यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 24 अक्टूबर 2022

उदासियों ने घेर रक्खा है

उदासियों    ने    घेर   रक्खा   है

हमने भी खूब दुःख को चक्खा है

कोई  दिखता  नहीं है दूर तलक

दर्द अपने  भी  सर पे अक्खा है

 

रात  कुछ  नींद  काट  देती है

दिन की  सौगात  जान लेती है

शाम  सुई  सी  चुभोती  जैसे

ज़िन्दगी  बारिशों  की खेती है

 

आज-कल रोज खुद से घिरता हूँ

खुद  से ही मारा-मारा फिरता हूँ

इतना उलझा हूँ खुद में क्या ही कहूँ

धीरे चलता हूँ फिर भी गिरता हूँ

 

यही समय  है  संभलना इससे

सब पराये  हैं  तो कहें किससे

धीर रखना है वक़्त फिरने तक

सुनेंगे  सब  ही  कहेंगे जिससे

 

पवन तिवारी

०८/१०/२०२२    

1 टिप्पणी:

  1. अपनी व्यथा खुद से कहती हुई मार्मिक अभिव्यक्ति प्रिय पवन जी।👌👌👌

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