बुधवार, 16 जनवरी 2019

बहस होती है


बहस  होती  है बहुधा  बेकारों में
वैसे  हो  जाती  बातें  इशारों में

जीने की खातिर संस्कृति जरूरी है
झूठे  भी  होते  खुश  त्योहारों में

वक्त है गर बुरा  खुशी रो देती है
सूखते   पेड़   देखे   बहारों   में

बात नीयत की है कुछ भी हो सकता है
डोली  को   लुटते   देखा  कहारों

है जो साहस तो कुछ भी असंभव नहीं
पेड़   को   उगते   देखा  दीवारों  में

सौदे  में  कोई रिश्ता न चलता  पवन
अपनों  के  हाथ  बिकते  बाजारों  में


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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