शनिवार, 3 मई 2025

जीवन की आपा-धापी में


 

जीवन की आपा-धापी में

संबंधों का रेला है,

अपनी स्थिति ऐसे जैसे

खेत में बिखरा ढेला है.

भीड़ बहुत है आसपास में

पर ये जिया अकेला है,

अपनी स्थिति ऐसे जैसे

खेत में बिखरा ढेला है.

 

खेल रहा है हमसे जीवन

या जीवन ही खेला है,

कई बार बोझे सा लगता

खिंचता जैसे ठेला है.

हर कोई चढ़ा गुरू सा रहता

यहाँ न कोई चेला है,

अपनी स्थिति ऐसे जैसे

खेत में बिखरा ढेला है.

 

बिन मतलब के बात है महँगी

कोई न देता धेला है,

बाबू, भइया, मित्र व मइया

सब मतलब का मेला है,

साँच कहूँ मैं जलता दीपक

गदाबेर की बेला है.

अपनी स्थिति ऐसे जैसे

खेत में बिखरा ढेला है.

 

पवन तिवारी

 २५/०५/२०२५  

( आज अस्पताल से लौटते समय उपजी रचना, आज अम्मा को अस्पताल में भर्ती होकर १७ दिन हो 

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