यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 4 दिसंबर 2023

इक दिन मिल गये कृष्ण मुरारी




इक दिन मिल गये कृष्ण मुरारी

बोले कंप्यूटर है भारी

सुनो! कहा- मैंने बनवारी

कितनों की नौकरी है मारी

 

ये मत कहना इसमें का बा

बहुत बड़ा है इसका ढाबा

बहुत तरह का ज्ञान है देता

इसमें बैठें गूगल बाबा

 

हँसकर बोले कृष्ण मुरारी

अबकी है इसकी ही बारी

इसकी इक छोटी अम्मा हैं

उनकी तीखी तेज कटारी

 

उनका नाम मोबाइल माई

उनकी ऐसी गज़ब ढिठाई

यौवन और बुढ़ापा बचपन

एक तरफ से सबको खाई

 

चौबीस घंटे नेट खाती है.

रिश्तों का जीवन खाती है .

रोता है जब समय बेचारा

धीरे से  हँसकर गाती है

 

इससे जो भी  बच पायेगा

वही जितेन्द्रिय कहलायेगा

,खा  जायेगी  संवादों को

जल्दी ही वो दिन आएगा

 

पवन तिवारी

०४/१२/२०२३

 

8 टिप्‍पणियां:

  1. सचमुच दुनिया तेजी से बदलती जा रही है।
    सिक्के के दो पहलुओं की तरह इंटरनेट क्रांति के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव समाज पर दृष्टिगोचर हुए हैं।
    समसामयिक चिंतन ।
    सादर।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ५ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. कम्प्यूटर की अम्मा मोबाइल !
    वाह!!!
    सही कहा आज इन सबसे बचने वाला ही जितेंद्रिय होगा ।
    बहुत ही लाजवाब सृजन

    जवाब देंहटाएं
  3. पहले हम नई पीढ़ी को दोष देते थे मोबाइल में ज्यादा घुसने पर। अब तो हर पीढ़ी सोशल मीडिया की आदी है, सराहनीय कविता।

    जवाब देंहटाएं