यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 17 अक्टूबर 2016

संचार माध्यमों का सार्थक उपयोग

आभासी दुनिया के मेरे प्रिय मित्रों....

सादर अभिवादन,

   आज आप से पुनः इस खुले पत्र के माध्यम से संवाद करने का जोरदार मन हुआ. इतना जोरदार कि खुद को रोक नहीं सका. कुछ अपने विचार आप से साझा करना चाहता हूँ. आप को उचित या अनुचित लग सकता है. दोनों हालातों में मैं आप के विचारों का स्वागत भी करूंगा.फिलहाल मेरे विचार परोसता हूँ. फेसबुक,ट्विटर,इन्स्टाग्राम,लिंक्डइन,लेटर्स,व्हाट्सअप आदि सामाजिक संचार माध्यमों पर उपस्थित मेरे आभासी मित्रों...
आभासी इसलिए लिख रहा हूँ कि अधिसंख्य मित्रों से न हम कभी मिले होते हैं.न ही उनका वास्तविक चेहरा भी देखे होते हैं. अधिकतर से हमारी बात भी नहीं होती,पर हम एक दूसरे की मित्र सूची में टंगे हुए दिखाई देते हैं. हमें एक दूसरे की गतिविधियों का पता उनकी सक्रियता से पता चलता है. जब वे कोई चित्र या विचार प्रेषित करते हैं.
मित्रों मुझे पता नहीं कि आप जब कुछ प्रेषित करते हैं तो काफी सोंच-समझ कर करते हैं या यूँ ही अच्छा लगा या गुस्सा लगा तो कर दिया या फिर, यूँ ही खाली बैठा था कुछ प्रेषित कर दिया.समय बिताने के लिए. यदि ऐसा है. तो मुझे आपत्ति है और दुःख भी.प्रबुद्ध लोग या सजग मित्र आप की सतत प्रेषित सामग्रियों के आधार पर आप के व्यक्तित्व के बारे में एक धारणा बनाते हैं. कहीं आप की छवि आप द्वारा प्रेषित सामग्रियों के कारण नकारात्मक या हंसोंड, ईर्ष्यालु, अभिमानी,चापलूस,कामुक,हिंसक,धार्मिक उन्मादी,अराजक या असभ्य आदि की तो नहीं बन रही. क्या आप ने कभी इस पर गंभीरता से विचार किया है.नहीं किया है तो अवश्य करें,क्या आप अक्सर चुटकुले,सुन्दर युवतियों की तस्वीरें,राजनैतिक व्यक्तियों की आलोचना या कभी-कभी अभद्र शब्द प्रेषित करते हैं,जबकि आप न उनसे कभी मिले हैं न कोई आप से उनका खानदानी वैमनस्य है.फिर भी आप उन्हें गाली देते हैं. क्या ये उचित है? कोई आप के साथ ऐसा करे तो आप को कैसा लगेगा ?आप पुरुष हैं पर आप ने अपनी चित्र पहचान खिड़की में किसी सुन्दर स्त्री या नायक या धार्मिक प्रतीक का चित्र लगा रखा है.कई बार इससे आप के करीबी आप को खोज नहीं पाते.आप की सही तस्वीर होने से वे आप को तुरंत पहचान जाते.ईश्वर और विज्ञान ने हमारी पीढ़ी को अभिव्यक्ति के अनेक सुन्दर माध्यम दिए हैं.जो हमसे पूर्व की तमाम पीढ़ियों के भाग्य में नहीं था.ऐसे में क्या आप नें सोंचा कि इस अनमोल तोहफे या मौके का क्यों न सुन्दर और सार्थक उपयोग किया जाए. नहीं सोंचा तो सोंचिये. आप  दूसरों की दस सामग्री साझा या नकल करके प्रसारित करने के बजाय एक खुद का विचार,खुद की सोंच साझा करेंगे. दिन में दस सामग्री प्रेषित करने के बजाय एक करेंगे लेकिन सार्थक करेंगे. समाज या अपने मित्रों को विचारणीय सामग्री प्रस्तुत करेंगे. प्रतिदिन अभिवादन के चित्र या हास्य- विनोद के बदले दो दिन बाद ही सही कोई सामाजिक समस्या को विचार विनिमय के लिए प्रेषित करिए.फिर देखिये आप के व्यक्तित्व में कैसा सकारात्मक बदलाव आता है?
       मित्रों इन सामाजिक संचार माध्यमों के मालिक अरबों रूपये कमा रहे हैं. उनकी आय आप द्वारा अधिकाधिक प्रेषित सामग्रियों पर निर्भर होती है.पर आप को कुछ नहीं मिलता. उल्टा उनकी निगाह आप की प्रत्येक गतिविधि पर होती है.आप की रूचि को वो सदैव भांपते हैं.उसी अनुसार वे आप को अनेक सामग्री को विज्ञापन के रूप में परोसते हैं.आप भी उन्हें चाव से देखते हैं और कुछ दिनों बाद आप उसके आदी हो जाते हैं. संयोग से यदि वह सामग्री या विषय नकारात्मक है,तो आप की मानसिकता भी धीरे – धीरे वैसी हो जायेगी.जो बेहद खतरनाक है.वो आप को पूर्वाग्रह से भर देगी.इसलिय आभासी दुनिया के मेरे प्यारे मित्रों रोज न लिखिए. रोज न प्रेषित कर सकें तो कोई बात नहीं. २-४ दिन बाद करें,पर जब भी करें, सार्थक करें. अर्थपूर्ण एवं विचारणीय करें.इससे आप खुद को,देश को,समाज को,दुनिया को अपना योगदान दे सकेंगे. और अच्छा महसूस करेंगे.अब मेरी बात ख़त्म हुई. अब आप मुझसे सहमत या असहमत हो सकते हैं. मैं आप के विचारों का स्वागत करूँगा. अगर आप ने साहस और धैर्य के साथ यहाँ तक पूरा पत्र पढ़ा है तो आप को बार-बार  धन्यवाद, स्वागत, नमन....  


poetpawan50@gmail.com            

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