यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 23 अक्तूबर 2021

देसी परिधान

वो जो मुझे धोती कुर्ता में देखकर

बनाते हैं मुँह,

जताते हैं आँखों से आपत्ति

किसी चिड़िया घर की

समझ बैठे हैं वस्तु

आदिमानव तक समझने के भाव

उभर आते हैं

उनके चहरे पर

जो कोट,टी शर्ट, बूशर्ट या

घुटने से कम तक की

पहनते हैं जाँघिया

बाँधते हैं चोटियाँ

शौक में पहनते हैं

कटे-फटे वस्त्र

उन्हें क्या पता जब भी मैं

कुर्ता-धोती पहनकर

किसी सम्मेलन या

समारोह में जाता हूँ

भरा रहता हूँ

आत्मविश्वास से !क्योंकि

मुझे लगता है

इस धोती कुर्ते में

केवल मैं नहीं हूँ

बल्कि, इसमें है

मेरे बाबू जी का स्वाभिमान !

उनका आशीष और

वे चल रहे हैं मेरे साथ

यह धोती – कुर्ता मात्र वस्त्र

या आवरण नहीं है

यह प्रतीक है मेरे बाबू जी का !

यह है उनके होने का आभास

इसलिए मुझे इसे धारण करने में

केवल और केवल

होता है गर्व !

 

पवन तिवारी

०४/१०/२०२० 

संवाद – ७७१८०८०९७८

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें