यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 27 अक्टूबर 2016

कुछ शेर हवाओं पर लगे इल्ज़ाम पर



बहुत सुलझाते हो,हवा की उलझन को सुलझाओ तो जानें   
हवा चले तो दिए बुझते हैं और न चलें तो भी दिए बुझते हैं


दिया बुझाने का इल्ज़ाम हवा पर हमेशा से रहा.
मगर सच ये भी है बिना हवा के किसी दिये का वज़ूद न रहा.


जमाने भर के शायरों नें हवा पर सिर्फ इल्ज़ाम लगाया है.
किसी ने ये नहीं कहा कि बुझते दियों को हवा ने जलाया है.


छप्पर,मकान,इमारतें,बंगले जले,सब ने हवा पर आक्षेप लगाये.
अलाव,भाड़,दिए,चूल्हे भी जलें,कभी पूछा इन्हें किसने जलाए.


जो हवा पर दिया बुझाने का तोहमत देते हैं.वो जोशो-जुनूं वाले लोग है
ये तजरबे की बात है कि, हवा न हो तो भी दिए बुझते हैं

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