यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 31 मई 2023

जब से सुना नेह पर हूँ वक्तव्य तुम्हारे



जब से सुना नेह पर हूँ वक्तव्य तुम्हारे

मेरा जो भी प्रिय था हैं सब तुम पर हारे

अब भी अरुंधती सी दारायें होती हैं

देख तुम्हें उर बोला तुम भी धन्य हो प्यारे

 

कितनी है अनुरक्ति तुम्हें कैसे बतलाऊँ

प्रथम प्रात प्रतिवासर तुम्हरे दर्शन चाहूँ

पूर्ण वार इतने भर से ही सुखद रहेगा

अभिलाषा इससे अतिरिक्त नहीं कुछ पाऊं

 

प्रेमी हूँ ,कामांध नहीं, घोषणा करूँ क्या

प्रेम किसन हैं, राधा मीरा और कहूँ क्या

जिन्हें कशिश काया में लगती दूजे होंगे

मैं अंतः का अनुरागी हूँ हृदय धरुं क्या

 

दर्शन भर से भक्त तृप्त हो जाता है

इससे बड़ा  प्रेम  क्या  कोई पाता है

युगों-युगों तक लोग साधना जप तप करते

सहज व्यक्ति बस सीता राम ही गाता है

 

पवन तिवारी

३१/०५/२०२३      

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें