यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 27 जुलाई 2022

जब से देखा है छाये हुए हिय पे हो

जब से देखा है  छाये  हुए हिय पे हो

क्या कहें ज्यादा बस हम तुम्हारे हुए

जैसे  अंतस  है  संकोच  से  कह रहा

हम तो जन्मों से हैं  तुम पे हारे हुए

क्या कहें ज्यादा बस हम तुम्हारे हुए

 

पहली  दृष्टि  में   प्रेम  ऐसा  गज़ब

हर तरफ मुझमें तुम ही सितारे हुए

रह गये हम  कुँआरे ये  अच्छा रहा

हर्ष  के  कितने  अरमान  नारे हुए

क्या कहें ज्यादा बस हम तुम्हारे हुए

 

तुमसे मिलने की अभिलाषा लेके फिरें

एक   इस   फेर  में   प्रेम   मारे  हुए

तुमसे मिलने की ख़ातिर भटकते रहे

धूप  की   मार  से  कारे – कारे  हुए

क्या कहें ज्यादा बस हम तुम्हारे हुए

 

है तड़प पर गज़ब  इसमें भी है मज़ा

रूप  तुम्हरा  ही  मन  में हैं धारे हुए

प्रेम का स्वाद आला है  आया समझ

निज  की  दृष्टि  में ही चाँद तारे हुए

क्या कहें ज्यादा बस हम तुम्हारे हुए

 

पवन तिवारी

२८/०४/२०२२

 

 

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