यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 27 जुलाई 2022

बुरे दिनों में

बुरे  दिनों  में  साथी  भी  झुठलाते हैं

ऐरे   गैरे  भी   जमकर   समझाते  हैं

जो भी दृष्टि  पड़े  है  बस शक से देखे

दया दिखाते बच बच कर बतियाते हैं

 

तिरछी नज़र देखकर  नज़र झुकाते हैं

दूर  से  ही  रस्ता  बदलें  कट जाते हैं

अकस्मात पड़ गयी नज़र आवाज़ जो दी

जल्दी  में  हैं  इक दिन  मिलने आते हैं

 

ऐसे   अनुभव   हर  हप्ते  ही  पाते  हैं

घर के  लोगों  से  भी  ताने  खाते  हैं

मरने  से  भी मुश्किल होता है जीना

खुद  को  ही  अंदर  अंदर गरियाते हैं

 

दिन नहीं कटते राते ठहर ही जाती हैं

बुरी – बुरी  बातें  ही मन में आती हैं

कभी कभी तो सर चकराने लगता है

आँखें सोने तक का सुख नहीं पाती हैं

 

अच्छे दिन आते ही फोन  बिजी होता

अपना  बैग  ख़ुशी  और  ही  है ढोता

कुकुरमुत्ते   से   पैदा   होते   सम्बंधी

जो भी सोचो उससे भी अच्छा होता

 

पवन तिवारी

२९/०४/२०२२  

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