यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 27 अक्टूबर 2016

तुम भी,ये भी,वो भी,वो भी और वो भी खुदा के बन्दे .



उसने ढूंढा सलीका झूठ कहने का बड़े करीने से.
ये अलग बात है कि गला सूखा,चेहरा भर आया पसीने से.


हम भी जानते हैं जमानें की रवायत
ये सच है, ये सच है, ये सच है, कहने से, सच नहीं बदलता


जब हम कुछ करते हैं तब हंगामा होता है.
अजीब बात है जब कुछ नहीं करते तो और होता है.


उसने मुझको जो बुलाया तो बुलाया होगा.
जरुर किसी आईने से टकराया होगा.


तुम भी,ये भी,वो भी,वो भी और वो भी खुदा के बन्दे .

फिर उस मजलूम का घर किसने जलाया जलाया होगा.    

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