यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 3 मई 2025

जीवन की आपा-धापी में


 

जीवन की आपा-धापी में

संबंधों का रेला है,

अपनी स्थिति ऐसे जैसे

खेत में बिखरा ढेला है.

भीड़ बहुत है आसपास में

पर ये जिया अकेला है,

अपनी स्थिति ऐसे जैसे

खेत में बिखरा ढेला है.

 

खेल रहा है हमसे जीवन

या जीवन ही खेला है,

कई बार बोझे सा लगता

खिंचता जैसे ठेला है.

हर कोई चढ़ा गुरू सा रहता

यहाँ न कोई चेला है,

अपनी स्थिति ऐसे जैसे

खेत में बिखरा ढेला है.

 

बिन मतलब के बात है महँगी

कोई न देता धेला है,

बाबू, भइया, मित्र व मइया

सब मतलब का मेला है,

साँच कहूँ मैं जलता दीपक

गदाबेर की बेला है.

अपनी स्थिति ऐसे जैसे

खेत में बिखरा ढेला है.

 

पवन तिवारी

 २५/०५/२०२५  

( आज अस्पताल से लौटते समय उपजी रचना, आज अम्मा को अस्पताल में भर्ती होकर १७ दिन हो 

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