शनिवार, 8 जून 2019

जो भी बचे है तव और मम्


जो भी बचे है तव और मम्
जीवन  में  वही  रहते सम

मैं  हूँ  अकेला   तन्हा  तुम
तुम मैं मिलकर हो जायें हम

खुशियाँ  तो  दल - बदलू हैं
सच्चे  दोस्त  हैं केवल ग़म

वर्षों  बाद   मिला  दुश्मन
देखा  तो  हुई  आँखें  नम

आदमी  सचमुच है यदि वो
समझेगा न किसी  को कम

बातें   बड़ी   नहीं  करता
होता  जिसमें   औरा  दम

छोटा   होता   जितना  जो
होता   उसमें   उतना  ख़म




पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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