यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 5 मई 2022

रिश्ता

कितनों की मैं मौत  सुन रोया बहुत था

ऐसा लगता जैसे  कुछ  खोया बहुत था

तुम  मरे  तो  आँख  तक  ना  नम  हुई

लोग कहते रिश्ता तुमसे कुछ बहुत था

 

याद आया वो समय दुःख का बहुत था

तुमने  ही  माँ  को  मेरे मारा बहुत था

बहन को भी खींचकर मारा था तुमने

आँसू डर तुमने दिया जो कि बहुत था

 

फूस छप्पर के थे फिर भी खुश बहुत था

रुखा सूखा  के  भी  घर  खुश  बहुत था

तुमसे ये सुख  भी  नहीं  देखा  गया था

छीना था बचपन नहीं ये क्या बहुत था

 

रिश्ते में  यूँ  दर्द  पाया  भी  बहुत था

वैर  का  जो  बीज बोया वो बहुत था

अब  मरे  तो  लोग  कहते  थे तुम्हारे

मुँह से निकला उतना रिश्ता ही बहुत था

 

पवन तिवारी

३०/०४/२०२१  

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