यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

बस इतनी है ख्वाहिश तेरे,दामन में निकले दम































तुम जो चलो साथ,सुहाना सफर ये हो 
चलते रहें कदम-ब–कदम, कम सफ़र न हो 

तुम जो मिले तो मेरे,दिल में कमल खिले
चलते रहे यूँ प्यार के , अपने सिलसिले

मैनें जो आरज़ू , की थी खुदा से
मेरी वो आरज़ू सनम,तुम हो कसम से

संग-संग तुम्हारे चलना, किसी तीर्थ से न कम
मंजिल कभी न आये खुदा,चलते रहें हम

मर भी जाएँ हम अगर,होगा न कोई गम
बस इतनी है ख्वाहिश तेरे,दामन में निकले दम

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