यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 16 अक्तूबर 2016

घर



वो थी तो  घर था.
वो छोड़कर गयी तो मकां हो गया .


घर तो था मगर घर नहीं था .
जिससे था अब वो ही नहीं था .



बस एक घर की तलाश में .
रोज कई मकान देखता हूँ .


तेरे  क़दमों की आहट से घर हरा हो जाता है.
और तेरे घर में आने से घर मंदिर हो जाता है .


बेटा जब भी आता है घर खुशियों से भर जाता है.
पर बेटी जब घर आती है घर मंदिर हो जाता है.


मुझे कई बंगले,महल,मकान आलीशान मिले.
बहुत से लोग मेरी तरह ही परेशान मिले.


बहुतों को बहुत से ऐशोआराम भी मिले .
जो एक ख्वाहिश थी घर की, मुझे मिले उन्हें मिले .


मैं जानता हूँ तुम मकान खरीद सकते हो.
घर खरीद के बताओ तो जानूं .


वों नादाँ हैं जो कहते हैं हम घर खरीदेंगे.
उन्हें मालूम नहीं घर खरीदे नहीं बनाये जाते हैं.


जो मकां को घर बता के बेचते रहे .
वो खुद ही पूरी उम्र घर खोजते रहे .

poetpawan50@gmail.com




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें