यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 15 दिसंबर 2023

दर्द लटके हैं कितने बाहों में



दर्द लटके हैं  कितने बाहों में

शेष पीडाएं सिसकी आहों में

छल का क़िस्सा तो सारा अपनों का

ग़ैर  आये   ही  नहीं  राहों में

 

जो मेरे नाम कि शपथ लेते

बातों – बातों  में दुहाई देते

आधे रस्ते में छोड़ वे भागे

वे भला नाव मेरी क्या खेते

 

ऐसे क़िस्सों से भरा जीवन है

घाव पीड़ा से भरा तन मन है

लोग कहते हैं जरा हँस भी दो

कैसे हँस दूँ कि अपना दुःख धन है

 

सारे सच्चों ने  मार खायी है

उनके हिस्से  में  बेवफाई है

लोग ठगते  हैं   वे ठगाते हैं

भाग्य सीधों ने ऐसी पायी है

 

पवन तिवारी  

 १४/१२/२०२४   

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