यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

मेरे अम्मा की वो भाषा है हिन्दी




























मस्तक का चन्दन है हिन्दी .
माथे की बिंदी है हिन्दी.

पहचान हिन्द की है हिन्दी.
आम-आदमी की भाषा भी है हिन्दी.

भारत की संस्कृति है हिन्दी.
तुलसी, सूर, निराला,दिनकर का लेखन भी है हिन्दी.

जन-गण-मन के सुख-दुःख के संवाद का माध्यम है हिन्दी.
मानस,कामायनी,गोदान  और उर्वशी है हिन्दी.

एक अरब से अधिक कंठ की सुरमई स्वर है हिन्दी.
अधिक कहूँ क्या हिन्दी के बारे में मैं ?


जिस भाषा में अम्मा मुझे बुलाती है !
मेरी अम्मा की वो भाषा है हिन्दी.

जय हिन्दी 
poetpawan50@gmail.com
7718080978

  



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