सोमवार, 14 जनवरी 2019

अभिलाषा है तेरे अधरों से बोलूँ


अभिलाषा  है  तेरे  अधरों  से  बोलूँ
संभव है मैं कविता के संग संग डोलूँ
इसीलिए मैं भटक रहा भाषा के संग
कविता से तेरे अधरों पर मिसरी घोलूँ

तेरा  वर्णन  कैसे  करूँ  मैं
अनुपम से कम कैसे कहूँ मैं
इसीलिए  शारदा  शरण  में
शब्द शक्ति बिन कैसे बहूँ मैं

ज्योत्स्ना  सी  आभा तेरी
रति  के  जैसी माया तेरी
जब से देखा मुदित-मुदित हूँ
प्रणय भाव सी आशा मेरी

किया  साधना शब्द मिले हैं
कविता के कुछ रत्न मिले हैं
रोम - रोम पर शब्द हैं उभरे
तुझ पर अनगिन छंद मिले हैं

सोच  रहा हूँ कविता में तुझे ढालूँ मैं
सारे  अलंकार, उपमाएँ  बुला  लूँ मैं
आमंत्रित  कर  लूँ  सारे  श्रृंगारों को
छंद, सवैया, मुक्तक सब लिख डालूँ मैं


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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