यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 22 मई 2023

सुनों, आज इस तरह



सुनों, आज इस तरह की

पहली और अंतिम बात

कहना चाहता हूँ.

अगर तुम अपने इस

व्यवहार में हमेशा के लिए

निरंतरता न रख सको तो

अभी सब कम कर दो,

ये जो तुम रोज फोन करती हो

ये जो तुम अक्सर मिलने आती हो

ये जो हमेशा मेरे पास बैठती हो

ये जो घंटो बतियाती हो

अचानक किसी दिन तुम

फोन करना कम कर दोगी

मिलना कम कर दोगी

मुझसे दूर बैठोगी और 

दो मिनट की बात करके कहोगी-

जरुरी काम है! और चली जाओगी !

पता है तब मुझे तब बहुत बुरा लगेगा

तुम्हें शायद नहीं पता बुरा लगना

कितना बुरा होता है.?

शायद मर जाना उतना बुरा नहीं होता

शायद इसलिए क्योंकि पिछली बार

मैं मरने से बच गया था.

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

      

 

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