यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 8 जून 2019

जो भी बचे है तव और मम्


जो भी बचे है तव और मम्
जीवन  में  वही  रहते सम

मैं  हूँ  अकेला   तन्हा  तुम
तुम मैं मिलकर हो जायें हम

खुशियाँ  तो  दल - बदलू हैं
सच्चे  दोस्त  हैं केवल ग़म

वर्षों  बाद   मिला  दुश्मन
देखा  तो  हुई  आँखें  नम

आदमी  सचमुच है यदि वो
समझेगा न किसी  को कम

बातें   बड़ी   नहीं  करता
होता  जिसमें   औरा  दम

छोटा   होता   जितना  जो
होता   उसमें   उतना  ख़म




पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें