ  छूटे  नहीं  मौत के बाद भी
हो सफर अपना हाथों में हाथ लिये

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

जो जैसा है उसका


जो जैसा है उसका किरदार बोलता है
पहली नजर में ही घर द्वार बोलता है

झूठे  को   कई   बार  है  सोचना  पड़े
सच ही है बेधड़क हर बार बोलता है

निर्धन को कभी धन देता नहीं सम्मान
गरीब  ही  हर  बार  सरकार  बोलता  है

गद्दार  भी  हो  सकते  हैं  मीठी  जुबान  में
कड़वी जुंबा सुबह फकत वफादार बोलता है

संकट के समय आकर जो हो सामने खड़ा
उसमें  ही  बसा  समझो  सरदार  बोलता है

जब कभी भी प्यार का होता है इम्तिहान
ऐसे  में  सदा   उसका  एतबार  बोलता  है

लब  पर  बंदिशें  जब   हजार  हों  पवन
ऐसे में बात आँख का इजहार बोलता है


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

दुश्मनी की जो लगी आग


दुश्मनी  की जो लगी आग  बुझायी जाए
प्यार की आग चलो दिल में  जलाई जाए

यूँ तो  लाखों हैं  आपस  में  लड़ाने वाले
मित्र हैं तो सुलह  की  बात  सुझायी जाए

बहुत  रुठा  है  उसे  शब्द  से बहलाएंगे
प्यार की उसको ग़ज़ल आज सुनायी जाए

हवा में आज-कल नफरत की गंध तैर रही
फिज़ा  में आज  चलो खुशबू फैलायी जाए

बातों - बातों में  हर बात  सुलझ जाती है
होठों  पर प्रेम  की कुछ बूँद सजायी जाए

हवा भी चुप गीत भी चुप सभी गमगीन हुए
ऐसे  में  “पवन”  को  आवाज लगायी जाए


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

सोमवार, 28 जनवरी 2019

देने को दे ही देता है


देने  को  दे  ही  देता है वादे हजार वो
हो वादा जब निभाना तो कहते बहार वो

वादों पे ही ये जिंदगी कटती चली गयी
कहते रहे निभाऊंगा  मैं बार - बार वो

रिश्तो में खास बात जो मालूम सभी को है
मौके  पर  ना  आए कभी बने वफादार वो

अब  दोस्तों  की  झूठी पैरवी करूँ क्या मैं
संकट में जब भी खोजता मिलते बाजार वो

जितने अमीर दोस्त थे बहाने में खप गए
बस  गरीब  संग  रहा  सच्चा  यार  वो

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

बुरा नहीं होता है


बुरा नहीं होता  है पुष्प  सूँघ  लेना
होता बहुत बुरा सूँघ करके तोड़ लेना

इतना बुरा भी नहीं गलती का होना
उससे होता बेहतर गलती को मान लेना

अच्छा नहीं होता  जवाब सदा देना
भला कर भी देता है चुप मार लेना

बड़ा बनने  का इक सलीका है ये भी
छोटो को भी अपने से बड़ा मान लेना

खुद दिया कर्ज़ तो गया मान लेना
सौ बार सोच  कर खुद उधार लेना

करो गर भलाई अधिक सोचना नहीं
लेना ग़र एहसान सौ बार सोच लेना

पवन तिवारी
सम्पर्क- ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

मंगलवार, 22 जनवरी 2019

ये क्या कम कि


ये क्या कम कि नाम हुआ है
कहे कि वह बदनाम हुआ है

मात पिता सेवा में जुटा जो
सचमुच चारो धाम हुआ है

मतलब वाले यार जो छूटे
समझो अच्छा काम हुआ है

अच्छा काम किये चुपचाप जो
यश उसका गुमनाम हुआ है

जिसका संग्रह बेईमानी से
उसका चैन हराम हुआ है

मर्यादा के लिए लुटा जो
आगे चलकर राम हुआ है

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

प्यार मुझे तुमसे


प्यार मुझे  तुमसे चलो मान लिया
मैंने ही झूठ कहा  चलो मान लिया

तुम्हारे  प्यार  में  बदनाम  हुआ
बहुत तुमने  सहा चलो मान लिया

कहो  तुम  जो  भी बहुत अच्छा है
मैं  ही  बुद्धू  रहा चलो मान लिया

प्रेम में शेर भी सियार हुए जाते हैं
मैं ही हूँ गदहा चलो  मान  लिया

वो    देती    थी   बद्दुआ   ताने
कि  रोई  बारहा  चलो मान  लिया

जिसको पड़ती है वही जाने  पवन
तुम्हें ये कहकहा चलो  मान लिया

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com  

बुधवार, 16 जनवरी 2019

बहस होती है


बहस  होती  है बहुधा  बेकारों में
वैसे  हो  जाती  बातें  इशारों में

जीने की खातिर संस्कृति जरूरी है
झूठे  भी  होते  खुश  त्योहारों में

वक्त है गर बुरा  खुशी रो देती है
सूखते   पेड़   देखे   बहारों   में

बात नीयत की है कुछ भी हो सकता है
डोली  को   लुटते   देखा  कहारों

है जो साहस तो कुछ भी असंभव नहीं
पेड़   को   उगते   देखा  दीवारों  में

सौदे  में  कोई रिश्ता न चलता  पवन
अपनों  के  हाथ  बिकते  बाजारों  में


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

सोमवार, 14 जनवरी 2019

अभिलाषा है तेरे अधरों से बोलूँ


अभिलाषा  है  तेरे  अधरों  से  बोलूँ
संभव है मैं कविता के संग संग डोलूँ
इसीलिए मैं भटक रहा भाषा के संग
कविता से तेरे अधरों पर मिसरी घोलूँ

तेरा  वर्णन  कैसे  करूँ  मैं
अनुपम से कम कैसे कहूँ मैं
इसीलिए  शारदा  शरण  में
शब्द शक्ति बिन कैसे बहूँ मैं

ज्योत्स्ना  सी  आभा तेरी
रति  के  जैसी माया तेरी
जब से देखा मुदित-मुदित हूँ
प्रणय भाव सी आशा मेरी

किया  साधना शब्द मिले हैं
कविता के कुछ रत्न मिले हैं
रोम - रोम पर शब्द हैं उभरे
तुझ पर अनगिन छंद मिले हैं

सोच  रहा हूँ कविता में तुझे ढालूँ मैं
सारे  अलंकार, उपमाएँ  बुला  लूँ मैं
आमंत्रित  कर  लूँ  सारे  श्रृंगारों को
छंद, सवैया, मुक्तक सब लिख डालूँ मैं


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com