यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 6 जुलाई 2022

माना तालाब ज़रा बूढ़े हुए

माना   तालाब  ज़रा  बूढ़े  हुए

जल के  बूढ़ों  को ज़रा जीने दो

माना तुम पीते नहीं जल इनका

विहग, मवेशियों  को  पीने  दो

 

धरा  की  गोद   ठंडी  रखते हैं

खेतों  को   नेह   इन्हें  देने  दो

ये  तो   सच्चे  हमारे  पुरखे  हैं

इन्हें भी  साँस खुल के लेने दो

 

ये तो  पानी  से  प्रेम करते है

पानी का पानी ज़रा रहने दो

ज़िंदगी पानी बिना है ही नहीं

है  जहाँ  पानी  उसे बहने दो  

 

ताल, सरिता,  कुएँ, धरोहर  हैं

इनकी  रक्षा से पुण्य मिलता है

जल को हम स्वच्छ सुरक्षित रखें

इनसे हम क्या जगत ही खिलता है

 

पवन तिवारी

२०/०१/२०२२

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें